सतत विकास और शांति के पथ पर अग्रसर पूर्वोत्तर की बदलती तस्वीर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों ने शासन और नीतियों के मामले में दिल्ली को सतत विकास और शांति के पथ पर अग्रसर पूर्वोत्तर के लोगों के करीब ला दिया है। आज यहां के लोग शेष भारत से भावनात्मक जुड़ाव महसूस कर रहे हैं।
राजू बिष्ट। भारत में पूवरेत्तर के आठों राज्यों का गौरवशाली इतिहास है। यहां की विविध जातीय परंपरा, सांस्कृतिक और भाषाई विरासत अतुलनीय है। पूर्वोत्तर के सभी राज्य मानव पूंजी, प्राकृतिक संसाधनों, जैव विविधता और प्राकृतिक सुंदरता से समृद्ध हैं। यही वजह है कि पूर्वोत्तर में अंतरराष्ट्रीय व्यापार व पर्यटन का केंद्र बनने की भरपूर संभावना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद कई मौकों पर कह चुके हैं कि पूवरेत्तर में देश के विकास का इंजन बनने की क्षमता है। सुखद है कि अब मोदी सरकार में तेजी से पूवरेत्तर की सूरत संवर रही है।
हालांकि स्वतंत्रता के बाद लगभग छह दशकों तक संभावनाओं से भरे इस क्षेत्र को दरकिनार कर दिया गया था। अशांति का हवाला देते हुए कांग्रेस सरकारों ने इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण मुद्दों को समझने और सुलझाने का कभी प्रयास ही नहीं किया। दिल्ली में बैठी उदासीन सरकारों ने हमेशा उत्तर-पूर्व से संबंधित मुद्दों को दबाने की कोशिश की, जिस कारण पूर्वोत्तर के लोगों को व्यापक भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अशांति और पिछड़ेपन की स्थिति का सामना करना पड़ा। इससे यहां के युवाओं का सरकारी तंत्र से मोहभंग हो गया और कुछ ने अपनी आवाज सुनाने के लिए हथियार उठाने का सहारा भी लिया।
पिछली सदी के नौवें और दसवें दशक के दौरान मैं मणिपुर के एक छोटे से गांव में पला-बढ़ा, जब उग्रवाद, हिंसा और राजनीतिक अशांति यहां चरम पर थी। उस समय विकास एक दूर का सपना लग रहा था। लोगों के पास आगे बढ़ने के लिए कोई रास्ता नहीं था। शायद मैं भाग्यशाली था कि मुङो अपनी योग्यता साबित करने का मौका मिल गया। वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से इस क्षेत्र में बहुत बदलाव आया है। सत्ता में आने पर प्रधानमंत्री मोदी ने सभी केंद्रीय मंत्रियों को हर पखवाड़े पूर्वोत्तर के किसी न किसी एक राज्य का दौरा करने का निर्देश दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पूर्वोत्तर क्षेत्र हमारी राष्ट्रीय नीतियों और प्राथमिकताओं के साथ एकीकृत रूप से आगे बढ़ सके। केंद्रीय मंत्रियों के लगातार दौरों ने नीति निर्माताओं और लोगों के सामने आने वाली समस्याओं के बीच समझ की खाई को पाटने में मदद की। प्रधानमंत्री स्वयं पिछले वर्षो के दौरान कई बार पूवरेत्तर के राज्यों का दौरा कर चुके हैं।
परिवर्तन का साक्षी : वर्ष 2014 के बाद से पूवरेत्तर भारत में जमीनी स्तर पर बड़े पैमाने पर परिवर्तन हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी की ‘लुक ईस्ट पालिसी’ को ‘एक्ट ईस्ट पालिसी’ में बदलने की पहल को सराहना मिल रही है। सड़क के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए सरकार बड़ा निवेश कर रही है। पूर्वोत्तर में विशेष त्वरित सड़क विकास कार्यक्रम के तहत 80 हजार करोड़ रुपये और भारतमाला परियोजना के तहत अतिरिक्त 30 हजार करोड़ रुपये दिए गए। इसी तरह भारतीय रेल अपने नेटवर्क में विस्तार के लिए व्यापक खर्च करते हुए पूवरेत्तर में हर राज्य की राजधानी को रेल संपर्क से जोड़ने में जुटा है। असम में भारत के सबसे लंबे बोगीबील रेल पुल का निर्माण पूर्वोत्तर में संपर्क में सुधार के लिए हमारी सरकार के दृढ़संकल्प को दर्शाता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा वर्ष 2002 में इस पुल की नींव रखी गई थी, जबकि मोदी सरकार ने वर्ष 2018 में इस पुल का निर्माण कार्य पूरा करवाया।
बेहतर हवाई संपर्क, स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं, पेयजल, आवास और युवाओं के लिए रोजगार के अधिक अवसर पैदा करने के लिए मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए वित्त वर्ष 2021-22 में कुल 68 हजार करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है। शिक्षा सुविधाओं में सुधार के लिए 8500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इस पूरे क्षेत्र में सरकार ने बुनियादी ढांचा सेवाओं को नाटकीय रूप से बदल दिया है। बेहतर बुनियादी ढांचा युवाओं में उद्यमिता को बढ़ावा देने और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करने में भी मदद कर रहा है।
केंद्र सरकार ने पूवरेत्तर क्षेत्र में शांति, समृद्धि और प्रगति लाने के लिए निर्णायक रूप से काम किया है। वर्ष 2015 में हमारी सरकार ने 80 दौर की बातचीत के बाद नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नगालैंड (एनएससीएन) के साथ नगा शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते ने देश में लंबे समय से चल रहे राजनीतिक संघर्ष और सशस्त्र विद्रोह में से एक को समाप्त कर दिया। हाल ही में एनएससीएन के अन्य गुट के साथ एक और युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर करने के अलावा केंद्र सरकार इस क्षेत्र में शांति कायम करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है।
सभी नगा राष्ट्रवादी राजनीतिक समूहों के साथ बातचीत की पहल हुई। नेशनल डेमोकट्रिक फ्रंट आफ बोडोलैंड, आल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन और अन्य हितधारकों के गुटों के साथ 2020 बोडो शांति समझौता के कारण निचले असम क्षेत्र में शांति आई है। हाल ही में कार्बी आंगलोंग शांति समझौते ने असम के कार्बी आंगलोंग जिले में तीन दशक पुराने राजनीतिक संघर्ष को समाप्त कर दिया। प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में भारत सरकार एक शांतिपूर्ण जीवनशैली सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रही है, जहां सभी जाति, भाषा और संस्कृति के सभी लोग शांति और सद्भाव से रह सकें और फल-फूल सकें।
[सदस्य, लोकसभा और राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा]