...इसलिए भी बहुत याद आएंगे CJI दीपक मिश्रा, विवादों भरा रहा ये साल
13 महीने के मुख्य न्यायाधीश के अपने कार्यकाल में जस्टिस दीपक मिश्रा को बड़े विवादों के लिए भी लोग उनका स्मरण करेंगे।
नई दिल्ली [ जागरण स्पेशल ]। 13 महीने के मुख्य न्यायाधीश के अपने कार्यकाल में जस्टिस दीपक मिश्रा न केवल अपने एेतिहासिक फैसलों के लिए याद किए जाएंगे, बल्कि इस साल इन बड़े विवादों के लिए भी लोग उनका स्मरण करेंगे। आइए जानते हैं, उनके ऐतिहासिक फैसलों के बारे में, जो न्यायपालिका के लिए माइल स्टोन बन गए, जिसके चलते उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। इसके साथ ही उनसे जुड़े कुछ विवादों की भी देखेंगे।
तीन बड़े विवाद
1- पहली बार सीजेआइ के खिलाफ जजों ने बुलाई पीसी
देश के 45वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के जीवन का सबसे बड़ा विवाद खुद न्यायपालिका के अंदर से ही उपजा था। 12 जनवरी, 2018 को सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने मीडिया से बात करते हुए जस्टिस दीपक मिश्रा के कामकाज पर सवाल उठाए थे। देश में पहली बार ऐसा हुआ था कि मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ शीर्ष अदालत के वरिष्ठ जजों ने मोर्चा खोला था। मामला इस कदर बढ़ गया कि जजों ने अपनी बात रखने के लिए बाकायदा एक संवाददाता सम्मेलन बुलाया। इस पीसी में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रंजन गोगोई शामिल थे। हालांकि, बाद में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने नाराज जजों से बातचीत के बाद इस समस्या पर विराम लगा। इसके बाद बार काउंसिल ने एेलान किया की सुप्रीम कोर्ट का विवाद सुलझा लिया गया।
2- सीजेआइ के खिलाफ विपक्ष लाया महाभियोग
अप्रैल, 2018 मे एक एेतिहासिक कदम उठाते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष ने उन्हें पद से हटाने के प्रस्ताव का नोटिस दिया था। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अगुआई में सात दलों ने राज्यसभा सभापति एम वेंकैया नायडू से मुलाकात कर उन्हें यह नोटिस सौंपा था। जस्टिस दीपक मिश्रा पर पांच आरोप लगाए गए थे। इसमें प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट से जुड़ा मामला, रोस्टर विवाद, वकील रहते हुए गलत हलफनामे देकर जमीन लेने का मामला, उच्चतम न्यायालय में कुछ महत्वपूर्ण और संवदेनशील मामले को विभिन्न पीठों को आवंटति करने में अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग के आरोप शामिल थे। हालांकि, नोटिस के कुछ ही दिन बाद सभापति नायडू ने चीफ जस्टिस को पद से हटाने के प्रस्ताव के नाटिस को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव में न्यायमूर्ति के खिलाफ लगाए गए आरोप न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमतर आंकने वाले हैं। उन्होंने प्रस्ताव को शक और अनुमानाें के आधार पर बताया।
3- आमने-सामने चीफ जस्टिस और केंद्र
जस्टिस दीपक मिश्रा के कार्यकाल में एक मौका ऐसा भी आया जब केंद्र सरकार के साथ उनके टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई थी। जी हां, कोलेजियम में जजों की नियुक्ति मामलाें में ऐसी स्थिति पैदा हुई थी। सीजेआइ दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाले कोलेजियम ने इसी साल सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने के लिए केंद्र सरकार को दो नाम भेजे थे। इनमें से एक नाम सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा और दूसरा नाम उत्तराखंड के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ का था। इनमें जस्टिस जोसेफ के नाम की सिफारिश को केंद्र सरकार ने दोबारा विचार के लिए कोलेजियम को लिया लौटा दिया था। हालांकि, कोलेजियम ने फिर से जस्टिस जोसेफ के नाम की सिफारिश की और दूसरी बार सरकार ने अपनी सहमति दे दी। इस मामले को कोलेजियम और सरकार के बीच विवाद के रूप में देखा जाता है।
ऐतिहासिक फैसलों की घडि़या
1- जब देर रात सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के बाद राजनीतिक संकट की स्थिति के दौरान मई, 2018 की देर रात सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की थी। दरअसल, कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। ऐसे में राज्य के राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने का न्यौता दिया। राज्यपाल के इस फैसले का कांग्रेस और जीएडएस ने विरोध किया और रात में ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। चूंकि सुबह मुख्यमंत्री को शपथ लेनी थी ऐसे में मुख्य न्यायाधीन दीपक मिश्रा ने रात में ही तीन सदस्यीय बेंच का गठन कर मामले को निपटाने का आदेश दिया। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में यह दूसरा मौका था जब किसी मामले को लेकर देर रात सुनवाई हुई। इससे पहले जुलाई 2015 को 1993 के मुंबई बम ब्लास्ट के दोषी याकूब मेनन के फांसी पर रोक संबंधी अपील की सुनवाई शुरू हुई थी। उस वक्त इस मामले की सुनवाई करने वालों में जस्टिस दीपक मिश्रा भी शामिल थे।
2- सिनेमाघरों में राष्ट्र गान का निर्णय
वर्ष 2016 में जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने देश के सिनेमा घरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाए जाने का बड़ा फैसला सुनाया था। हालांकि, बाद में बेंच ने कई फैसले में संशोधन करते हुए इसे वैकल्पिक बनाया।
3- समलैंगिकता का अधिकार
6 दिसंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने आइपीसी की धारा 377 को असंवैधानिक करार दिया। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश ने कहा जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।
4- एडल्टरी यानी पति-पत्नी और वो का मामला
27 सितंबर, 2018 को आइपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया। फैसले में कहा गया कि कानून लैंगिक समानता के अखिकार के खिलाफ है।
5- सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की मिली इजाजत
28 सितंबर, 2018 को महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करते हुए सबरीमाला मंदिर 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक हटा दिया।
6- आधार कार्ड की संवैधानिकता
27 सितंबर, 2018 को आधार कार्ड की संवैधानिकता पर मुहर लगाई। हालांकि, पीठ ने सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने और जन अधिकारों को अनिवार्य नहीं बताया।
7- सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का लाइव प्रसारण
26 सितंबर, 2018 को अदालत की कार्यवाही के सीधे प्रसारण की अनुमति दी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लाइव प्रसारण के आदेश से कोर्ट की कार्यवाही में पारदर्शिता आएगी और यह लोकहित में होगा।