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Chandrayaan-2: सॉफ्ट लैंडिंग की केवल 52 फीसदी कोशिशें ही सफल, इन देशों ने नहीं मानी थी हार

ऐसा नहीं कि केवल भारत को ही सॉफ्ट लैंडिंग कराने में मायूसी हाथ लगी है। इससे पहले इन देशों के प्रयास भी विफल रहे हैं। आइये जानते हैं अब तक किन देशों की हैं कोशिशें...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 07 Sep 2019 07:41 AM (IST)Updated: Sat, 07 Sep 2019 04:33 PM (IST)
Chandrayaan-2: सॉफ्ट लैंडिंग की केवल 52 फीसदी कोशिशें ही सफल, इन देशों ने नहीं मानी थी हार
Chandrayaan-2: सॉफ्ट लैंडिंग की केवल 52 फीसदी कोशिशें ही सफल, इन देशों ने नहीं मानी थी हार

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। भारत शनिवार को अंतरिक्ष विज्ञान में इतिहास रचने के करीब था... चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर ‘विक्रम’ के उतरने की सारी प्रक्रिया भी सामान्य रूप से चल रही थी। कुल 13 मिनट 48 सेकंड तक सब कुछ बिल्‍कुल सटीक और सही सलामत चला। नियंत्रण कक्ष में वैज्ञानिक उत्‍साहित थे लेकिन आखिरी के डेढ़ मिनट पहले जब लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर ऊपर था तभी लगभग 1:55 बजे उसका इसरो के नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया। ऐसा नहीं कि केवल भारत को ही सॉफ्ट लैंडिंग कराने में मायूसी हाथ लगी है। इससे पहले इन देशों के प्रयास भी विफल रहे हैं।

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38 कोशिशें, 52 फीसदी ही सफल 
अभी तक चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के कुल 38 कोशिशें की गई हैं। इनमें से महज 52 फीसदी प्रयास ही सफल रहे हैं। चंद्रमा पर दुनिया के केवल छह देशों या एजेंसियों ने अपने यान भेजे हैं लेकिन कामयाबी केवल तीन को मिल पाई है। चंद्रमा की सतह पर उतरने की पहली कोशिश साल 1959 में अमेरिका और सोवियत रूस द्वारा की गई थी। साल 1958 में ही अगस्‍त से दिसंबर 1968 के बीच दोनों देशों ने आपधापी में कुल सात लैंडर भेजे लेकिन इनमें से कोई भी सॉफ्ट लैंडिंग में सफल नहीं हो सका था। अमेरिका ने चार पायनियर ऑर्बिटर जबकि सोवियन संघ की ओर से तीन लूनर इंपैक्‍ट को भेजा गया था। सोवियत संघ ने 1959 से 1976 के बीच लूना प्रोग्राम के तहत कुल 13 कोशिशें की थी।

काफी कोशिशों के बाद सफल हुआ था अमेरिका 
अमेरिका ने अपोलो प्रोग्राम के तहत पहली बार इंसान को चंद्रमा की सतह पर उतारा था। इस प्रोग्राम के तहत कुल छह यान भेजे गए थे। हालांकि जुलाई, 1969 में अमेरिका को सफलता हाथ लगी थी और नील आर्मस्ट्रांग चांद की सतह पर कदम रखने वाले पहले इंसान थे। अपोलो कार्यक्रम के अलावा अमेरिका ने चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए कई दूसरे कार्यक्रमों का भी संचालन किया। साल 1964 में अमेरिका ने रेंजर कार्यक्रम के तहत कुल तीन लॉन्चिंग की, जिसका मकसद चंद्रमा की सतह की क्‍लोज अप तस्‍वीरें हासिल करना था। इसके बाद अमेरिका ने 1968 में सर्वेयर सात लॉन्चिंग की। इस कार्यक्रम का मकसद चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करना था।

इजराइल ने इसी साल की थी कोशिश 
इजराइल ने इस साल 22 फरवरी को अपना मून मिशन लॉन्‍च किया था लेकिन उसे भी मायूसी ही हाथ लगी थी। इजराइन की ओर से यह कोशिश निजी कंपनी स्पेसएल की ओर से की गई थी। इजराइल का यान बेरेशीट चंद्रमा की सतह पर उतरने की कोशिश में क्रैश हो गया था। बताया जाता है कि यान के इंजन में तकनीकी खामी आ गई थी लेकिन ऐन वक्‍त पर उसका ब्रेकिंग सिस्टम फेल हो गया था। आंकड़े बताते हैं कि यान बेरेशीट चंद्रमा की सतह से जब 10 किलोमीटर दूर था, तभी धरती से उसका संपर्क टूट गया था। चंद्रमा की सतह पर उसकी क्रैश लैंडिंग हुई थी।

इन मिशनों को अंजाम दे रही दुनिया 
फ्लाईबाई: ये वे मिशन हैं, जिनमें अंतरिक्ष यान चंद्रमा के पास से गुजरे, लेकिन चंद्रमा की कक्षा में नहीं पहुंचे। ये चंद्रमा का दूर से अध्ययन करने के लिए डिज़ायन किए गए हैं। फ्लाईबाई मिशन के कुछ प्रारंभिक उदाहरण अमेरिका द्वारा लांच किए गए पायनियर 3 और 4 और तत्कालीन यूएसएसआर के लूना 3 हैं, जो चंद्रमा के पास से गुजर चुके हैं।

ऑर्बिटर्स: इन अंतरिक्ष यानों को चंद्रमा की कक्षा में भेजने और चंद्रमा की सतह और वायुमंडल का लंबे समय तक अध्ययन करने के लिए डिजायन किया गया है। किसी ग्रह का अध्ययन करने के लिए ऑर्बिटर मिशन सबसे आम तरीका है। अब तक, चांद और मंगल पर ही लैंडिंग संभव हो पाई है। अन्य सभी ग्रहों का अध्ययन ऑर्बिटर या फ्लाईबाई मिशनों के माध्यम से किया गया है। 

लैंडर्स: इन मिशनों में चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान की लैंडिंग शामिल है। ये ऑर्बिटर मिशन की तुलना में अधिक जटिल हैं। चंद्रमा पर पहली लैंडिंग 31 जनवरी, 1966 को तत्कालीन यूएसएसआर के लूना 9 अंतरिक्ष यान द्वारा पूरी की गई थी। इसने चंद्रमा की सतह से पहली तस्वीर को भी धरती पर भेजा था। 

मानव अभियान: इन अभियानों के तहत चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष यात्रियों की उतारा जाता है। अभी तक केवल अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ही चंद्रमा पर मानव को उतारने सफर रही है। 1969 और 1972 के बीच अबतक आर्मस्ट्रांग सहित कुल 12 अंतरिक्ष यात्री चांद पर कदम रख चुके हैं। इसके बाद, चंद्रमा पर उतरने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। लेकिन नासा ने अब वर्ष 2024 तक एक और मानवयुक्त मिशन भेजने की योजना की घोषणा की है।

रोवर्स: ये लैंडर मिशनों का विस्तार हैं। लैंडर अंतरिक्ष यान भारी होते हैं, पैरों पर खड़े होते हैं और लैंडिंग के बाद स्थिर रहते हैं।  इनपर लगे उपकरण अवलोकन कर सकते हैं और डाटा एकत्र कर सकते हैं, लेकिन चंद्रमा की सतह के संपर्क में नहीं आ सकते हैं। रोवर्स को इस कठिनाई को दूर करने के लिए डिजायन किया  गया है। रोवर्स चंद्रमा की सतह पर घूम सकते हैं और बहुत उपयोगी जानकारी एकत्र करते हैं जो कि लैंडर के भीतर के उपकरण प्राप्त नहीं कर पाते हैं। चंद्रयान-2 मिशन में रोवर को प्रज्ञान नाम दिया गया है। इस साल की शुरुआत में, एक चीनी लैंडर और रोवर मिशन चंद्रमा पर पहुंचा। ये अभी भी सक्रिय हैं।

चंद्रमा पर 110वां अंतरिक्ष अभियान है चंद्रयान-2
चंद्रयान-2 चंद्रमा पर दुनिया का 110 वां और इस दशक का 11वां अंतरिक्ष अभियान है। 109 में से 90 अभियानों को 1958 और 1976 के बीच चांद पर भेजा गया। उसके बाद चांद पर अभियानों को भेजने का सिलसिला सुस्त पड़ गया। 20वीं सदी  नौवें दशक में चंद्रमा पर अभियान धीरे-धीरे फिर से शुरू हो गए और 2008 में चंद्रयान -1 द्वारा चंद्रमा पर की गई पानी की खोज ने दुनिया का ध्यान चंद्रमा की ओर फिर आकर्षित किया। चंद्रयान -2 चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग का भारत का पहला प्रयास है। भारत के पड़ोसी चीन का पहला मून लैंडर चांग ई-3 था, जिसे चीन की अंतरिक्ष एजेंसी ने 1 दिसंबर 2013 को सफलतापूर्वक लांच किया था। इसके बाद चीन ने फ‍िर चांग ई-4 की सफल लॉन्चिंग के जरिए चांद के सुदूर हिस्से में उतारने वाला पहला देश बना था। 

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