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इंसान और हाथियों के बीच बेकाबू होती जा रही है वर्चस्व की लड़ाई

छत्तीसगढ़, झारखंड, असम, प. बंगाल जैसे राज्यों में दिनों दिन बिगड़ रहे हालात, जंगलों का उजड़ना है असल वजह

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 02 Jan 2018 09:31 AM (IST)Updated: Tue, 02 Jan 2018 09:32 AM (IST)
इंसान और हाथियों के बीच बेकाबू होती जा रही है वर्चस्व की लड़ाई
इंसान और हाथियों के बीच बेकाबू होती जा रही है वर्चस्व की लड़ाई

बिलासपुर (मनोज गुप्ता)। छत्तीसगढ़, असम, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे पूर्वी राज्यों में हाथी और इंसान के बीच वर्चस्व की लड़ाई बेकाबू होती जा रही है। लगातार उजड़ते जंगलों ने गजराज के प्राकृतिक आवास को तहस-नहस कर दिया है। जीवित रहने के लिए इंसानी आबादी में सेंध लगाना हाथियों की मजबूरी को बयां कर रहा है। इस संघर्ष में दोनों ओर से जाने जा रही हैं। वर्ष 2013 से लेकर फरवरी 2017 तक देश में हाथियों के हमलों में 1,465 लोगों की मौत हुई, जबकि 100 से अधिक हाथी मारे गए। 

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उक्त जानकारी अक्टूबर 2017 को वन एवं पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने संसद में दी। आंकड़ा यहीं नहीं थमा। अक्टूबर से दिसंबर 2017 के बीच असम में 40 हाथियों की मौत का चौंकाने वाला घटनाक्रम सामने आया। पूर्वी राज्यों से हर दूसरे दिन आ रही खबरें इस चिंता को लगातार बढ़ा रही हैं।

हर दिन बढ़ रहा खूनी संघर्ष

छत्तीसगढ़ के 27 में से 17 जिले हाथियों के उत्पात से प्रभावित बताए जा रहे हैं। झारखंड के भी दर्जनभर जिले इससे प्रभावित हैं। भोजन की तलाश में हाथी खेतों एवं घरों तक पहुंच रहे हैं। जो भी उनके आगे आता है, उसे वे रौंद डालते हैं।

दिसंबर 2017 में छत्तीसगढ़ के वनमंत्री महेश गागड़ा ने विधानसभा में बताया कि मानव-हाथी द्वंद में पिछले पांच सालों में 199 लोगों और 60 हाथियों की मौत हुई। वहीं इसी अवधि में हाथियों ने करीब 7000 घरों को हाथियों ने तोड़ा व 32 हजार 9 सौ 52 हेक्टेयर फसल को नुकसान पहुंचाया।

प्रभावित परिवारों को 40 करोड़ रुपये का मुआवजा बांटा गया। 2017 में ही हाथियों के हमले में यहां 46 लोगों की मौत हुई। राजधानी रायपुर एवं इससे सटे इलाकों में भी हाथियों का झुंड पहुंचने लगा है।

इस तरह हो रहा बचाव

हाथियों को जंगल में घेरे रखने के लिए कॉरीडोर बनाने से लेकर इलेक्ट्रिक फेंसिंग जैसे कुछ उपाय किए गए, लेकिन बात नहीं बनी। सरगुजा के वन्य क्षेत्र अधिकारी केके बिसेन के मुताबिक लोगों को जागरूक किए जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं दिख रहा है। रोजाना हाथियों की लोकेशन ट्रैक की जा रही है और शाम को रेडियो से प्रसारण कर लोगों को सचेत किया जा रहा है। समझाइश के बाद भी लोग हाथियों को खदेड़ने की कोशिश में जान गंवा बैठते हैं।

किया जा रहा साझा प्रयास

छत्तीसगढ़ के वन्य जीव संरक्षण अधिकारी डॉ.आरके सिंह के अनुसार, हाथियों की समस्या से निपटने के लिए झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार एवं अन्य राज्यों से समझौता प्रस्तावित है। रेस्क्यू के लिए वाइल्ड लाइफ एसओएस सहित अन्य संस्थाओं से तकनीकी सहायता ली जा रही है।

बदल रहा हाथियों का व्यवहार 

वन्यजीव विशेषज्ञ अमलेंदु मिश्र बताते हैं कि हाथियों के व्यवहार में आ रहा बड़ा बदलाव बेहद चिंतनीय है। यह बदलाव भोजन के लिए लगातार बढ़ते संघर्ष का परिणाम है।

ट्रेन-सड़क दुर्घटना भी एक वजह 

असम में 2006 से 2017 के बीच 250 हाथी ट्रेन हादसे का शिकार हो चुके हैं। सड़कों पर दुर्घटना के कारण भी हाथी मारे जा रहे हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने इससे निबटने के लिए रांची से जमशेदपुर फोरलेन के साथ- साथ एलिफेंट पास बनाने की योजना बनाई है। वहीं रेलवे ट्रैक से इन्हें दूर रखने के लिए मधुमक्खियों की भिनभिनाहट वाले तेज शोर का इस्तेमाल शुरु हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट भी लगा चुका फटकार 

हाथियों की मौत के मामले में देश की सर्वोच्च अदालत भी राज्य सरकारों से जवाब मांग चुकी है। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा हाथियों को बांझ बनाने और उन्हें गर्भनिरोधक दिए जाने पर राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कोर्ट ने इसे निंदनीय कृत्य बताया था। सर्वोच्च अदालत ने रेलवे को वन क्षेत्र में ट्रेन की गति कम करने के निर्देश भी दिए थे।


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