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अरुणाचल प्रदेश की इस घाटी में क्यों नहीं आ रहे हैं विदेशी परिंदे, वजह जानकर रह जाएंगे हैरान

हमारे जीवन में कीट-पतंगों और पक्षियों की कितनी अहमियत है ये खबर इसका ताजा उदाहरण है। पहले भी वैज्ञानिक इस तरह के खतरों से आगाह करते रहे हैं...

By Amit SinghEdited By: Published: Wed, 01 May 2019 12:43 PM (IST)Updated: Wed, 01 May 2019 12:53 PM (IST)
अरुणाचल प्रदेश की इस घाटी में क्यों नहीं आ रहे हैं विदेशी परिंदे,  वजह जानकर रह जाएंगे हैरान
अरुणाचल प्रदेश की इस घाटी में क्यों नहीं आ रहे हैं विदेशी परिंदे, वजह जानकर रह जाएंगे हैरान

गुवाहाटी [जागरण स्पेशल]। सर्दियों के मौसम में मीलों की दूरी तय कर लाखों की संख्या में विदेशी पक्षी भारत के अलग-अलग हिस्सों में प्रवास और ब्रीडिंग के लिए आते हैं। इनमें से कई पक्षी सात समंदर पार से महीनों का सफर तय कर आते हैं। देश के कई संरक्षित पक्षी विहार (Bird Sancturies) इनसे गुलजार होते हैं। विदेशी पक्षियों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में आकर्षित करने के लिए वन विभाग और सरकारी स्तर पर तमाम प्रयास किए जाते हैं। ऐसे में अरूणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में लगभग बंद हो चुकी प्रवासी पक्षियों की संख्या चिंता का सबब बन चुकी है। चिंता इसलिए भी क्योंकि इसकी वजह बेहद हैरान करने वाली है।

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चावल की नई किस्म का कनेक्शन
अरुणाचल प्रदेश के सांगते और चुग वैली में इन दिनों चावल की एक नई किस्म की खेती बढ़ गई है। चावल की इस नई प्रजाति की खेती मोनपा बौद्धों द्वारा शुरू की गई थी, जिन्हें दलाई लामा का छठा अवतार माना जाता है। चावल की ये नई किस्म काली गर्दन वाले खूबसूरत क्रेन पक्षियों (Black-Necked Cranes) को यहां मौजूद उनके शीतकालीन आवास से दूर कर रही है। सर्दी के मौसम में प्रजनन के लिए तिब्बत के पठारी क्षेत्र में आने वाले क्रेन पक्षियों के लिए अरुणाचल प्रदेश में मुख्य रूप से तीन प्रवास स्थल हैं। इसमें अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी कमेंग जिले की सांगते और चुग वैली भी शामिल है।

दो साल से नहीं आ रहे विदेशी मेहमान
पक्षियों के प्रवास पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों के अनुसार काली गर्दन वाले क्रेन पक्षियों ने करीब दो साल से अरुणाचल प्रदेश के सांगते और चुग वैली में आना छोड़ दिया है। दरअसल यहां पर पहले देसी किस्म के जपोनिका धान के लाल चावल की खेती होती तो। अब इसकी जगह व्यावसायिक किस्म के असम धान की खेती की जा रही है। जानकार मानते हैं कि चावल की खेती में हुए इस बदलाव के साथ ही इलाके में क्रेन पक्षियों का आना कम होने लगा था।

ये है मुख्य वजह
जानकारों के अनुसार देसी किस्म के लाल चावल में सुगर और जिंक की मात्रा काफी ज्यादा होती है। इसलिए ये चावल कीट-पतंगों को आकर्षित करते थे। ऐसे में प्रवास के लिए यहां आने वाले क्रेन पक्षियों को पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध हो जाता था। इसकी जगह अब व्यावसायिक किस्म के असम धान की फसल से कीड़े आकर्षित नहीं होते हैं। इस वजह से क्रेन पक्षियों को अब यहां पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिल पाता है, जो कि उनके प्रजनन और प्रवास का सबसे अहम हिस्सा है। इसी भोजन की तलाश में वह मीलों का सफर तय कर दूसरी जगह पर जाते हैं।

छह-सात साल पहले हुई थी शुरूआत
सांगते और चुग वैली के 375 हेक्टेअर क्षेत्रफल में अब देसी किस्म के लाल चावल की खेती महज 10-15 फीसद एरिया में ही होती है। शेष हिस्से में व्यावसायिक किस्म के असम धान की खेती होती है। चावल की फसल में ये बदलाव व्यावसायिक खेती को ध्यान में रखकर ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए किया गया है। अरुणाचल प्रदेश में धान की खेती में इस बदलाव की शुरूआत करीब छह-सात साल पहले हो चुकी थी। हालांकि, वर्ष 2016-17 में इसकी खेती में बंपर तेजी आई, जब सरकार ने प्रत्येक परिवार को दो रुपये प्रति किलो की दर से 60 किलो चावल का वितरण शुरू किया। इस सरकारी योजना से लोगों को सस्ती कीमत पर पर्याप्त मात्रा में चावल उपलब्ध होने लगा। लिहाजा उन्होंने अपने खेतों में व्यावासिक दृष्टि से ज्यादा मुनाफे के लिए असम धान की खेती शुरू कर दी है। इसी के साथ क्रेन पक्षियों ने यहां आना बंद कर दिया।

केवल एक दिन रुके थे क्रेन पक्षी
बर्ड वाचर्स के अनुसार इस बार सर्दियों में प्रवास के दौरान शुरूआत में केवल तीन क्रेन पक्षी ही अरुणाचल प्रदेश की सांगते वैली पहुंचे थे। तीनों ही नर पक्षी थे। इनके पीछे इनका झुंड भी पहुंचा था, लेकिन तीनों नर पायलट पक्षी यहां मात्र एक दिन रुककर चले गए। पक्षियों का प्रवास तभी मायने रखता है, जब उनका पूरा झुंड सर्दियों के मौसम में एक ही जगह पर एक साथ रहे।


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