छत्तीसगढ़: पति के शहादत का बदला लेने उतरी, डीआरजी की सुपर 30 महिला कमांडो
बस्तर में आतंक का जड़ जमा चुके नक्सलियों को उखाड़ फेंकने अब डीआरजी की महिला कमांडोज सुपर-30 उतर चुकी हैं। नक्सलियों ने ने ही महिला कमांडो के परिवार का कत्लेआम किया है।
दंतेवाड़ा। [योगेन्द्र ठाकुर]। बस्तर में आतंक का जड़ जमा चुके नक्सलियों को उखाड़ फेंकने अब डीआरजी की महिला कमांडोज सुपर-30 उतर चुकी हैं। इन सभी महिला कमांडोज का अपना अलग- अलग गहरा दर्द है। समर्पित महिला नक्सली को संगठन में रहने का भी लाभ नहीं मिला। साथियों ने ही उनके परिवार का कत्लेआम किया।
इधर शहादत को सलाम करते पति के लक्ष्य को पूरा करने पत्नी ने नक्सलियों के खिलाफ बंदूक उठाई है। इसी तरह सुपर-30 की हर महिला कमांडोज के मन में नक्सलियों के खिलाफ आक्रोश भरा है। पुलिस अधिकारियों ने ऐसे ही 30 महिलाओं को एकत्र कर डीआरजी की सुपर-30 तैयार की है। इस सुपर-30 की आधे फाइटर्स को अधिकारियों ने लाल लड़ाकों के सामने बुधवार को उतारा था। बस्तर में चल रहे अघोषित युद्ध में इनका पराक्रम देखने को मिला। पहली लड़ाई में ही अपनी काबिलियत दिखा दी।
दर्द-जुनून और नक्सलियों के खिलाफ आक्रोश का मिश्रण है सुपर-30
बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ अब महिला कमांडोज को उतारा गया है। बुधवार को दंतेवाड़ा- सुकमा बार्डर के गोंडेरास मुठभेड़ में ये महिला फाइटर्स शामिल रही। इनका चयन अधिकारियों ने बड़ी सोच और दूरगामी परिणाम के लिए किया है। इन सुपर-30 कमांडोज में ऐसी युवती और महिलाओं को रखा गया है। जो स्थानीय बोली-भाषा और भौगोलिक परिस्थितियों को समझती है। इतना ही नहीं ये लोग भी नक्सलियों के सताए हुए। चाहे आम घरेलू महिला रही हो या नक्सलियों के संगठन पर जिम्मेदार पदों पर। उनका आक्रोश, दर्द और जुनून को देखते अधिकारियों ने 30 विशेष महिला फाइटर्स को लाल लड़ाको के खिलाफ मैदान में उतारा है। इनमें सलवा जुडूम में परिजनों को खोने वाली महिलाओं से लेकर नक्सली हिंसा में शहीद होने वाले जवानों की पत्नियां ही नहीं लाल गलियारे में एरिया कमेटी सचिव जैसे पर काबिज फाइटर्स भी हैं।
ऐसे तैयार हुए डीआरजी की सुपर-30 महिला कमांडो
जिले के पुलिस अधिकारियों ने सलवा जुडूम के बाद बने सहायक आरक्षक, गोपनीय सैनिक, आत्म समर्पित नक्सली और उनकी पत्नियों के साथ शहीद जवानों की पत्नियों को शामिल किया है। जिन्हें जंगलवार कैंप की विशेष ट्रेनिंग के साथ नक्सलियों से सामना करने हर तरह दक्ष किया है। आधुनिक और पारंपरिक हथियार के साथ बाइक चलाना में भी तैयार किया जा रहा है। टीम की आधी महिलाएं अभी बाइक में फरर्राटा भरने के साथ तैराकी भी जानती हैं। बेसिक कोर्स के साथ कांकेर में 45 दिन का गुरिल्लावार का प्रशिक्षण दिया गया है। इसके अलावा प्रतिदिन सुबह पुलिस ग्राउंड में प्रैक्टिस कराया जा रहा है।
पति को शहादत करने वाले को चुन-चुनकर मारना
सुपर-30 की फाइटर्स मधु पोडियाम कभी घरेलू महिला थी। खेत और घर के काम के बाद परिवार में उलझी रही। आज हाथों में बंदूक थामे नक्सिलियों के खिलाफ खड़ी है। मधु कहती है तो नक्सलियों को चुन-चुनकर मारना है। उसने मेरा सुहाग ही नहीं कई परिवार को उजाड़ दिया है। अब नक्सलियों से जब भी सामना होगा, मैं नहीं मेरा बंदूक बात करेगा। मधु के पति नक्सली मुठभेड़ में शहीद हो गए तो वह बच्चे और बुजुर्ग सास-ससूर की देखभाल के लिए फोर्स में भर्ती हो गई।
कमेटी सचिव रही पिफर भी मारा पिता को
करीब सात साल पहले आत्म समर्पित करने वाली नेशनल पार्क एरिया कमेटी की सचिव बसंती उरसा का दर्द भी जुदा नहीं है। वह नक्सली संगठन के जिम्मेदार पद पर रही लेकिन नक्सलियों ने उसकी बगैर जानकारी के पिता और चाचा की हत्या कर दी। सिर्फ इसलिए वह गांव पंच बनकर विकास करना चाहता था। नक्सलियों का यह क़त्य बसंती को भीतर तक झझकोर दिया कि वह 2012 में सरेंडर कर पुलिस के लिए काम करने लगी। आज महिला फाइटर्स की सुपर-30 का हिस्सा है।
समझ में आते ही छोड़ आई पार्टी
भांसी इलाके की रहने आत्मसमर्पित नक्सली सुनीता कहती है कि मुझे डरा- धमकाकर नक्सली संगठन में शामिल कर लिए थे। तब मैं बच्ची थी लेकिन बड़े होने के बाद समझ में आया कि यह गलत है तो 2014 में छोड़ आई नक्सल संगठन। मैंने नक्सल पार्टी में रहकर अपना बहुत कुछ खोया है। अब उसकी भरपाई तो हो नहीं सकती लेकिन किसी और बच्ची को नक्सल संगठन में जाने से रोकने के लिए लीडरों को मार भगाने की बात कहती है।
जंगल में छिपते पिफर रहा था अब नक्सलियों को खोजता हूं
कभी फोर्स की डर से जंगल में छिपते ग्रामीणों को डराते- धमकाते रहे, लेकिन अब उन्हीं ग्रामीणों के बीच सुकुन मिल रहा है। परिवार के साथ रहने से जिंदगी बढ़़ रही है। यह बात दो साल पहले अपनी प्रेमिका के साथ आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली सन्नु तारम का है। सन्नु आज पुलिस लाइन में रहकर फोर्स के लिए काम कर रहा है। उसके साथ उसकी पत्नी और प्रेमिका भी रहती है। ये भी कभी नक्सली लीडर हुआ करती थी। सन्नु अपनी प्रेमिका आयती के साथ 2017 में पुलिस के समक्ष हथियार डाला था। तब वह सेक्शन प्लाटून नंबर 2 का कमांडर था। उसकी प्रेमिका आयती भी एलजीएस की डिप्टी कमांडर थी। सन्नु के सरेंडर के बाद उसकी पत्नी सुशीला तारम भी सितंबर 2018 में नक्सली संगठन छोड़कर पुलिस के पास आ गई। अब दोनों महिलाएं डीआरजी का हिस्सा बनकर लाल लड़ाकों को मात देना चाहती हैं। उनका कहना है कि नक्सल संगठन में आजादी नहीं है। न परिवार के साथ रह सकते हैं और मिलने दिया जाता है। विवाह के बाद भी पति के साथ रहने नहीं देते हैं। पति का नसबंदी करा दिया था। जबकि हम मात़त्व सुख लेना चाहती थी। अपनी बात रखने पर लीडर मारपीट भी करते थे। समाज के ऐसे दुश्मनों को मार भगाना ही समाज सेवा है।
''दंतेवाड़ा में नक्सलियों से सामना करने के लिए डीआरजी में बेहतरीन कमांडो हैं। डीआरजी से नक्सली खौफ खाते है। इस टीम स्थानीय लोग और जानकार रखे गए हैं। अब डीआरजी की नई टुकड़ी महिलाओं की बनाई गई है। जिसमें चुनिंदा 30 कमांडोज को शामिल किया है। इनका चयन करने में काफी दिक्कत हुई लेकिन डीएसपी दिनेश्वरी नंद के नेत़त्व में ये सुपर-30 महिला फाइटर्स बेहतर परिणाम देने तैयार हैं। इस टीम में आत्मसमर्पित नक्सली और शहीद जवानों के साथ स्थानीय बोली-भाषा और भौगोलिक परिस्थिति के जानकारों का शामिल किया गया है। ये सभी तरह के हथियार चलाने के साथ तैराकी और बाइक चलाने में भी दक्ष हैं। महिला कमांडोज को नक्सल मोर्च पर भेजने के कई लाभ मिलेंगे। महिला नक्सलियों की गिरफ्तारी से लेकर उनके सामने फायर खोलने में ये सुपर-30 फाइटर्स नहीं हिचकिचाएंगे।
-डॉ अभिषेक पल्लव, एसपी दंतेवाड़ा
''नारी अब अबला और कमजोर नहीं है, हर क्षेत्र में अपनी मौजूगदगी दर्शा रहीं है। चाहे वह नक्सल मोर्चा ही क्यों न हो। हमारी टीम बुधवार को पुरूष जवानों के साथ गोंडेरास के जंगल में पहुंची थी। जहां दो नक्सलियों का मार गिराया और एक महिला नक्सली का शव भी बरामद किया। यहां तक तक उस शव का पोस्टमार्टम की कार्रवाई भी सुपर-30 की महिला फाइटर्स ने पूरी करवाई है। सुपर-30 की युवतियों में अदम्य साहस और हौसला है।
-दिनेश्वरी नंद, डीएसपी एवं प्रभारी डीआरजी महिला कमांडोज
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