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New Parliament House: सेन्ट्रल विस्टा परियोजना धन की बर्बादी नहीं बल्कि एक हजार करोड़ रुपये की होगी बचत: केंद्र

सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाकर्ताओं की ओर से सेंट्रल विस्टा परियोजना को धन की बर्बादी बताए जाने का जवाब देते हुए कहा कि यह परियोजना धन की बर्बादी नहीं है बल्कि इससे सालाना करीब 1000 करोड़ रुपये के किराए की बचत होगी।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 03 Nov 2020 09:04 PM (IST)Updated: Tue, 03 Nov 2020 09:04 PM (IST)
New Parliament House: सेन्ट्रल विस्टा परियोजना धन की बर्बादी नहीं बल्कि एक हजार करोड़ रुपये की होगी बचत: केंद्र
इंडिया गेट के पास बनाई जानी है सेन्ट्रल विस्टा परियोजना (फाइल फोटो)।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। केन्द्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सेन्ट्रल विस्टा परियोजना की तरफदारी करते हुए कहा कि संसद के लिए नई बिल्डिंग की तत्काल जरूरत है मौजूदा भवन आवश्यकताओं के हिसाब से अपर्याप्त है। केन्द्र ने कहा कि यह परियोजना धन की बर्बादी नहीं है बल्कि इससे बचत होगी। सभी मंत्री एक जगह एक इमारत में बैठेंगे, जिससे करोड़ों रुपये की बचत होगी। यह भी कहा कि इस परियोजना में न सिर्फ पर्यावरण का ध्यान रखा गया है बल्कि हैरिटेज इमारतों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। 

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दो सदन वाली संसद के लिए नहीं था मौजूदा भवन  

ये दलीलें केन्द्र सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दीं। सुप्रीम कोर्ट सेंट्रल विस्टा परियोजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष केन्द्र सरकार का पक्ष रखते हुए तुषार मेहता ने कहा कि मौजूदा संसद भवन 1927 में बना था। यह दो सदन वाली संसद के लिए नहीं था। संसद में सदस्यों की संख्या बढ़ने के कारण मौजूदा भवन में जगह कम हो गई है। लोकसभा और राज्यसभा दोनों एकदम भरे रहते हैं। दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन में सदस्यों को प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठना पड़ता है जो कि सदन की गरिमा के अनुकूल नहीं है। मौजूदा भवन भूकंपरोधी भी नहीं है। यहां अग्निशमन के लिए भी उतना अच्छा इंतजाम नहीं है। 

सालाना करीब 1000 करोड़ रुपये के किराए की बचत 

मेहता ने कहा कि कई लोकसभा अध्यक्ष नए संसद भवन की जरूरत पर जोर दे चुके हैं। मेहता ने याचिकाकर्ताओं की ओर से सेंट्रल विस्टा परियोजना को धन की बर्बादी बताए जाने का जवाब देते हुए कहा कि यह परियोजना धन की बर्बादी नहीं है बल्कि इससे सालाना करीब 1000 करोड़ रुपये के किराए की बचत होगी। अभी मंत्री अलग- अलग जगह बैठते हैं, उनके आने जाने और इमारत के किराए में खर्च होता है। नई इमारत में सभी मंत्री एक जगह बैठेंगे और किराए मे जाने वाले पैसे की बचत होगी।

याचिककर्ताओं द्वारा संसद की ऐतिहासिक इमारत को नष्ट किये जाने की दलीलों का जवाब देते हुए सालिसिटर जनरल ने कहा कि मौजूदा भवन ऐतिहासिक धरोहर है और इसे संरक्षित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस निर्माण मे राष्ट्रीय अभिलेखागार की इमारत को छोड़ कर किसी भी हैरिटेज बिल्डिंग को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। वर्तमान भवन का भविष्य में संसदीय संग्रहालय की तरह उपयोग होगा। पर्यावरण मंजूरी के मुद्दे पर केन्द्र सरकार की ओर से कहा गया कि इसके लिए मंजूरी ली गई है और पर्यावरण का पूरा ध्यान रखा गया है। 

लुटियन दिल्ली में निर्माण परियोजना के याचिकाकर्ताओं द्वारा किये जा रहे विरोध पर मेहता ने कहा कि संसद भवन और मंत्रालयों का निर्माण वहीं होगा जहां उचित है। इनका निर्माण नोएडा, गुरुग्राम या पानीपत मे नहीं हो सकता। संसद भवन यहीं बन सकता है। जब सरकार की ओर से यह सब ब्योरा दिये जाने पर कोर्ट ने सवाल किया कि क्या यह सब ब्योरा सार्वजनिक है।

ऐसी ऐतिहासिक इमारतों के निर्माण से पहले जन भागेदारी की मांग का जवाब देते हुए मेहता ने कहा कि इसकी जरूरत नहीं है। उन्होंने माना कि नये संसद भवन का निर्माण 2022 तक पूरा होना है। कहा नया संसद भवन बने या न बने यह सरकार का नीतिगत मामला है और जबतक फैसला पूरी तरह मनमाना और अतार्किक न हो उसमें दखल नहीं दिया जा सकता। मामले में कल भी बहस जारी रहेगी। 


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