Move to Jagran APP

Chandrayaan 2: US ने फहराया था झंडा, भारत बनाएगा अशोक लाट व ISRO का चिह्न

Chandrayaan 2 अमेरिका ने चांद पर केवल एक जगह अपना झंडा फहराया था। भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चप्पे-चप्पे पर सदियों के लिए अपनी उपस्थिति का निशान दर्ज करा देगा।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 06 Sep 2019 05:19 PM (IST)Updated: Fri, 06 Sep 2019 05:49 PM (IST)
Chandrayaan 2: US ने फहराया था झंडा, भारत बनाएगा अशोक लाट व ISRO का चिह्न
Chandrayaan 2: US ने फहराया था झंडा, भारत बनाएगा अशोक लाट व ISRO का चिह्न

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Chandrayaan 2: अमेरिका ने चांद पर भेजे गए अपने पहले मानव मिशन अपोलो 2011 के दौरान चांद पर झंडा लहराया था। अमेरिका का अपोलो 2011, 20 जुलाई 1969 को चांद पर उतरा था। वहीं, भारत चंद्रयान 2 की लैंडिंग के बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चप्पे-चप्पे पर सदियों के लिए अपनी उपस्थिति का निशान दर्ज करा देगा। चंद्रयान-2 का रोवर चांद पर जांच करने के दौरान जगह-जगह अशोक की लाट और इसरो का प्रतीक चिह्न बनाएगा। इसके लिए रोवर में खास व्यवस्था की गई है।

loksabha election banner

ऐसे बनेगी आकृति
चंद्रयान-2 चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा। वहीं खनिजों की मौजूदगी की जांच करेगा। चंद्रमा के वातावरण की रिपोर्ट तैयार करेगा और किसी भी रूप में वहां पानी की मौजूदगी का पता लगाएगा। इतना ही नहीं, चंद्रमा पर रिसर्च के दौरान छह पहियों वाला रोवर चांद पर भारत सरकार के चिन्ह अशोक की लाट और इसरो के प्रतीक चिह्न को अंकित करेगा। इसके लिए रोवर के पहियों में अशोक लाट और इसरो के प्रतीक का चिह्न बनाया गया है। रोवर के चंद्रमा पर भ्रमण करने के दौरान ये चिन्ह चांद की सतह पर बन जाएंगे।

पानी और जीवाश्म की संभावना
2008 के मिशन चंद्रयान-1 के बाद भारत का ये दूसरा मून मिशन (Moon Mission) है। पहले मून मिशन में भारत ने चांद पर पानी की खोज की थी। भारत ने 1960 के दशक में अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू किया था। दूसरे मिशन के लिए भारत ने चांद के उस हिस्से (दक्षिणी ध्रुव) का चुनाव किया है, जहां अब तक कोई नहीं पहुंचा। माना जाता है कि चांद का दक्षिणी ध्रुव बेहद जटिल है। इसके साथ ही यहां नई जानकारियों का खजाना छिपा हो सकता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि चांद के इस हिस्से में पानी और जीवाश्म मिल सकते हैं।

क्या हैं लैंडर और रोवर?
वाशिंगटन पोस्ट से बातचीत में मुंबई स्थित थिंक टैंक गेटवे हाउस के स्पेस एंड ओशन स्टडीज के रिसर्चर चैतन्य गिरी ने कहा था, 'चांद के रहस्यमयी दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार कोई अंतरिक्षयान उतरेगा। इस मिशन में लैंडर का नाम मशहूर वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर विक्रम रखा गया है और रोवर का नाम प्रज्ञान है। विक्रम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों के पहले प्रमुख थे। लैंडर वो है जिसके जरिए चंद्रयान चांद पर पहुंचेगा। रोवर का मतलब लैंडर में मौजूद उस रोबोटिक वाहन से है, जो चांद पर पहुंचकर वहां की चीजों को समझेगा और रिसर्च करेगा।'

पूरी मानवता के लिए लाभकारी
इसरो अध्यक्ष के सिवन ने कहा था कि चंद्रयान-2 की सफलता केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया और मानवता के लिए लाभकारी होगी। इससे चंद्रमा के प्रति हमारी समझ बढ़ेगी। भारत 2022 तक चांद पर अंतरिक्ष यात्री भेजने की भी तैयारी कर रहा है।अंतरिक्ष विज्ञान पर किताब लिख चुके मार्क विटिंगन ने भी सीएनएन से बातचीत में कहा था, 'भारत ने अंतरिक्ष मिशन को लेकर फैसले लेने शुरू कर दिए हैं। भारत जल्द ही अंतरिक्ष में महाशक्ति के तौर पर उभरेगा, क्योंकि इन अंतरिक्ष मिशन का महत्व जानता है।'

विक्रम साराभाई ने आलोचकों को दिया था जवाब
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को लेकर आलोचनाएं भी कम नहीं हैं। आलोचक अक्सर सवाल खड़ा करते हैं कि एक विकासशील देश को अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर इतना ज्यादा पैसा खर्च करने की जगह भूखे और गरीबों की मदद के लिए लगाना चाहिए। इसके जवाब में मशहूर वैज्ञानिक और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों के जनक विक्रम साराभाई ने कहा था, 'अंतरिक्ष कार्यक्रमों का देश और मानवता की बेहतरी में सार्थक योगदान है। भारत को समाज और लोगों की समस्याओं को सुलझाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करना होगा।'

चांद पर नहीं उतर पाया था चंद्रयान-1
भारत द्वारा 2008 में लॉन्च किये गए पहले चंद्रयान-1 मिशन ने चांद पर पानी की खोज की थी। हालांकि, चंद्रयान-1 चंद्रमा की सतह पर नहीं उतर सका था। चांद को लेकर पूरी दुनिया में खोज जारी है। दुनियाभर के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्रों में चांद पर पहुंचने की होड़ मची हुई है। भारत भी 2022 में चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की तैयारी कर रहा है।

चंद्रयान-2 की अहम खोज
इसरो के अनुसार चंद्रयान-2 मिशन के तहत चांद पर मौजूद चट्टानों में मैग्नीशियम, कैल्शियम और लोहे जैसे खनिज तत्वों की खोज की जाएगी। साथ ही, मिशन में चंद्रमा पर पानी की संभावनाओं और चांद की बाहरी परत की भी जांच की जाएगी। चंद्रयान-2 पहले मिशन में की गई खोजों को आगे बढ़ाएगा।

दक्षिणी ध्रुव ही क्यों
तमाम जोखिमों के बावजूद चंद्रयान 2 को दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों भेजा जा रहा है? इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि चांद के इस हिस्से की अब तक जांच नहीं की गई है। वैज्ञानिकों को यहां कुछ नया मिलने की उम्मीद है। उम्मीद है कि इस इलाके के ज्यादातर हिस्से में हमेशा अंधेरा रहता है और सूरज की किरणें न पड़ने के कारण यहां बहुत ठंड होती है। ऐसे में यहां पानी और खनिज होने की संभावना बहुत ज्यादा है। चांद का दक्षिणी ध्रुव ज्वालामुखियों और उबड़-खाबड़ जमीन से भरा हुआ है। हाल के कुछ ऑर्बिट मिशन ने इन संभावनाओं को और मजबूत कर दिया है। अगर दक्षिणी ध्रुव पर पानी मिलता है तो भविष्य में इंसानों के चांद पर बसने में ये मददगार साबित हो सकता है। चंद्रमा की बाहरी सतह की जांच से इस ग्रह के निर्माण की गुत्थियों के सुलझाने में काफी मदद मिलेगी।

भविष्य के मिशनों के लिए मददगार
चांद, पृथ्वी के सबसे नजदीक का ग्रह है। ऐसे में अगर चांद पर पानी या स्पेस सेंटर बनाने का रास्ता साफ होता है तो ये और गहरे अंतरिक्ष मिशन के लिए मददगार साबित हो सकता है। इससे सबसे ज्यादा मदद मंगल मिशन के लिए मिलेगी। मतलब चंद्रयान 2 की कामयाबी से भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए संसाधन के रूप में इसके इस्तेमाल होने की क्षमता का पता चलेगा।

 

चांद पर पहुंचने की होड़ क्यों?
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने एक बार कहा था कि अंतरिक्ष में गए बिना मानव प्रजाति का कोई भविष्य नहीं है। सभी ब्रह्माण्डीय पिंडों में से चंद्रमा हमारे सबसे नजदीक है। यहां दूसरे गहरे अंतरिक्ष मिशनों के लिए जरूरी तकनीकों का आसानी से परीक्षण किया जा सकता है। यही वजह है कि भारत का ये मिशन पूरी दुनिया के लिए लाभकारी साबित होने वाला है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.