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अयोध्‍या विवादित स्‍थल : महज 0.313 एकड़ भूमि पर अटक गया केस, जानें- क्‍या है पूरा मामला

30 सितंबर 2010 को 2.77 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर फैसला सुनाया था। यह भूमि तीन पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बराबर बांट दी गई थी।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Tue, 29 Jan 2019 03:14 PM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2019 07:56 AM (IST)
अयोध्‍या विवादित स्‍थल : महज 0.313 एकड़ भूमि पर अटक गया केस, जानें- क्‍या है पूरा मामला
अयोध्‍या विवादित स्‍थल : महज 0.313 एकड़ भूमि पर अटक गया केस, जानें- क्‍या है पूरा मामला

नई दिल्‍ली [ जागरण स्‍पेशल ]। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि अयोध्या में जो गैर विवादित भूमि है, उसे रामजन्मभूमि न्यास को वापस सौंप दिया जाए। सरकार की ओर से कहा गया है कि विवादित भूमि सुप्रीम कोर्ट अपने पास रखे। आखिर क्‍या है विवादित भूमि का खेल। केंद्र सरकार की क्‍या है इसमें दिलचस्‍पी।

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0.313 एकड़ जमीन पर फंसा पेच
अयोध्या में विवादित जमीन के आस-पास करीब 70 एकड़ जमीन केंद्र सरकार के पास है। इसमें 2.77 एकड़ की जमीन पर इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय ने अपना फैसला सुनाया था। दरअसल, जिस भूमि पर विवाद है वह जमीन महज 0.313 एकड़ है। 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने इस भूमि पर स्टे लगाया था और किसी भी तरह के क्रियाकलाप पर रोग लगा दी थी।

क्‍या है इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला

  • 1991 में उत्तर प्रदेश की कल्याण सरकार ने विवादित ढांचे के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया था।
  • इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने 30 सितंबर 2010 को 2.77 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर फैसला सुनाया था। यह भूमि तीन पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बराबर बांट दी गई थी। हिंदू एक्ट के तहत इस मामले में रामलला भी एक पक्षकार हैं।
  • कोर्ट ने कहा था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचे हुए एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।
  • इस फैसले को निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। शीर्ष अदालत ने 9 मई, 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस तभी से लंबित है। 

    आखिर क्‍या है केंद्र सरकार का पक्ष  

  • अयोध्‍या में विवादित भूमि में असल विवाद 0.313 एकड़ जमीन का ही है। 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने इस जमीन पर किसी भी तरह की क्रियाकलाप पर रोक लगाई थी।
  • केंद्र सरकार ने अपनी मौजूदा रिट में कहा है कि 67 एकड़ जमीन का सरकार ने अधिग्रहण किया था, जिस पर शीर्ष अदालत ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया। जमीन का विवाद सिर्फ 2.77 एकड़ का है, बल्कि बाकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है। इसलिए उस पर यथास्थिति बरकरार रखने की जरूरत नही है।
  • सरकार चाहती है जमीन का बाकी हिस्सा राम जन्मभूमि न्यास को दिया जाए और सुप्रीम कोर्ट इसकी इज़ाजत दे। न्याय के हित में ये सही होगा कि सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में संशोधन करे ताकि केंद्र मालिकों को जमीन वापस कर दे।
  • इस तरह से मोदी सरकार ने याचिका के माध्यम से अधिग्रहित करने की इजाजत मांगी है। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के मसले पर मोदी सरकार का यह बड़ा कदम हो सकता है। दरअसल, ये बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि पर यथास्थिति के आदेश वापस लेने की अर्जी है। अर्जी में कहा गया है कि 2.77 एकड़ जमीन पर निर्माण का अधिकार मिले।
  • सरकार ने हिंदू पक्षकारों को दी जमीन रामजन्म भूमि न्यास को देने की अपील की है। केंद्र सरकार का कहना है कि विवादित 0.313 एकड़ जमीन पर प्रवेश व निकासी के लिए वह योजना तैयार कर देगी ताकि जमीनी विवाद पर जो भी केस जीते उसे 0.313 एकड़ जमीन पर जाने- आने में कोई परेशानी नहीं हो।
  • इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही कोई कदम उठाएगी, लेकिन केंद्र सरकार पर मंदिर के निर्माण को लेकर चौतरफा दबाव पड़ रहा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि चुनाव में इसे लेकर कोई नुकसान ना हो, इसलिए मोदी सरकार एक्शन में आ गई है।
  • उधर, सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर लगातार सुनवाई टल रही है। पांच सदस्यीय संविधान पीठ के एक सदस्य के उपलब्ध नहीं होने के कारण राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई भी टल गई।

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