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दो साल में 10 राज्यों में पेश होगी "शाह मॉडल" को चुनौती

राज्य जीतने की मौजूदा रणनीति पर करना होगा फिर से विचार, बिहार की हार के बाद यूपी में आसान नहीं होगी भाजपा की राह।

By Shashi Bhushan KumarEdited By: Published: Sun, 08 Nov 2015 10:14 PM (IST)Updated: Sun, 08 Nov 2015 10:14 PM (IST)
दो साल में 10 राज्यों में पेश होगी "शाह मॉडल" को चुनौती

मुकेश केजरीवाल, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के बाद अमित शाह के नेतृत्व में राज्यों में झंडे गाड़ने के मिशन में जुटी भाजपा की रणनीति पर अब नए सिरे से सवाल खड़े हो गए हैं। अगले दो साल के दौरान यूं तो पार्टी को दस राज्यों में परीक्षा देनी है, मगर उत्तर प्रदेश की अग्निपरीक्षा से पहले इसे अपनी रणनीति पर बिल्कुल नए सिरे से विचार करना होगा।

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इस राज्य ने पार्टी को केंद्र की सत्ता दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। पार्टी को लगातार विवादों में लाने वाले मामले भी यहीं से हो रहे हैं। साथ ही यहां की राजनीति पड़ोसी बिहार से ज्यादा अलग भी नहीं। अगले छह महीनों में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा और संघ परिवार के लिए गैर हिंदी भाषी और गैर परंपरागत राज्यों में प्रसार के लिहाज से ये राज्य बेहद अहम हैं।

लोकसभा चुनाव के दौरान असम की 14 में से सात सीटें जीत चुकी और पिछले दिनों कांग्रेस विधायक दल में सेंध लगाने में कामयाब रही भाजपा यहां खुद को विकल्प के रूप में पेश कर रही है। लेकिन पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से दो सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए यहां स्थिति बहुत आसान नहीं है। माकपा के 34 साल के राज को समाप्त करने वाली ममता बनर्जी को चुनौती देना मामूली लक्ष्य नहीं होगा।

लोकसभा चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस ने 42 में से 34 सीटें जीत कर साबित किया है कि अभी उसका समर्थन बरकरार है। अमित शाह के नेतृत्व में चुनावी प्रबंधन संभालने वाली भाजपा की पूरी टीम के लिए प्रतिष्ठा का सबसे बड़ा प्रश्न उत्तर प्रदेश है। चार अन्य राज्यों के साथ 2017 में यहां भी चुनाव होने हैं। यहां पार्टी ने लोकसभा में 80 में से 78 सीटें लड़ीं और 71 सीटें जीती थीं।

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहीं से सांसद हैं। मगर दो पड़ोसी राज्यों दिल्ली और बिहार में मिली हार के अलावा यहां पिछले दिनों हुए पंचायत चुनाव में भी पार्टी की रणनीति बुरी तरह नाकाम हुई है। राज्य के पूर्वांचल का हिस्सा न सिर्फ बिहार से सटा हुआ है, बल्कि काफी हद तक उसी तरह से सोचता है।

अगर बिहार में पार्टी की हार के लिए विकास का मुद्दा छोड़ कर विवादास्पद मुद्दों को उठाने को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है तो यह प्रयोग सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में ही हो रहा है। ऐसे में प्रश्न है कि सपा की मौजूदा सरकार के तहत कानून-व्यवस्था को ले कर चिंतित लोग क्या इन मुद्दों को वैसी अहमियत देंगे।

इसी तरह 2017 की शुरुआत में ही गोवा और पंजाब में होने वाले चुनाव भी राष्ट्रीय राजनीति के लिए बहुत अहम हैं। पंजाब में अकाली दल और भाजपा की सरकार धार्मिक तनाव और युवाओं में नशे की लत आदि कई मामलों में लोगों के गुस्से का शिकार बन रही है। साथ ही यहां आम आदमी पार्टी को भी लगातार समर्थन मिलता दिख रहा है। अगर यहां भाजपा को झटका लगा तो यह उसके भविष्य के लिए बड़ा संकेत होगा।

कब तक कहां होने हैं चुनाव

  • पुडुचेरी- फरवरी, 2016
  • असम- मई, 2016
  • तमिलनाडु- मई, 2016
  • प. बंगाल- मई, 2016
  • केरल- मई, 2016
  • गोवा- मार्च, 2017
  • पंजाब- मार्च, 2017
  • उत्तर प्रदेश- मई, 2017
  • उत्तराखंड- अगस्त, 2017
  • मणिपुर- नवंबर, 2017

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