छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कहा- विधायिका के कार्य में हस्तक्षेप करना उचित नहीं
कोर्ट सरकार को किसी अध्यादेश को विधानसभा में रखे जाने के लिए रिट ऑफ मैनडामस जारी नहीं कर सकती।
राज्य ब्यूरो, बिलासपुर। आर्थिक रूप से कमजोर आय वर्ग के सवर्णो को नौकरी में 10 फीसद आरक्षण की मांग को लेकर दायर याचिका को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ताओं ने राज्य शासन द्वारा जारी अध्यादेश का हवाला देते हुए नौ फरवरी से शुरू हो रहे राज्य लोक सेवा आयोग (पीएससी) की प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण की मांग की थी।
विधायिका के कार्य में न्यायपालिका का हस्तक्षेप कतई उचित नहीं- हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने व्यवस्था देते हुए कहा है कि विधायिका के कार्य में न्यायपालिका का हस्तक्षेप कतई उचित नहीं है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि एक बार अध्यादेश की वैधता समाप्त हो जाने के बाद कोर्ट उक्त अध्यादेश के अंतर्गत कोई आदेश जारी नहीं करेगा।
सवर्णो को नौकरी में आरक्षण मामले में याचिका को कोर्ट ने किया खारिज
विक्रम सिंह, अरुण पाठक और इरफान कुरैशी ने हाई कोर्ट में तीन अलग-अलग याचिकाएं दायर की थीं। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 13 नवंबर 2019 को राज्य शासन ने एक अध्यादेश जारी कर आर्थिक रूप से कमजोर आय वर्ग के सवर्णो को नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की घोषणा की थी। नियमानुसार अध्यादेश को छह सप्ताह के भीतर विधानसभा के पटल पर रखना था और इसे पारित कराना था। सत्ताधारी दल ने ऐसा नहीं किया। बुधवार को मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस गौतम भादुड़ी ने फैसला सुरक्षित रखा लिया था। शुक्रवार को आरक्षण से संबंधित याचिका पर हाई कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए इसे खारिज कर दिया है।
हाई कोर्ट के फैसले की चार प्रमुख बातें
अध्यादेश का लाभ नहीं दिया जा सकता
कोर्ट ने कहा की अनुच्छेद 213 के अंतर्गत लाए गए अध्यादेश को विधानसभा के सत्र आहूत होने के छह सप्ताह के भीतर पारित किए जाने का स्पष्ट उल्लेख अनुच्छेद 213(2) में वर्णित है। अत: दो अक्टूबर 2019 को सत्र आहूत होने के बाद छह सप्ताह का समय 13 नवंबर 2019 को समाप्त होने से उक्त अध्यादेश स्वत: समाप्त हो गया है। इस कारण उक्त अध्यादेश का लाभ 27 नवंबर 2019 को जारी किए गए विज्ञापन में नहीं दिया जा सकता।
सत्र को लेकर कोर्ट ने खारिज की खाचिका
यचिकाकर्ता के उक्त तर्क को कि दो अक्टूबर का सत्र विशेष सत्र था ना कि किसी विधेयक अथवा अन्य वैधानिक कार्य के लिए। इस कारण छह सप्ताह के सीमा की गणना 25 नवंबर के सत्र दिनांक से की जानी चाहिए, उक्त तर्क को कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज किया की संविधान के अनुचछेद 174 में ऐसी व्याख्या को शामिल करना 174 के शब्दों में अपने शब्द जोड़ना जैसा होगा, अत: ये उचित नहीं है।
विधानसभा का सत्र आहूत करने का अधिकार राज्यपाल को है
संविधान के अनुच्छेद 174 राज्यपाल को विधानसभा का सत्र आहूत करने की अधिकारिता देता है , परंतु यह अधिकार विधायी कार्य अथवा अन्य किसी कार्य के रूप में विभाजन करने या अलग-अलग सत्र की व्याख्या का अधिकार नहीं है। इस कारण 174 के अंतर्गत समान्य अथवा विशेष सत्र को अलग-अलग सत्रों के रूप मे व्याख्या करना अनुचित है।
कोर्ट सरकार को किसी अध्यादेश को सदन में लाने के लिए नहीं कह सकती
अगर राज्य सरकार ने ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए अध्यादेश को विधानसभा के पटल पर नहीं लाने का निर्णय लिया है तो कोर्ट सरकार को किसी अध्यादेश को विधानसभा में रखे जाने के लिए 'रिट ऑफ मैनडामस' जारी नहीं कर सकती।