घाटी में अल-कायदा व आईएस के बीच होड़, निशाने पर कश्मीरी युवा
राज्य व केंद्र सरकार सार्वजनिक तौर पर कश्मीर में आइएस या अल कायदा के बढ़ते प्रभाव को खास तवज्जो नहीं देती है। लेकिन हाल के महीनों में जो सूचनाएं देश की खुफिया एजेंसियो को मिल रही है, वह दूसरी कहानी कहती है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पिछले सप्ताहांत अनंतनाग में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने कुख्यात आतंकी ईशा फाजिली उर्फ अबु याहया व उसके दो साथियों को एक मुठभेड़ में मार गिराया तो उसे आतंकवादियों के लिए एक बड़ा धक्का माना गया। लेकिन इनकी मौत के बाद जिस तरह की सूचनाएं देश की खुफिया एजेंसियों को मिल रही हैं वह एक नई चिंता पैदा कर रही हैं। कश्मीर में पैर जमाने की कोशिश में जुटे कुख्यात आतंकी संगठन आइएसआइएस और अल-कायदा ने इन आतंकियों की मौत के बाद एक होड़ शुरू हो गई है। ये संगठन सोशल मीडिया के जरिए इन आतंकियों को अपना सदस्य साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। जिसका मकसद कश्मीर के दिग्भ्रमित युवाओं के बीच पैठ बनाना है। सतर्क खुफिया एजेंसियां इन सभी गतिविधियों पर पैनी नजर बनाए हुए हैं।
राज्य व केंद्र सरकार सार्वजनिक तौर पर कश्मीर में आइएस या अल कायदा के बढ़ते प्रभाव को खास तवज्जो नहीं देती है। लेकिन हाल के महीनों में जो सूचनाएं देश की खुफिया एजेंसियो को मिल रही है, वह दूसरी कहानी कहती है। ये संगठन पहले से ज्यादा सक्रिय हो रहे हैं। इसका नतीजा है कि मारे गये कई आतंकियों के जनाजे में इन संगठनों के बैनर लहराये जा रहे हैं। कुछ शिक्षण संस्थानों में भी इन संगठनों के पक्ष में नारेबाजी होने या बैनर लगाने की सूचनाएं खुफिया एजेंसियों को मिली है। हाल के महीनों में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा मारे गये हर आतंकी के जनाजे में आइएसआइएस का झंडा दिखाई दे रहा है। अबू याहया के जनाजे में बुर्का पहनी दो युवतियों ने न सिर्फ आइएस का झंडा काफी देर तक लहराया, बल्कि ''कश्मीर बनेगा दारुल इस्लाम'' के नारे भी लगाये।
अबू याहया के साथ मारे गये दूसरे आतंकी अबू जार व अबू बारा को पहले अल कायदा का समर्थन करने वाली एक नई आतंकी संगठन अंसार गजवातुल हिंद ने अपना सदस्य व शहीद बताया। लेकिन इसके कुछ ही देर बाद आइएस की तरफ से यह दावा किया गया कि वे उनके सदस्य है। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि दोनो संगठनों ने अब जार को अपने बैनर तले दिखाया गया। दरअसल, इन दोनों संगठनों ने पिछले छह महीने से कश्मीर को लेकर अपना प्रोपगेंडा बहुत तेज कर दिया है। भारतीय खुफिया एजेंसियों के सूत्र इस नई सक्रियता के पीछे पाकिस्तान खुफिया एजेंसी आइएसआइ का हाथ होने की संभावना से इनकार नहीं कर रहे। आइएसआइएस व अल कायदा के आने से कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खी दिलाना भी आसान हो जाएगा। अगर पिछले छह-सात महीनों के दौरान भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के हाथों मारे गये आतंकियों की सूची देखे तो साफ हो जाता है कि अब उनके आइएसआइएस या अल कायदा से जुड़े होने की सूचनाएं ज्यादा तेजी से आने लगी है।
इन दोनों संगठनों ने दिसंबर, 2017 में सोशल साइट्स पर कश्मीर में जिहाद के नाम पर चंदा मांगने और युवाओं को शामिल होने का आह्वान किया था। आइएसआइएस से सीधा संबंध रखने वाली दो एजेंसियों अल करार और निदा-ए-हक ने तब कुछ वीडियो जारी कर यह धमकी दी थी कि वे कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढ़ाएंगे। आइएसआइएस का दावा है कि उसने इस्लामिक एस्टेट ऑफ जम्मू व कश्मीर (आइएसजेके) के नाम से एक नया संगठन गठित किया गया है।