बिन पानी सब सून, नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती जल जंगल जमीन से जुड़े मुद्दे
33 फीसद भूमि वनों को समर्पित है लेकिन कहीं भी वन नहीं हैं। सरकार को वन व वनीकरण को गांवों का हिस्सा बनाना होगा।
डॉ अनिल प्रकाश जोशी। नई सरकार को जल जंगल जमीन के मुद्दे भी बड़ी चुनौती के रूप में लेने होंगे। देश की बिगड़ती पारिस्थितिकी इन्हीं से जुड़ी है। ये समझना बहुत जरूरी है कि जहां ये देश की आर्थिकी के बड़े आधार हैं वहीं स्वस्थ शरीर व समाज के लिये महत्वपूर्ण भी हैं।
धरती के फेफड़े हैं वन
इनकी गुणवत्ता व परिमाण खतरे में है। पिछली सदी के आठवें दशक में बनी वननीति असरहीन रही। 33 फीसद भूमि वनों को समर्पित है लेकिन कहीं भी वन नहीं हैं। सरकार को वन व वनीकरण को गांवों का हिस्सा बनाना होगा।
बिन पानी सब सून
बूंदों के रूप में ही सही पर हर साल 4000 अरब घनमीटर पानी हमें बारिश से मिल जाता है जो हमारी पानी की आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप से पूरा कर सकता है। इसलिए शायद कहीं जरूरी है कि हम हर तरह से वर्षा के पानी को जुटाएं। इससे ग्लेशियरों, नदियों, तालाबों और कुओं में पानी के खपत का दबाव कम होगा। हमें रिचार्ज जोन तलाशने होगे और साथ ही तमाम जलागमों में जलछिद्रों के माध्यम से वर्षाजल को नदी तालाबों में प्राकृतिक रूप से ले जाना होगा। देश में एक जल संरक्षण कानून की भी दरकार है।
चलती रही सांसें
वायु प्रदूषण को खत्म करने के लिए परिवहन प्रणाली को प्रभावी बनाना होगा। हर घर को जलाऊ लकड़ी के प्रदूषण से मुक्त करना होगा। ऐसे ही पराली के उपयोग जहां स्थानीय रोजगार देंगे वहां प्रदूषण से भी मुक्ति मिलेगी।
कचरा का खतरा
लाखों टन कचरा पारिस्थितिकी के लिये सबसे घातक है। इसलिए एक ऐसा शोध केंद्र बने जो कचरे को उपयोगी बनाने के लिये कार्य करे ताकि कबाड़ से कमाई की जा सके। ये तभी संभव है जब हम सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष सकल पर्यावरण उत्पाद का सूचकांक तैयार करें।
माटी का मोल
मिट्टी में रसायन के मेल ने बड़ा संकट खड़ा किया है। जैविक खाद को उद्योग का दर्जा मिले। इसे रोजगार से जोड़ेंगे तो जहर से मुक्त होंगे।
(संस्थापक, हिमालयन एनवायरमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गनाइजेशन)
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