वेदर मॉडिफिकेशन प्रोग्राम को विस्तार देकर अब प्रकृति से पंगा लेने की राह तैयार कर रहा चीन
चीन भारत के आकार के करीब डेढ़ गुना हिस्से के ऊपर मौसमी बदलाव करने की तरफ तेजी से कदम बढ़ा रहा है। उसने वेदर मॉडिफिकेशन प्रोग्राम की योजना को आखिरकार विस्तार देने पर अपनी मुहर लगा दी है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। पड़ोसियों से पंगा लेने वाले कुटिल चीन ने अब प्रकृति को चुनौती देने वाले अपने कार्यक्रम को व्यापक विस्तार देने की ठान ली है। उसने प्रायोगिक मौसम परिवर्तन कार्यक्रम यानी वेदर मॉडिफिकेशन प्रोग्राम को व्यापक विस्तार देने की घोषणा की है। इसके तहत वह 50 लाख वर्ग किलोमीटर से भी बड़े क्षेत्र को कवर करेगा, जो भारत के आकार का डेढ़ गुना है। उसका दावा है कि अगले पांच वर्षों में वह इतने बड़े क्षेत्रफल में न सिर्फ कृत्रिम वर्षा और ओलावृष्टि कराने वाली तकनीक हासिल कर लेगा, बल्कि बर्फबारी को रोकने में भी कामयाब होगा। चालबाज चीन वैसे तो इस कार्यक्रम को प्राकृतिक आपदा पर विजय पाने का प्रयास बता रहा है, लेकिन भरोसा नहीं किया जा सकता है कि वह इस तकनीक का इस्तेमाल पड़ोसी देशों को परेशान करने के लिए न करे...
करा चुका है कृत्रिम बारिश
चीन मौसम पर अंकुश लगाने की कवायद में काफी लंबे समय से जुटा है। वह क्लाउड सीडिंग तकनीक की मदद से वर्ष 2008 के र्बींजग ओलंपिक से पहले कृत्रिम बारिश करवा चुका है, ताकि स्मॉग से मुक्ति मिले और आयोजन के दौरान बारिश व्यवधान पैदा न करे। बीजिंग में महत्वपूर्ण बैठकों के आयोजन से पहले चीन कृत्रिम बारिश का सहारा लेता रहा है, ताकि आसमान साफ दिखे।
ऐसे होती है क्लाउड सीडिंग
वैसे कृत्रिम बारिश के लिए क्लाउड सीडिंग तकनीक कोई नई नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल दशकों से होता आ रहा है। इसके तहत बादलों में थोड़ी मात्रा में सिल्वर आयोडाइड को प्रत्यारोपित किया जाता है। इसके बाद वह नए तत्व के आसपास संघनित हो जाता है और नमी की वजह से भारी होने पर समय से पहले बारिश के रूप में उस इलाके में बरस जाता है।
बड़ी राशि कर रहा खर्च
वर्ष 2012-17 के बीच चीन ने विभिन्न मौसम परिवर्तन कार्यक्रमों पर 1.34 बिलियन डॉलर यानी 98.81 अरब रुपये खर्च कर चुका है। पिछले साल चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिंहुआ ने बताया था कि मौसम परिवर्तन तकनीक के जरिये देश के उत्तरी क्षेत्र शिनजियांग में ओलावृष्टि से होने वाले नुकसान को 70 फीसद तक कम किया जा सका है। यह क्षेत्रखेतीबारी की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
भारत को सचेत रहने की जरूरत
क्लाउड सीडिंग तकनीक में चीन व अमेरिका के अलावा कई और देशों ने भी निवेश किया है। इसके प्रति चीन का अति उत्साह भारत जैसे देशों को सचेत करता है, जहां खेतीबारी बहुत हद तक मानसून पर निर्भर है। जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून भी प्रभावित हुआ है और उसका पूर्वानुमान पहले से ज्यादा कठिन हो गया है।
ओलावृष्टि पर अमेरिकी अध्ययन
अमेरिकी नेशनल साइंस फाउंडेशन की तरफ से कराए गए अध्ययन में पाया गया कि अगर वायुमंडलीय स्थितियां अनुकूल रहीं तो क्लाउड सीडिंग के जरिये एक बड़े इलाके में कृत्रिम ओलावृष्टि भी कराई जा सकती है। अध्ययन का प्रकाशन इसी साल की शुरुआत में हुआ है। यह अध्ययन उन प्रारंभिक अध्ययनों में शामिल है जो यह पुष्ट करता है कि क्लाउड सीडिंग तकनीक काम करती है।
कृषि के लिए उपयोगी होने का दावा
चीन की राज्य परिषद की तरफ से गत दिनों जारी बयान के अनुसार, अगले पांच साल में 58 लाख वर्ग किमी क्षेत्र को मौसम परिवर्तन कार्यक्रम के तहत कवर किया जा सकेगा। इसके जरिये आपदा प्रबंधन, कृषि उत्पादन बढ़ाने, जंगल की आग को रोकने, अधिक तापमान व सूखे से निपटने में मदद मिलेगी।
सीमा सुरक्षा पर भी पड़ सका है असर
चीन यह दावा करता है कि मौसम परिवर्तन कार्यक्रम का उपयोग वह अपने देश के हित में करना चाहता है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसका इस्तेमाल वह पड़ोसी देशों के खिलाफ भी कर सकता है। भारतउसका सशक्त प्रतिद्वंद्वी है। लद्दाख में सीमा को लेकर भारत का चीन के साथ लंबे समय से विवाद चल रहा है। ऐसे में वह इस तकनीक का उपयोग सामरिक फायदे के लिए भी कर सकता है।
अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन के लिए खतरा
नेशनल ताइवान यूनिवर्सिटी ने पिछले साल एक शोध पत्र में कहा था कि मौसम परिवर्तन गतिविधियों के समन्वय के अभाव में चीन व अन्य पड़ोसी देशों के बीच ‘बारिश की चोरी’ जैसे विवाद होते रहे हैं। इस विवादास्पद परियोजना पर नजर रखने और सीमा तय करने की जरूरत है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस कार्यक्रम के जरिये चीन जियोइंजीनिर्यंरग प्रोजेक्ट की शुरुआत कर सकता है। इसकी सफलता पर चीन अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन के लिए भी खतरा बना सकता है। ऐसे प्रयोगों के लिए नियम बनाने की जरूरत है।