CJI रमना ने अदालत परिसरों की लचर व्यवस्था का मुद्दा फिर उठाया, चाहते हैं न्यायपालिका के लिए पूर्ण वित्तीय स्वायत्तता
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमना ने शनिवार को कहा कि न्याय तक पहुंच में सुधार के लिए न्यायिक बुनियादी ढांचा महत्वपूर्ण है लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि देश में इसका सुधार और रखरखाव अस्थाई और अनियोजित तरीके से किया जा रहा है।
मुंबई, एजेंसियां। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने न्यायपालिका के लिए पूर्ण वित्तीय स्वायत्तता की मांग करते हुए अदालतों की व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए सरकार को नेशनल ज्यूडीशियल इन्फ्रास्ट्रक्चर अथारिटी (एनजेआइए) के गठन का प्रस्ताव भेजा है। बांबे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ के परिसर के उद्घाटन अवसर पर उन्होंने कहा कि अदालतों के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर पहले कभी विशेष ध्यान नहीं दिया गया। इसी वजह से अदालतों न्यायिक अधिकारियों के बैठने के लिए न पर्याप्त कमरे हैं और न शौचालयों की सही व्यवस्था है। उन्होंने कहा कि इन्हीं कमियों को देखते हुए उन्होंने विधि एवं न्याय मंत्रालय को एनजेआइए के गठन का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कानून मंत्री किरन रिजिजू से आगामी शीत सत्र में इस मामले को संसद में लाने का आग्रह किया है।
चीफ जस्टिस आफ इंडिया (सीजेआइ) रमना ने कहा कि यदि हम न्यायिक व्यवस्था से बेहतर परिणामों की उम्मीद करते हैं तो ये मौजूदा परिस्थितियों में संभव नहीं है। इसके पीछे एक अहम कारण न्यायपालिका को वित्तीय अधिकार का मुद्दा है। मैंने इसीलिए सरकार को नेशनल ज्यूडीशियल इन्फ्रास्ट्रक्चर अथारिटी के गठन का प्रस्ताव भेजा है। मुझे उम्मीद है कि इस पर जल्द ही कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया होगी। उन्होंने कहा कि देश में इस समय 20 प्रतिशत न्यायिक अधिकारियों के बैठने के लिए कमरे नहीं हैं। देश में 24,280 न्यायिक अधिकारी हैं जिनके सापेक्ष मात्र 20,143 कमरे उपलब्ध हैं। 620 न्यायालय परिसर किराए की इमारतों में चल रहे हैं। करीब 26 फीसद अदालतों में महिलाओं के लिए अलग से शौचालय नहीं हैं। वहीं 16 फीसद अदालतों में एक भी शौचालय नहीं है।
सीजेआइ रमना ने कहा कि आजादी के 75 साल पूरे होने के अवसर पर हम अपने देशवासियों को अत्याधुनिक और उन्नत ज्यूडीशियल इन्फ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध करा दें तो यह उनके लिए एक अनमोल तोहफा होगा। उन्होंने कहा कि देश की जनता आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से तरक्की कर रही है। उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी अदालतों का इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर होना जरूरी है। हैरानी की बात है कि आज भी अदालतों के विकास और रखरखाव का काम तदर्थ और अनियोजित तरीके से हो रहा है। उन्होंने कहा कि एक प्रभावी न्यायपालिका देश की आर्थिक प्रगति को प्रभावी बना सकती है। 2018 में प्रकाशित हुई एक अंतरराष्ट्रीय शोध की रिपोर्ट बताती है कि समय से न्याय न मिलने पर देश के कुल जीडीपी के नौ प्रतिशत के बराबर क्षति हो सकती है। यही नहीं कमजोर न्यायपालिका से विदेशी निवेश भी प्रभावित होता है।
जस्टिस रमना ने कहा कि आम तौर पर माना जाता है कि अपराधी और अपराध के शिकार बने लोग ही अदालत जाते हैं। लोग यह कहने में गर्व महसूस करते हैं हमने अपनी जिंदगी में अदालत का मुंह नहीं देखा। लेकिन अब समय आ गया है कि लोगों के मन से यह धारणा निकाली जाए और उन्हें बताया जाए कि अदालतें उनके अधिकारों की रक्षा के लिए हैं। एक आदमी अपने जीवन में बहुतेरे कानूनी मसलों से जूझता है। उसे अदालतों की शरण में जाने से झिझकना नहीं चाहिए। लोगों का न्यापालिका पर भरोसा ही लोकतंत्र की ताकत है। किसी समाज में कानून के शासन के लिए अदालतों का होना बहुत जरूरी है। अदालतें मात्र ईंट-गारे से बनी इमारतें नहीं हैं। वे लोगों के संवैधानिक अधिकारों की गारंटी सुनिश्चित करती हैं। जब-जब अत्याचार हुए अदालतें हमेशा लोगों और समाज के साथ खड़ी हुई हैं। कोई भी कितना ही कमजोर हो उसे राज्य की ताकत से घबराने की जरूरत नहीं है। उन्हें न्याय जरूर मिलेगा।
इस कार्यक्रम में कानून मंत्री किरन रिजिजू, महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे, सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस अभय ओका, बांबे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता भी मौजूद रहे। कानून मंत्री किरन रिजिजू ने अपने संबोधन में कहा कि न्यायपालिका को न केवल पूरा समर्थन दिया जा रहा है बल्कि उसे और सुदृढ़ होने का माहौल भी दिया जा रहा है। देश में लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए एक मजबूत न्यायपालिका जरूरी है। हम चाहते हैं कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका में बेहतर सामंजस्य रहे। हम लोगों को देश और देशवासियों के लिए एक टीम के रूप में काम करना चाहिए।