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अबूझमाड़ में नक्सल फरमान, पुरुषों के जंगल और बाजार जाने पर लगाई पाबंदी!

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का नया फरमान जारी हुआ है। नक्सलियों ने करीब दो दर्जन गांवों में जन अदालत लगाकर ग्रामीणों के गांव छोड़ने पर बंदिश लगा दी है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sat, 04 May 2019 01:00 PM (IST)Updated: Sat, 04 May 2019 01:00 PM (IST)
अबूझमाड़ में नक्सल फरमान, पुरुषों के जंगल और बाजार जाने पर लगाई पाबंदी!
अबूझमाड़ में नक्सल फरमान, पुरुषों के जंगल और बाजार जाने पर लगाई पाबंदी!

मो. इमरान खान, नारायणपुर। नक्सलियों के आधार इलाके में सुरक्षाबलों के बढ़ते दवाब और सरकार की आत्मसमर्पण नीति से मचे हड़कंप का नक्सलियों ने तोड़ निकालते अबूझमाड़ में नया फरमान जारी किया है। इसके तहत माड़ के करीब दो दर्जन गांवों में जन अदालत लगाकर ग्रामीणों के गांव छोड़ने पर बंदिश लगा दी है। गांव में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग नियम बनाए गए हैं।

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महिलाओं को राशन दुकान और आसपास के हाट-बाजार जाने की छूट दी गई है। वहीं युवाओं के साथ पुरुषों को जिला मुख्यालय जाने की सख्त मनाही है। किसी विशेष कार्य से जिला मुख्यालय जाना जरूरी हो तो नक्सलियों की जनताना सरकार से अनुमति लेकर नक्सलियों के एक विश्वसनीय व्यक्ति के साथ ही जाने की इजाजत है। इस फरमान की अवहेलना करने वाले आठ गांव के 31 परिवारों को नक्सली पहले ही गांव से भगा चुके हैं, जो जिला मुख्यालय में शरण लिए हुए हैं।

नक्सलियों का फरमान
मेटानार पंचायत के उपसरपंच लालूराम मंडावी ने बताया कि माड़ का माहौल गर्म है। गांव में आपसी मतभेद के चलते ग्रामीण नक्सलियों तक झूठी खबर भिजवाकर एक-दूसरे को मरवा रहे हैं। नक्सली बिना किसी ठोस आधार के जनताना सरकार के बहकावे में आकर लोगों की बेरहमी से हत्याएं कर रहे हैं। मेटानार के ही डोगाए ने बताया कि नक्सलियों ने गांव में बैठक कर साफ कह दिया है कि कोई भी आदमी गांव छोड़कर कहीं नहीं जाएगा। आदेश न मानने वालों के साथ पुलिस का मुखबिर बताकर मारपीट की जा रही है। गांव से भगा दिया जा रहा है। माड़ के टाहकाढोड, कदेर, ब्रेहबेड़ा, बालेबेड़ा, मेटानार, ताड़ोनार, गारपा, तुड़को, तुमेरादी, परियादी, ओरछापर, कोंगाली समेत कई गांवों में नक्सली बंदिश लगाने की सूचना है।

घर का रहा और न घाट का
अबूझमाड़ के टाहकाढोड़ निवासी सन्नू पुत्र सायेवी पर घर का रहा न घाट का, कहावत सटीक बैठती है। गांव के कुछ लोगों के साथ वह आत्मसमर्पण करने के लिए थाने गया था। पुलिस ने एक माह तक पूछताछ करने के बाद उसका समर्पण नहीं कराया और बुलाने पर थाने आने की बात कहकर रवाना कर दिया। सन्नू के गांव पहुंचने के बाद नक्सलियों तक खबर गई कि वह आत्मसमर्पण करके लौटा है। इस बात से नाराज होकर नक्सली उसे पकड़कर जंगल की ओर ले जा रहे थे। किसी तरह हाथ छुड़ाकर वह भाग निकला और जिला मुख्यालय में शरण लिए हुए है।

वारदात की असल वजह
ग्रामीणों ने बताया कि पिछले कुछ साल से पुलिस उनके गांव तक आ रही है और नक्सलियों के ठिकाने तक पहुंच रही है। पुलिस जब भी गांव आती है, लोगों से पूछताछ कर आगे बढ़ जाती है। इस बीच अगर मुठभेड़ हो जाती है तो नक्सली उन ग्रामीण को शिकंजे में ले लेते हैं, जो गांव आई पुलिस के जवानों से बात करते देखे जाते हैं। समर्पण नीति से नक्सलियों का कुनबा दिनों-दिन छोटा होता जा रहा है, जिससे दहशत फैलाकर वे मुख्यालय आने-जाने पर रोक लगा रहे हैं।  

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