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अभयारण्य क्षेत्र से भी बाहर निकल कर गांव से लगे खेतों में पहुंचा 50 हाथियों का दल

हाथियों का जितना बड़ा दल होगा उससे जनहानि की संभावना भी उतनी ही कम रहती है। बड़े दल में रहने वाले हाथी सुरक्षा को लेकर निश्चिंत रहते है। एक साथ रहने के कारण उनके व्यवहार में परिवर्तन भी होता है। इसके कई उदाहरण भी सामने आ चुके है।

By Manish PandeyEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 08:43 AM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 08:43 AM (IST)
अभयारण्य क्षेत्र से भी बाहर निकल कर गांव से लगे खेतों में पहुंचा 50 हाथियों का दल
गन्ना के अलावा धान हाथियों को बेहद पसंद है।

अंबिकापुर, जेएनएन। छत्तीसगढ़ में हाथियों से सर्वाधिक प्रभावित सरगुजा वनवृत्त है। खरीफ की खेती के सीजन को छोड़ दें तो हाथी छोटे-छोटे दल में विचरण करते है। तैमोर पिंगला अभयारण्य, गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र के हाथी भी चारा-पानी के लिए वहीं निर्भर रहते है, लेकिन खरीफ खेती के सीजन में हर वर्ष कई दल के हाथी सूरजपुर जिले के प्रतापपुर क्षेत्र में मिल जाते है। गन्ना के अलावा धान हाथियों को बेहद पसंद है। इस सीजन में प्रतापपुर वन परिक्षेत्र के बड़े रकबे में गन्ना एवं धान की खेती की जाती है यही वजह है कि हाथी इन फसलों को खाना ज्यादा पसंद करते है। चारा, पानी की पर्याप्त उपलब्धता के कारण वर्तमान में प्रतापपुर रेंज के धरमपुर, भरदा क्षेत्र में एक साथ पचास से भी अधिक हाथियों की मौजूदगी है।

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पिछले कई वर्षों के स्थानीय स्तर के अनुभव यह बताते है कि है कि खरीफ के इस सीजन में प्रतापपुर वन परिक्षेत्र में पर्याप्त धान, नदी -नालों में पानी की पर्याप्त उपलब्धता की वजह से कई हाथियों के एक जगह जमा होने के बावजूद उन्हें दिक्कत नहीं होती। लगभग दो महीने तक हाथी एक साथ ही रहेंगे। रात को छोटे दल में बंट कर भोजन के बाद सुबह हाथी फिर एक साथ मिल जाते है। यह अनुकूल परिस्थिति हाथियों के सुरक्षित रहवास का भी माध्यम बनता जा रहा है। भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने दो वर्षों तक सरगुजा वन वृत्त में हाथियों के व्यवहार को लेकर अध्ययन किया है। उस दौर में स्थानीय अधिकारी कर्मचारियों के अलावा हाथी प्रभावित क्षेत्र के गांवों के उत्साही युवाओं ने भी उनके साथ काम किया।

हाथी मित्र दल के सदस्य भी हाथियों के पसंदीदा आहार, व्यवहार को लेकर काफी जानकारी एकत्रित करने में सफल रहे। इस अध्ययन से यह स्पष्ट हो चुका है कि हाथियों का पूरा संघर्ष भी भोजन और सुरक्षित वनक्षेत्र में रहवास को लेकर है। सामाजिक प्राणी के रूप में उनकी पहचान इसलिए भी खास है कि खरीफ के इस सीजन में यदि एक साथ कई हाथी के दल मिल भी जाते है तो उन्हें पेट भरने की चिंता नहीं रहती क्योंकि जिस क्षेत्र में भी वे जाते है वहां धान के लहलहाते खेत ही नजर आते है। पिछले तीन-चार वर्षों से यह देखा गया है कि सूरजपुर जिले के मोहनपुर, बोझा, सोनगरा, धरमपुर, सिंघरा, भरदा सहित आसपास के गांव के जंगल में हाथियों के कई छोटे दल एक साथ आकर रहने लगते है। दिन भर जंगल मे रहने के बाद शाम को हाथियों के छोटे दल आसपास के दस से पंद्रह किलोमीटर दूर तक जाकर रात भर खेतों में फसल खा पेट भरने के बाद सुबह फिर एक साथ किसी एक जंगल मे घुस जाते है।

दो साल पहले मोहनपुर में जमा हुए थे लगभग सत्तर हाथी

खरीफ खेती के सीजन में हाथियों के एक साथ रहने की परंपरा पुरानी है लेकिन हाल फिलहाल में हाथियों का यह सामाजिक व्यवहार दो साल पहले पुख्ता होकर सामने आया जब मोहनपुर जंगल में एक साथ पैंसठ से सत्तर हाथी लगभग दो महीने तक जमे रहे ।जंगल के नजदीक तालाब में लबालब पानी भरा होने के कारण प्यास बुझाने की चिंता भी नहीं रही। शाम को हाथी जंगल से निकल पहले तालाब में पहुंचते। काफी देर तालाब के भीतर रूकने के बाद वे खेतों में घुस जाया करते थे।पिछले साल भी पचास से अधिक हाथियों की मौजूदगी इसी जंगल मे रही। इस वर्ष हाथी प्रतापपुर क्षेत्र के धरमपुर इलाके के जंगल में पहुंच चुके है।

एक -दो हाथियों से खतरा अधिक

हाथियों का जितना बड़ा दल होगा उससे जनहानि की संभावना भी उतनी ही कम रहती है। बड़े दल में रहने वाले हाथी सुरक्षा को लेकर निश्चिंत रहते है। एक साथ रहने के कारण उनके व्यवहार में परिवर्तन भी होता है। इसके कई उदाहरण भी सामने आ चुके है। दल में रहने वाले हाथियों की तुलना में अकेले या दल से बिछड़ने वाले हाथियों की वजह से जनहानि की घटनाएं ज्यादा हुई है। एक-दो हाथी रहने पर जनहानि की संभावना ज्यादा रहती है क्योंकि उन्हें अपने सुरक्षा की चिंता भी होती है। इंसानों को देखते ही अकेले विचरण करने वाला जंगली हाथी सीधे हमला करता है। सूरजपुर जिले के श्रीनगर व भैयाथान ब्लॉक में दो वर्ष पहले दल से बिछड़ कर पहुंचे हाथी ने दो दिन में सात लोगों को मार डाला था।

धान की फसल कटते ही विचरण क्षेत्रों में लौटने लगेंगे हाथी

सूरजपुर जिले के प्रतापपुर वन परिक्षेत्र में पचास से अधिक हाथियों की एक ही जंगल मे मौजूदगी धान की फसल कटने के साथ ही कम होने लगेगी। खरीफ खेती के सीजन के अलावा वर्ष भर जिन क्षेत्रों में छोटे दल में हाथी विचरण करते है वहां के लिए रवाना हो जाएंगे। इसी सीजन में किसी भी एक जंगल मे रहकर आसपास भ्रमण कर हाथियों को पर्याप्त चारा मिल सकता है। गर्मी में हाथी पूरी तरह से जंगल पर ही निर्भर हो जाते है।कम संख्या में एक जंगल में रहने पर हाथियों को भोजन की दिक्कत नहीं होती। बरसात में भी नदी, नालों के पूरे उफान पर रहने के कारण हाथी एक निश्चित वन क्षेत्र में ही रहना पसंद करते है।हाथी प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों को भी हाथियों के व्यवहार का काफी हद तक ज्ञान हो चुका है। किस सीजन में हाथी किस क्षेत्र में रहना पसंद करते है इसकी जानकारी मिल जाने के कारण डेढ़ सौ हाथियों की मौजूदगी वाले सरगुजा वन वृत्त में वन अमले को भी सिर्फ हाथियों को असुरक्षित तरीके से खदेड़ने वालों पर ही ज्यादा निगरानी करनी पड़ती है।

 खेतों में धान इसलिए अभयारण्य व राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र से भी बाहर निकले हाथी

* सरगुजा वनवृत्त में में 156 हाथियों की मौजूदगी।

* तमोर पिंगला अभयारण्य के 29 हाथी प्रतापपुर वन परिक्षेत्र में घुसे।

* तमोर पिंगला से ही आठ हाथियों का दल बलरामपुर वनमंडल के रघुनाथनगर वन परिक्षेत्र में प्रवेश कर चुका है।

* गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में रहने वाले सात हाथी कोरिया, सूरजपुर जिले के बाद सरगुजा जिले के उदयपुर, लखनपुर वन परिक्षेत्र के सीमावर्ती जंगल मे पहुंचा।

यह हाथियों की आदत में शामिल

भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों और वन विभाग के साथ मिल कर कई वर्षों से हाथियों के प्रबंधन, जानमाल की सुरक्षा तथा उनके व्यवहार का अध्ययन करने वाली टीम का हिस्सा रहे प्रभात दुबे बताते है कि हाथी, एक सामाजिक प्राणी है। जिस प्रकार इंसानों के यहां कोई कार्यक्रम होता है तो सारे रिश्तेदार कुछ दिनों तक साथ रहते है वैसा ही सामाजिक व्यवहार हाथियों में भी देखने को मिलता है। धान की खेती का यह समय हाथियों को नजदीक लाने के लिए उपयुक्त होता है। उनके समक्ष चारा की कोई दिक्कत नहीं होती। एक साथ कई दल मिल जाने से वे अपनी सुरक्षा को लेकर भी निश्चिंत रहते है। इस सीजन में हाथी फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान जरूर पहुंचाते हैं लेकिन जनहानि की संभावना कम रहती है। पिछले कई वर्षों से प्रतापपुर व सूरजपुर वन परिक्षेत्र में इस सीजन में 50 से 70 हाथी जमा होते है। ठंड कस सीजन समाप्त होते ही हाथी भी अपने दल के सदस्यों के साथ पुराने विचरण क्षेत्रों के लिए रवाना होते है। पर्याप्त चारा की वजह से ही हाथियों के स्वास्थ्य के दृष्टि से इस सीजन को सबसे अनुकूल माना गया है। अभी जिस क्षेत्र में सिर्फ एक या दो हाथी है वहां जनहानि का खतरा अधिक रहता है, क्योंकि खुद की सुरक्षा की चिंता में अकेले रहने वाले हाथी का व्यवहार ज्यादा आक्रामक हो जाता है।


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