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बिकाऊ है 3600 मेगावाट का बिजली प्रोजेक्ट, अडानी और जिंदल ने दिखाई रुचि

छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में अकलतरा तहसील के नरियरा इलाके में 2700 एकड़ में वर्ष 2008 में प्लांट स्थापित किया गया था। दरअसल 6 गुणा 600 अर्थात कुल 36 मेगावाट बिजली उत्पादन के प्लांट स्थापित किए जाने थे। सिर्फ तीन यूनिट ही स्थापित हो सकी।

By Tilak RajEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 09:57 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 09:57 PM (IST)
बिकाऊ है 3600 मेगावाट का बिजली प्रोजेक्ट, अडानी और जिंदल ने दिखाई रुचि
घाटे में चलने के कारण कंपनी पर 20 हजार करोड़ रुपये का कर्ज

जांजगीर-चांपा, कोमल शुक्ला। दो साल से नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के अधीन काम कर रही केएसके महानदी पॉवर कंपनी लिमिटेड बिकने के कगार पर है। कंपनी पर बैंकों का तकरीबन 20 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। लिहाजा, कर्ज से उबरने और देनदारी चुकाने के लिए कंपनी ने पॉवर प्लांट बेचने का फैसला लिया है। प्लांट को खरीदने में वेदांता, अडानी और जिंदल उद्योग समूह ने रुचि दिखाई है। जिंदल समूह के नवीन जिंदल प्लांट का दौरा कर चुके हैं, वहीं अडानी व वेदांता कंपनियों के प्रतिनिधि भी प्लांट का जायजा ले चुके हैं।

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छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में अकलतरा तहसील के नरियरा इलाके में 27,00 एकड़ में वर्ष 2008 में प्लांट स्थापित किया गया था। दरअसल, 6 गुणा 600 अर्थात कुल 36 मेगावाट बिजली उत्पादन के प्लांट स्थापित किए जाने थे। सिर्फ तीन यूनिट ही स्थापित हो सकी। 12 साल बाद भी तीन यूनिट का निर्माण अधूरा है। फिलहाल, कुल 18 सौ मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। प्लांट की स्थापना के दौर से ही भू-अर्जन, मुआवजा व पुनर्वास राशि को लेकर विवाद चल रहा है। इसकी वजह से 600-600 मेगावाट की तीन यूनिटों का निर्माण ही नहीं हो सका। कंपनी का खुद का कोल ब्लाक नहीं होने के कारण महंगे दामों पर कोयला खरीदना पड़ रहा है। लगातार घाटे में चलने के कारण कंपनी पर 20 हजार करोड़ रुपये का कर्ज हो गया है।

एनसीएलटी पिछले दो साल से प्लांट का संचालन कर रही है। कर्ज वसूली के लिए कंपनी की बिक्री की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। इसके लिए रिजाल्युशन प्रोफेशनल (समाधान पेशेवर) की नियुक्ति भी की गई है। जनसंपर्क अधिकारी पंकज त्रिवेदी का कहना है कि कॉरपोरेट ऑफिस स्तर का मामला होने के कारण उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं है। हालांकि, उन्होंने ट्रिब्यूनल के अधीन कंपनी के संचालन की बात स्वीकारी।

क्यों हुई कंपनी की बुरी स्थिति

कंपनी शुरुआती दौर से ही विभिन्न विवादों में घिर गई। रोगदा बांध के अधिग्रहण मामले की जांच के लिए विधानसभा स्तरीय समिति भी बनी थी। आए दिन श्रमिकों की हड़ताल, मजदूर व प्रबंधन के बीच हिंसात्मक झड़प, प्लांट के बंद होने जैसे कारणों से कंपनी को नुकसान उठाना पड़ा।


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