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इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया में समय सीमा का पालन एक बड़ी चुनौती

आइबीसी कानून में बाजार आधारित और समय सीमा के तहत इन्सॉल्वेंसी समाधान प्रक्रिया का प्रावधान है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Thu, 27 Dec 2018 10:29 PM (IST)Updated: Thu, 27 Dec 2018 10:29 PM (IST)
इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया में समय सीमा का पालन एक बड़ी चुनौती
इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया में समय सीमा का पालन एक बड़ी चुनौती

नई दिल्ली, प्रेट्र : इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) एक क्रांतिकारी कानून है, लेकिन समय सीमा का पालन नहीं हो पाना और मामलों को स्वीकार करने में होने वाली अत्यधिक देरी इससे जुड़ी कुछ बड़ी समस्याएं हैं। कंपनी मामलों के सचिव इंजेती श्रीनिवास ने आइबीसी के कार्यान्वयन को मिली-जुली सफलता बताया। उन्होंने हालांकि कहा कि इस कानून के कारण कर्जदारों और कर्जदाताओं का व्यवहार बदला है।

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आइबीसी कानून में बाजार आधारित और समय सीमा के तहत इन्सॉल्वेंसी समाधान प्रक्रिया का प्रावधान है। श्रीनिवास ने कहा कि यह कानून निश्चित रूप से क्रांतिकारी साबित हुआ है। उन्होंने कहा कि इस कानून के कारण प्रक्रिया के तहत मामले को स्वीकार किए जाने से पहले ही निपटारा होने लगे हैं और कई मामलों में फंसे कर्ज पर भुगतान शुरू हो गया है। उन्होंने आंकड़े देते हुए कहा कि करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये के कर्ज का मामले को प्रक्रिया के तहत स्वीकार करने से पहले ही निपटारा हो गया और करीब 40,000 करोड़ रुपये के एनपीए में कर्जदारों द्वारा भुगतान शुरू हो गया है।

श्रीनिवास ने पिछले दिनों कहा था कि 2018 में आइबीसी के तहत एनसीएलटी और नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी ) के माध्यम से विभिन्न कॉरपोरेट कर्जदारों से 80 हजार करोड़ रुपए से अधिक की वसूली की गई है। एक अनुमान के मुताबिक आईबीसी ने दिसंबर 2016 में प्रभावी होने के बाद से करीब 3 लाख करोड़ रुपए के फंसे लोन का समाधान करने में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मदद की है।

उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में और बड़े-बड़े फंसे कर्ज वाले मामले इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया के तहत आ गए हैं। कानून से जुड़ी समस्या पर उन्होंने कहा कि एक क्षेत्र जहां यह कानून हमारी उम्मीद के मुताबिक सफल नहीं हो पाया है, वह है समय सीमा का पालन नहीं हो पाना। यह बड़ी चिंता का विषय है। उनके मुताबिक कुछ ऐसे मुकदमें हैं, जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय किए गए मानकों के आधार पर स्वीकार नहीं किए जाने चाहिएं। श्रीनिवास ने कहा कि ऐसे मामलों को स्वीकार करने में होने वाला विलंब भी चिंता का विषय है, जिनमें कर्ज स्पष्ट है और कर्ज के आकार को तय करने की जरूरत नहीं है। आपको सिर्फ यह तय करना है कि डिफॉल्ट हुआ है या नहीं। जब कानून में 14 दिन का समय निर्धारित किया हुआ है, तो यह 14 दिन में हो जाना चाहिए। जबकि देखा जा रहा है कि इस कार्य में तीन महीने या उससे भी अधिक समय लग रहा है।

उन्होंने कहा कि संचालन कर्जदाता को लेकर विवाद हो सकता है, लेकिन वित्तीय कर्जदाता को लेकर विवाद की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि मामलों का 14 दिनों में स्वीकार किया जाना सुनिश्चित करने के लिए डीम्ड एडमिशन का प्रावधान होना चाहिए।


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