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एनसीसीटी को लेकर चेयरमैन की छलकी नाराजगी, कृषि मंत्री ने दिया भरोसा

कृषि मंत्रालय ने इस मामले में डाक्टर एमएस स्वामीनाथन की सिफारिशों का हवाला देते हुए कहा कि यह फैसला उसके अमल में लिया गया है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 09:47 PM (IST)Updated: Wed, 14 Nov 2018 09:47 PM (IST)
एनसीसीटी को लेकर चेयरमैन की छलकी नाराजगी, कृषि मंत्री ने दिया भरोसा
एनसीसीटी को लेकर चेयरमैन की छलकी नाराजगी, कृषि मंत्री ने दिया भरोसा

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सहकारी शीर्ष संस्था एनसीयूआई से एनसीसीटी को अलग करने का मसला अखिल भारतीय सहकारी सप्ताह के उद्घाटन समारोह में भी उभरकर सामने आया। इस मसले पर एनसीयूआई के चेयरमैन चंद्रपाल यादव की नाराजगी छलक आई। उन्होंने सरकार से पुनर्विचार करने की गुजारिश की। कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने भरोसा दिलाया कि इस मामले का समाधान वार्तालाप से किया जा सकता है।

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तथ्य यह है कि कृषि मंत्रालय और एनसीयूआई के बीच का विवाद दिल्ली हाईकोर्ट में पहुंच चुका है। कृषि मंत्रालय ने इस मामले में डाक्टर एमएस स्वामीनाथन की सिफारिशों का हवाला देते हुए कहा कि यह फैसला उसके अमल में लिया गया है। डाक्टर स्वामीनाथन ने सरकार के इस कदम की सराहना करते हुए एनसीसीटी के चेयरमैन को विस्तार से पत्र भी लिखा है। लेकिन स्वामीनाथन ने यह सिफारिश वर्ष 1973 में की थी। जिस पर अमल 22 फरवरी 2018 को किया गया है। इसी बात पर एनसीयूआई को आपत्ति भी है, जिसे लेकर वह अदालत पहुंची है।

कृषि मंत्री ने इस बात से इनकार किया कि सरकार की ओर से सहकारी आंदोलन को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। लेकिन आगे उसी क्रम उन्होंने कहा कि यदि आपस में कुछ मनमुटाव है तो उसे बातचीत से सुलझाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सहकारिता के समक्ष शोध व अन्वेषण की चुनौतियां हैं, जिनका डटकर मुकाबला करना होगा। सहकारी संस्थाओं को व्यावसायिक बनाने के लिए उन्हें शिक्षण व प्रशिक्षण पर पूरा ध्यान देना होगा।

भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (एनसीयूआई) के अध्यक्ष डाक्टर चंद्रपाल सिंह यादव ने कहा कि सरकार को शिक्षण और प्रशिक्षण दोनों को साथ लेकर चलना चाहिए। इसे अलग कर दिया गया तो सहकारी आंदोलन को क्षति पहुंचेगी। उन्होंने सरकार से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध भी किया। उन्होंने कहा कि देश को राष्ट्रीय सहकारी नीति की आवश्यकता है। जीडीपी में कभी 75 फीसद की भागीदारी वाले कृषि व सहकारिता का हाल बहुत बुरा चल रहा है। उसकी हिस्सेदारी 15 फीसद रह गई है। कृषि ऋण वितरण का दायित्व पहले सहकारी संस्थाओं को था, जिसे हटाकर निजी क्षेत्र को सौंप दिया गया।


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