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Chandrayaan-2: भारत का फिर मिशन चंद्रयान, जानिए- किस लिहाज से है अहम

चंद्रयान-2 भारत का दूसरा मून मिशन है। पहली बार भारत चंद्रमा की सतह पर लैंडर और रोवर उतारेगा। वहां पर चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह वातावरण विकिरण और तापमान का अध्ययन करेगा।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Wed, 10 Jul 2019 04:35 PM (IST)Updated: Wed, 10 Jul 2019 04:35 PM (IST)
Chandrayaan-2: भारत का फिर मिशन चंद्रयान, जानिए- किस लिहाज से है अहम
Chandrayaan-2: भारत का फिर मिशन चंद्रयान, जानिए- किस लिहाज से है अहम

नई दिल्ली, जेएनएन। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 15 जुलाई को होने वाली चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग की तैयारी में जुटा है। चंद्रयान-2 भारत का दूसरा मून मिशन है। पहली बार भारत चंद्रमा की सतह पर लैंडर और रोवर उतारेगा। वहां पर चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह, वातावरण, विकिरण और तापमान का अध्ययन करेगा। इसे तैयार करने में करीब 11 साल लग गए। लेकिन हमारे वैज्ञानिकों ने इस मिशन को पूरा करने के लिए जी-जान लगा दी। आखिर पूरी तरह स्वदेशी चंद्रयान-2 मिशन किस लिहाज से अहम है और चंद्रयान-1 से यह किन मायनों में एक कदम आगे है, आइए जानते हैं...

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15 जुलाई 2019 को तड़के 2:51 बजे GSLV MK III रॉकेट चंद्रयान-2 को लेकर चांद की ओर बढ़ेगा। खास बात यह है कि चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी हिस्से पर लैंड करेगा। इसके साथ ही भारत चांद की सतह पर लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन अपने यानों को चांद की सतह पर भेज चुके हैं। अभी तक किसी भी देश ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास यान नहीं उतारा है।

साथ ही, यह पहला ऐसा अंतरग्रहीय मिशन होगा, जिसकी कमान दो महिलाओं, प्रॉजेक्ट डायरेक्टर एम. वनीता और मिशन डायरेक्टर रितु करिधाल के पास है। यह मिशन पूरी तरह स्वदेशी है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन (इसरो) ने तैयार किया है। जो अंतरिक्ष यान धरती से छोड़ा जाएगा, उसके 2 हिस्से हैं: पहला लॉन्च वेहिकल GSLV MK III रॉकेट और दूसरा चंद्रयान-2

1. GSLV MK III: यह 60,000 किलो वजनी रॉकेट है यानी इसका वजन लोडेड 5 बोइंग जंबो जेट के बराबर है। यह अंतरिक्ष में काफी वजन ले जा सकता है। यह चंद्रयान-2 को अंतरिक्ष में ले कर जाएगा।

चंद्रयान-2 की खास बातें

लॉन्च होगा: तड़के 2:51 बजे, 15 जुलाई 2019 को, श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) से

वजन: 3800 किलो

कुल कितना खर्च: 1000 करोड़ रुपये

चांद पर कितने दिन बिताएगा: 52 दिन

2. चंद्रयान-2 के 3 हिस्से 

लैंडर: लैंडर का नाम रखा गया है विक्रम। इसका वजन 1400 किलो और लंबाई 3.5 मीटर है। इसमें 3 पेलोड (वजन) होंगे। यह चंद्रमा पर उतरकर रोवर स्थापित करेगा।

ऑर्बिटर: ऑर्बिटर का वजन 3500 किलो और लंबाई 2.5 मीटर है। यह अपने साथ 8 पेलोड लेकर जाएगा। यह अपने पेलोड के साथ चंद्रमा का चक्कर लगाएगा। ऑर्बिटर और लैंडर धरती से सीधे संपर्क करेंगे लेकिन रोवर सीधे संवाद नहीं कर पाएगा।

रोवर: इसका नाम है प्रज्ञान, जिसका मतलब होता है बुद्धि। इसका वजन 27 किलो होगा और लंबाई 1 मीटर। इसमें 2 पेलोड होंगे। यह सोलर एनर्जी से चलेगा और अपने 6 पहियों की मदद से चांद की सतह पर घूम-घूम कर मिट्टी और चट्टानों के नमूने जमा करेगा।

ऐसे होगी लैंडिंग

-लॉन्च के बाद धरती की कक्षा से निकलकर चंद्रयान-2 रॉकेट से अलग हो जाएगा। रॉकेट नष्ट हो जाएगा और चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में पहुंचेगा। इसके बाद लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा। ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा का चक्कर लगाना शुरू कर देगा।

- इसके बाद लैंडर चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से पर उतरेगा और वहां की छानबीन करेगा। यान को उतरने में लगभग 15 मिनट लगेंगे और तकनीकी रूप से यह लम्हा बहुत मुश्किल होगा क्योंकि भारत ने पहले कभी ऐसा नहीं किया है।

- लैंडिंग के बाद रोवर का दरवाजा खुलेगा। लैंडिंग के बाद रोवर के निकलने में 4 घंटे का समय लगेगा। फिर यह वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चांद की सतह पर निकल जाएगा। इसके 15 मिनट के अंदर ही इसरो को लैंडिंग की तस्वीरें मिलनी शुरू हो जाएंगी।

इसरो द्वारा जारी चित्र - विक्रम लैंडर से उतरता प्रज्ञान रोवर।

क्या करेगा चंद्रयान-2

- चांद पर लैंडिंग के बाद रोवर एक सेंटीमीटर प्रति सेकंड की स्पीड से 15 से 20 दिनों तक चांद की सतह से डेटा जमा करके ऑर्बिटर तक पहुंचाता रहेगा। ऑर्बिटर उस डेटा को इसरो भेजेगा। लॉन्च के बाद 16 दिनों में ऑर्बिटर धरती के चारों ओर पांच बार कक्षा बदलेगा।

- रोवर चंद्रमा की चट्टानों को देख कर उनमें मैग्निशियम, कैल्शियम और लोहे आदि खनिजों की तलाश करेगा। साथ ही, वहां पानी की मौजूदगी की ढूंढेगा। ऑर्बिटर चांद की बाहरी परत की भी जांच करेगा।

ये हैं चुनौतियां

-हमारी धरती से चांद करीब 3,844 लाख किमी दूर है इसलिए किसी भी यहां से मेसेज के वहां पहुंचने में कुछ मिनट लगेंगे।

- सोलर रेडिएशन का भी असर चंद्रयान-2 पर पड़ सकता है।

- वहां सिग्नल कमजोर हो सकते हैं। बैकग्राउंड का शोर भी कम्युनिकेशन पर असर डालेगा।

जानिए- चंद्रयान-1 से क्या हासिल हुआ था

करीब 10 साल पहले अक्टूबर 2008 में चंद्रयान-1 लॉन्च हुआ था, जो लगभग एक साल चला था। इसमें एक ऑर्बिटर और इम्पैक्टर था लेकिन रोवर नहीं था। चंद्रयान-1 चंद्रमा की कक्षा में गया जरूर था लेकिन वह चंद्रमा पर उतरा नहीं था। 1400 किलो वजनी चंद्रयान-1 को चांद के सतह से 100 किमी दूर कक्षा में स्थापित किया गया था। यह चंद्रमा की कक्षा में 312 दिन रहा। इसने वहां कुछ मशीनरी स्थापित की, भारत का झंडा लगाया और आंकड़े भेजे। चंद्रयान-1 के डेटा में चंद्रमा पर बर्फ होने के सबूत पाए गए थे।


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