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BRI पर भारत ने फेंका पासा, पाकिस्तान को लग सकता है झटका

ओबोर (नया नाम बेल्ट एंड रोड इनिसिएटिव- बीआरआइ) को लेकर भारत का विरोध सिर्फ उस हिस्से तक सीमित है जहां उसके भौगोलिक संप्रभुता का हनन हो रहा है।

By Manish NegiEdited By: Published: Thu, 05 Apr 2018 09:57 PM (IST)Updated: Fri, 06 Apr 2018 06:56 AM (IST)
BRI पर भारत ने फेंका पासा, पाकिस्तान को लग सकता है झटका
BRI पर भारत ने फेंका पासा, पाकिस्तान को लग सकता है झटका

नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। क्या चीन अगर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से अपनी महत्वाकांक्षी वन बेल्ट-वन रोड (ओबोर) परियोजना को ले जाने से परहेज करे तो भारत दूसरे देशों में उसकी परियोजना में शामिल हो सकता है? यह सवाल कुछ पेंचीदा तो है लेकिन इस परियोजना को लेकर चीन के साथ भारत की जो वार्ताएं हो रही है उसमें भारत ने कुछ ऐसा ही दांव फेंका है। अगर चीन यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेता है तो यह दोनो देशों के रिश्तों के बीच एक बड़ी अड़चन को ना दूर करेगा बल्कि पाकिस्तान के लिए भी एक बड़ा झटका साबित होगा। ओबोर (नया नाम बेल्ट एंड रोड इनिसिएटिव- बीआरआइ) को लेकर भारत का विरोध सिर्फ उस हिस्से तक सीमित है जहां उसके भौगोलिक संप्रभुता का हनन हो रहा है।

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हाल के दिनों में अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इस बारे में खबरें आई है कि ओबोर या बीआरआई को लेकर भारत और चीन के बीच मतभेद कम हुए हैं। इस परियोजना को लेकर भारत और चीन के बीच सहयोग भी हो सकता है। इस बारे में जब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार से पूछा गया तो उनका जवाब था कि, ''ओबोर या बीआरआइ के बारे में हमारा मत पूरी तरह से स्पष्ट है व इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। तथाकथित चीन-पाकिस्तान इकोनोमिक कारीडोर (सीपीईसी) भारत की संप्रभुता और भौगोलिक एकता के खिलाफ है। कोई भी देश इस तरह की परियोजना को सहन नहीं कर सकता है, जो उसकी संप्रभुता व एकता पर चोट पहुंचाता हो। हमारा यह भी मानना है कि कनेक्टिविटी से जुड़ा कोई भी मुद्दा वैश्विक मान्य अंतरराष्ट्रीय नियम, कानून सम्मत, पारदर्शी होनी चाहिए व इससे किसी भी देश की संप्रभुता व एकता को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।''

जानकारों की मानें तो तकरीबन दस दिन पहले भारत और चीन के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए गठित विशेष व्यवस्था के तहत हुई बातचीत में यह मुद्दा उठा था। उसके पहले भी विदेश सचिव विजय गोखले की चीन यात्रा के दौरान भी बीआरआइ का मुद्दा मुख्य चर्चा के केंद्र में रहा था। हाल के दिनों में दोनो पक्षों की तरफ से इस बात के संकेत दिए गए हैं कि डोकलाम मुद्दे के बाद रिश्तों में जो तनाव घुला है उसे वह खत्म करने के लिए तैयार है। अगले कुछ महीनों के दौरान भारत और चीन के बीच कई उच्चस्तरीय दौरे होने वाले है। भारत के पीएम नरेंद्र मोदी जून, 2018 में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में हिस्सा लेने के लिए चीन जाएंगे जहां राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ उनकी द्विपक्षीय वार्ता भी तय है। शंघाई सहयोग संगठन का पूर्ण सदस्य बनने के बाद इसकी घोषणा पत्र को तय करने में भारत का भी योगदान होगा। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि चीन भारत के इस प्रस्ताव को लेकर क्या रवैया दिखाता है।


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