एनपीआर पर राज्यों को नए सिरे से मनाने की होगी कोशिश, जवाब नहीं देने की पूरी छूट
सरकार जल्द ही एनपीआर के सवालों पर आपत्ति जताने वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों व अन्य राजनीतिक दलों को नए सिरे से इसके बारे में समझाने की कोशिश करेगी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। एनपीआर (नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर) के लिए आंकड़े जुटाने की खातिर पूछे जाने वाले सवालों को लेकर विपक्ष के साथ-साथ कुछ सहयोगी दलों की आपत्तियों के बावजूद सरकार उन सवालों को फिलहाल हटाने को तैयार नहीं दिख रही है। सरकार जल्द ही इन सवालों पर आपत्ति जताने वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों व अन्य राजनीतिक दलों को नए सिरे से इसके बारे में समझाने की कोशिश करेगी। गौरतलब है एनपीआर के तहत माता-पिता के जन्म-स्थान व जन्म-तिथि पूछे जाने पर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं और बिहार सरकार ने साफ कर दिया है कि 2010 के प्रश्नों के साथ ही वह एनपीआर का डाटा जुटाएगी।
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राजनीतिक कारणों से भले ही कुछ राज्य सरकारें और पार्टियां माता-पिता के जन्म-स्थान व जन्म-तिथि के सवाल को हटाने की मांग कर रहे हों, लेकिन सच्चाई यह है कि इसकी कोई जरूरत नहीं है। उनके अनुसार एनपीआर में कोई भी जानकारी देना या नहीं देना वैकल्पिक है। यदि कोई व्यक्ति अपने माता-पिता का जन्म-स्थान या जन्म-तिथि नहीं बताना चाहता है, तो नहीं बताए। इसके लिए उसे कतई मजबूर नहीं किया जाएगा। लेकिन इसे हटाने देने से जो लोग बताना चाहते हैं, उनका मौका भी छिन जाएगा। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस सिलसिले में राजनीतिक नेतृत्व के स्तर पर राज्यों को एक बार फिर समझाने की कोशिश की जाएगी और जरूरत पड़ने पर मुख्यमंत्रियों व राजनीतिक दलों की बैठक भी बुलाई जा सकती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगर कोई किसी सवाल का जवाब नहीं देता है तो उसे भविष्य में भी किसी तरह की हानि नहीं होगी। लेकिन अगर देता है तो सरकार को योजना बनाने में आसानी होगी। दरअसल विपक्षी राज्यों ने जहां एक तरफ से एनपीआर कराने से भी मना कर दिया है। वहीं हाल में बिहार विधानसभा ने भी प्रस्ताव पारित किया था।
दरअसल एक अप्रैल से 30 सितंबर के बीच जनगणना के पहले चरण के दौरान एनपीआर के आंकड़े जुटाए जाने हैं और कई राज्यों ने मई से जून के बीच इसके लिए समय भी तय कर दिया है। इसके पहले एनपीआर के सवालों को अंतिम रूप देकर सभी जनगणनाकर्मियों तक पहुंचाना होगा। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पिछले तीन-चार दशकों के दौरान काम के सिलसिले में देश के भीतर एक से दूसरी जगह प्रवास तेजी से बढ़ा है। आर्थिक विकास के साथ-साथ इसमें और तेजी से आने की संभावना है।
ऐसे में स्थानीय स्तर पर कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लक्षित समूहों तक पहुंचाने के लिए यह जानना जरूरी है कि असल में वे कहां से और क्यों आए थे। यदि किसी स्थान पर देश के विशेष स्थान से आकर बसने वालों की संख्या अधिक हुई तो वहां उनके बच्चों की मातृभाषा में पढ़ाई के लिए विशेष स्कूल खोले जा सकते हैं। यदि लोग यह जानकारी नहीं देना चाहेंगे तो जाहिर है उन्हें ऐसे विशेष कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा।