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गुरबत की बेड़ियां तोड़ सम्मान से हुईं खड़ी हुईं महिलाएं, अब बन रही हैं दूसरों के लिए नजीर

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा की बदलती तस्वीर अब नजीर बनने लगी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 20 Jan 2020 03:04 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2020 05:36 PM (IST)
गुरबत की बेड़ियां तोड़ सम्मान से हुईं खड़ी हुईं महिलाएं, अब बन रही हैं दूसरों के लिए नजीर
गुरबत की बेड़ियां तोड़ सम्मान से हुईं खड़ी हुईं महिलाएं, अब बन रही हैं दूसरों के लिए नजीर

रायपुर [संजीत कुमार]। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा क्षेत्र में मेहरार चो मान (औरत का सम्मान) योजना ने आदिवासी महिलाओं को समता और सम्मान के साथ जीने की नई राह दिखाई है। इस योजना से जुड़ी स्वयं सहायता समूह की अनेक महिलाएं ई-रिक्शा चलाने से लेकर कड़कनाथ मुर्गा पालन, सैनेटरी पैड निर्माण जैसे स्वउद्यम कर अपनी और परिवार की तरक्की तय कर रही हैं। अति पिछड़े जिलों को विकास की धारा में लाने के लिए पीएम आकांक्षी जिला योजना में दंतेवाड़ा भी शामिल है। यह प्रयास इसी दिशा में अमल में लाया गया है। अब महिलाओं को उनके घर में ही रोजगार मिल रहा है। यही कारण है कि ई-रिक्शा चलाकर यात्रियों को मंजिल तक पहुंचाने वाली महिलाओं की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मन की बात’ रेडियो कार्यक्रम में कर चुके हैं। 

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नई दिशा महिला स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष निकिता मरकाम कहती हैं कि ग्राम संगठन के माध्यम से सैनेटरी पैड के निर्माण का काम किया जाता है, ग्राम संगठन में कुल 19 महिला स्वसहायता समूह जुड़े हुए हैं। समूह की 10 महिलाएं सैनेटरी पैड बनाने का काम करती हैं, वहीं कुछ महिलाएं कड़कनाथ मुर्गा पालन, मध्याह्न भोजन और चूड़ी खरीद कर बेचने का काम करती हैं। इससे उन्हें पांच से छह हजार रुपये महीने की कमाई हो जाती है। यह राशि उनके परिवार को सम्मानपूर्ण आजीविका देने में बड़ी सहायक सिद्ध हुई है। इससे उनमें जीवन के प्रति विश्वास जागा है और अब बेहतर जीवन स्तर को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हुई हैं।

मरकाम ने बताया कि उनके समूह ने बैक लिंकेज के माध्यम से पहले तीन लाख, उसके बाद दोबारा एक लाख रुपये का लोन लिया था। इसका पूरा भुगतान कर दिया है। अब काम के लिए फिर से तीन लाख रुपये लेने की योजना बना रहीं हैं। समूह की सदस्या निकिता कहती हैं कि पहले थोड़ी घबराहट थी पर अब उन्हें विश्वास है कि सभी मिलकर बैंक का पूरा पैसा समय पर वापस कर देंगी। 12वीं तक पढ़ी निकिता ने बताया कि उसके समूह की 3-4 महिलाएं ही 8वीं से 12वीं तक पढ़ी हैं। कम पढ़ी-लिखी होने के कारण उनके पास रोजगार की समस्या थी, लेकिन समूहों और ग्राम संगठन से जुड़ने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी है और महिलाएं बहुत खुश हैं।

कड़कनाथ पालन से 1.20

लाख की कमाई समूह की सदस्या अनीता ठाकुर ने बताया कि जिले के सेनेटरी पैड निर्माण से महिलाएं हर माह चार से पांच हजार रुपये की कमाई कर लेती हैं, तो वहीं समूह की दूसरी महिलाएं ईंट बनाने, साग-सब्जी उत्पादन और बेचने, मध्याह्न भोजन बनाने के अलावा कड़कनाथ मुर्गा पालन का काम करती हैं। उन्होंने बताया कि सरकार की तरफ से उन्हें मुर्गा पालन के लिए शेड निर्माण करके दिया गया है। कड़कनाथ मुर्गा पालन से लगभग एक लाख 20 हजार रुपये की आमदनी हुई है।

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