न नक्सली मानेंगे और न ही सरकार, शांति के लिए नागरिकों को करनी होगी पहल
रायपुर में तीन दिवसीय सम्मेलन में कहा गया कि अब वक्त आ गया है कि सिविल सोसाइटी पहल करे। लोगों को नक्सली मुद्दे पर जागरूक किया जाए।
रायपुर (अनिल मिश्रा)। नक्सल हिंसा से किसी को फायदा नहीं होने वाला। जिनके बेटे मर रहे, उनसे पूछिए। सरकार विकास के रास्ते हिंसा का हल तलाश रही है लेकिन विकास किसके लिए। जल, जंगल, जमीन के मसले हल क्यों नहीं किए जाते। यह चिंता रायपुर जिले के तिल्दा में आयोजित बुद्धिजीवियों के तीन दिवसीय सम्मेलन में दिखी।
गोंडी भाषा में मोबाइल समाचार सर्विस चलाने वाले सीजी नेट स्वर के संचालक शुभ्रांशु चौधरी के संयोजन में इसका आयोजन किया गया। इसका नाम विकल्प संगम दिया गया था। रविवार को संगम का समापन हुआ। सबने कहा-नक्सली भी हिंसा छोड़ने को तैयार नहीं हैं। हालांकि उन्होंने कभी बातचीत की संभावना को खारिज नहीं किया है। सरकार भी एक ओर बातचीत के लिए खुद को तैयार बताती है तो दूसरी ओर कोई पहल नहीं करती। अब वक्त आ गया है कि सिविल सोसाइटी पहल करे। लोगों को इस मुद्दे पर जागरूक किया जाए। जनमत का दबाव हो तो नक्सलियों को भी मानना पड़ेगा और सरकार को भी एक कदम पीछे होना होगा।
बोडो आंदोलन से मिली सीख
आयोजन में पूर्वोतर के राज्यों से भी आदिवासी प्रतिनिधि पहुंचे। आल बोडो स्टूडेंट यूनियन के लीडर प्रमोद बोरा ने बताया कि कैसे उनके सशस्त्र विद्रोह का हल निकला। राज्य भले नहीं मिला ऑटोनॉमस काउंसिल से कई अधिकार मिल गए। आदिवासी बड़ी संख्या में या तो मध्य भारत में हैं या पूर्वोत्तर के राज्यों में। दोनों तरफ के आदिवासी एक दूसरे की मदद करेंगे।
तेलंगाना से रायपुर तक पदयात्रा करेंगे आदिवासी लीडर
तेलंगाना के आदिलाबाद से आए आदिवासी नेताओं ने कहा कि नक्सलवाद उन्हीं के इलाके से बस्तर में आया। अब उनका इलाका तो शांत है पर उन्हीं के आदिवासी भाई संकट में हैं। वे वहां से रायपुर तक पदयात्रा करेंगे। उन्हीं रास्तों से जंगल में घुसेंगे जिनसे माओवादी 1980 के दशक में यहां आए थे।