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चंद्रयान-2 के आर्बिटर को मिली चंद्रमा के बाहरी वातावरण में बड़ी कामयाबी, जानिए उस बारे में

चंद्रयान-2 के विक्रम आर्बिटर से संपर्क ना होने की परेशानी भले ही ना दूर हुई हो लेकिन अब चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ने चंद्रमा के बाहरी वातावरण में आर्गन-40 का पता लगा लिया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 10:13 PM (IST)Updated: Sun, 03 Nov 2019 10:23 PM (IST)
चंद्रयान-2 के आर्बिटर को मिली चंद्रमा के बाहरी वातावरण में बड़ी कामयाबी, जानिए उस बारे में
चंद्रयान-2 के आर्बिटर को मिली चंद्रमा के बाहरी वातावरण में बड़ी कामयाबी, जानिए उस बारे में

चेन्नई, आइएएनएस। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्रयान-2 के विक्रम आर्बिटर से संपर्क ना होने की परेशानी भले ही ना दूर हुई हो, लेकिन अब चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ने चंद्रमा के बाहरी वातावरण में आर्गन-40 का पता लगा लिया है। इसरो ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी।

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इस अध्ययन के लिए चंद्रयान-2 आर्बिटर पर चंद्र एटमॉसफीयरिंग कंपोजिशन एक्सप्लोरर-2 (सीएचएसीई-2) पेलोड मौजूद है। यह न्यूट्रल मास स्पेक्ट्रोमीटर आधारित पेलोड है, जो 1-300 एएमयू (परमाणु द्रव्यमान इकाई) की सीमा में चंद्रमा के उदासीन बाहरी वायुमंडल के घटकों (वायुमंडल बनाने वाले तत्वों) का पता लगा सकता है।

इस पेलोड ने अपने शुरुआती ऑपरेशन के दौरान 100 किमी की ऊंचाई से चंद्रमा के बाहरी वायुमंडल में ऑर्गन-40 का पता लगाया है, और वो भी दिन-रात की विविधताओं को कैप्चर करते हुए। आर्गन-40 चंद्रमा की सतह पर तापमान में बदलाव और दबाव पड़ने पर संघनित होने वाली गैस है। यह चंद्रमा पर होने वाली लंबी रात (लूनर नाइट) के दौरान संघनित होती है। जबकि चंद्रमा पर भोर होने के बाद आर्गन-40 यहां से निकलकर चंद्रमा के बाहरी वायुमंडल में जाने लगती है। चंद्रमा पर दिन और रात के समय चंद्रयान-2 की एक परिक्रमा के दौरान आर्गन-40 में आने वाले अंतर को देखा गया।

औद्योगिक क्षेत्र में काम की है गैस 

दरअसल, आर्गन गैस का इस्तेमाल औद्योगिक क्षेत्र के कामकाज में अधिक होता है। यह फ्लोरेसेंट लाइट और वेल्डिंग के काम में भी इस्तेमाल होती है। इस गैस की मदद से सालों साल किसी वस्तु को यथावत संरक्षित रखा जा सकता है। इस गैस की मदद से ठंडे से ठंडे वातावरण को रूम टेम्परेचर पर रखा जा सकता है। इसीलिए गहरे समुद्र में जाने वाले गोताखारों की पोशाक में इस गैस का उपयोग किया जाता है।

चांद का बाहरी वायुमंडल बनाने में अहम 

चंद्रमा के बाहरी वायुमंडल को बनाने में आर्गन-40 (40एआर) की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह नोबेल गैस (निष्क्रिय गैस जो किसी के साथ क्रिया नहीं करती) का एक आइसोटोप्स (तत्व के अलग-अलग प्रकार के अणुओं में से एक अणु) है। यह (आर्गन-40) पोटेशियम-40 के रेडियोधर्मी विघटन से उत्पन्न होती है। इसकी हाफ लाइफ 91,20,00,00,000 वर्ष है। रेडियोधर्मी पोटेशियम-40 न्यूक्लाइड चंद्रमा की सतह के काफी नीचे मौजूद होता है। यह विघटित होकर आर्गन-40 बन जाता है। इसके बाद यह गैस चंद्रमा की अंदरूनी सतह में मौजूद कणों के बीच रास्ता बनाते हुए बाहर निकलकर बाहरी वायुमंडल तक पहुंचती है।

चारों ओर से घेरे है गैस आवरण 

खगोल विज्ञानी चंद्रमा को चारों ओर से घेरे गैसों के आवरण को 'लूनर एक्सोस्फीयर' यानी चंद्रमा का बाहरी वातावरण कहते हैं। इसकी वजह यह है क्योंकि यह वातावरण इतना हल्का होता है कि गैसों के परमाणु एक-दूसरे से बहुत कम टकराते हैं। जहां पृथ्वी के वायुमंडल में मध्य समुद्र तल के पास एक घन सेंटीमीटर में परमाणुओं की मात्रा 10 की घात 19 (यानी 10 के आगे 19 बार शून्य) होती है, चंद्रमा के बाहरी वायुमंडल में यह एक घनमीटर में 10 की घात 4 से 6 तक होते हैं यानी 10,000 से लेकर 10,00,000 तक।

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