तिब्बत की संसद के पूर्व उप सभापति ने चीन को बताया विश्वासघाती, भारत से मांगी मदद
तिब्बत की संसद के पूर्व उप सभापति का मानना है कि चीन कभी विश्वास का पात्र नहीं हो सकता है। उसकी नीति और नीयत दोनों ही खराब हैं।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। चीन के साथ गलवन वैली में 15 जून की रात से शुरू हुआ विवाद फिलहाल थम गया है। दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर स्तर की वार्ता और चीन के विदेश मंत्री की भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से हुई वार्ता के बाद चीन की सेना के पीछे हट जाने से हालात में कुछ सुधार आया है। लेकिन, ये सुधार और चीन की तरफ से यही रवैया कब तक कायम रहेगा, इस पर कुछ कहपाना अभी मुश्किल है। तिब्बत से निर्वासित वहां की संसद के पूर्व उप सभापति आचार्य येशी फुंटसोक मानते हैं कि चीन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।
विश्वासघाती है चीन
दैनिक जागरण से चीन के मुद्दे और तिब्बत की समस्या को लेकर हुई बातचीत के दौरान येशी ने कहा कि चीन विश्वासघाती है और उस पर कभी कोई विश्वास नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपने यहां पर दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने के लिए आमंत्रित किया था लेकिन यहां पर आने और वार्ता करने के बाद उन्होंने लद्दाख में जो कुछ किया, वो उसके विश्वासघाती होने का ही प्रमाण है। उन्होंने कहा कि चीन की विस्तारवादी नीतियों का ही परिणाम है कि उसके अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ सीमा को लेकर विवाद हैं। उन्होंने कहा कि चीन द्वारा तिब्बत को हथियाए हुए 61 वर्ष हो चुके हैं। वो चाहता है कि जिस तरह से उसने तिब्बत पर अवैध कब्जा किया ठीक उसी तरह से भारत के भी इलाकों को कब्जा ले। यही वजह थी कि उसने लद्दाख में इस तरह की हरकत को अंजाम दिया। ऐसा करके चीन ने भारत के साथ विश्वासघात किया है। भारत में चीनी घुसपैठ पर उन्होंने कहा कि वो हमेशा से ही नियमों का और समझौतों काउल्लंघन करता आया है। इसलिए वो मानने वाला देश नहीं है।
भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है चीन
तिब्बत पर चीन के अवैध कब्जे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए येशी ने कहा कि चीन के पास कोई अधिकार नहीं है कि वो इसको हड़पकर वहां पर कुछ भी करे। उन्होंने कहा कि तिब्बत तो वहां के मूल निवासियों का है जिसपर चीन ने अवैध कब्जा किया हुआ है। जब तक तिब्बत की समस्या का समाधान नहीं हो जाता है तब तक भारत की समस्या का समाधान भी नहीं होगा। ये सीमा विवाद आगे भी जारी रहेगा और चीन का पुराना रवैया भी लगातार जारी रहेगा। येशी ने कहा कि चीन का सपना यही है कि वो दूसरों की भूमि हड़पे या वहां पर अपनी नीतियों को थोपे। उनकी नियत खराब है इसलिए ये पहले भी जारी था और आगे भी रहेगा। येशी ने कहा कि सरदार पटेल ने चीन को भारत का सबसे बड़ा दुश्मन बताया था, जो कि एक हकीकत है।
एक नजर इधर भी
आपको यहां पर ये भी बता दें कि तिब्बत के सबसे बड़े धर्म गुरू दलाई लामा का 6 जुलाई 2020 को 85वां जन्मदिन भी था। इस मौके पर उन्हें भारत समेत कई देशों के राष्ट्र प्रमुखों ने अपने बधाई संदेश भेजे थे। इस दौरान वीडियो कांफ्रेंस के जरिए भी कई देशों से जुड़े जानेमाने लोगों और राजनेताओं ने उन्हें जन्मदिन की हार्दिक बधाई दी थी। दलाई लामा को 61 वर्ष पहले 17 मार्च 1959 को तिब्बत की राजधानी ल्हासा से पैदल ही भागना पड़ा था। 15 दिन लगातार ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों से गुजरने के बाद जैसे तैसे 31 मार्च को वो भारत पहुंचे थे। तब से वे भारत में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 1989 में दलाई लामा को शांति का नोबेल सम्मान मिला था।
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