SC-ST आरक्षण में क्रीमी लेयर के पक्ष में नहीं केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ को भेजने की मांग
केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आरक्षण में क्रीमी लेयर की व्यवस्था के पक्ष में नहीं है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आरक्षण में क्रीमी लेयर की व्यवस्था के पक्ष में नहीं है। सरकार ने कहा कि क्रीमी लेयर का सिद्धांत एससी, एसटी आरक्षण में लागू नहीं होता। सरकार ने इस मामले में शीर्ष अदालत के पिछले साल के फैसले को पुनर्विचार के लिए सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पास भेजने का भी अनुरोध किया।
तीन सदस्यीय पीठ के सामने रखी मांग
केंद्र सरकार की ओर से सोमवार को यह मांग अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने समता आंदोलन समिति की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष रखी। समिति ने एससी, एसटी आरक्षण से क्रीमी लेयर को हटाए जाने की मांग की है।
बड़ी पीठ को भेजने की मांग
वेणुगोपाल ने एससी, एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण के मामले में क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू करने का मुद्दा बड़ी पीठ को भेजने की मांग रखी तो याचिकाकर्ता समिति की ओर से पेश वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि एससी, एसटी आरक्षण से क्रीमी लेयर को बाहर करने का मुद्दा पहले संविधान पीठ को भेजा गया था और दो बार इस पर फैसला आ चुका है। पहले एम. नागराज केस में और फिर पिछले वर्ष जरनैल सिंह के मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण से क्रीमी लेयर को बाहर करने की बात कह चुकी है। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जरनैल सिंह के मामले में दिया गया फैसला पुनर्विचार के लिए सात न्यायाधीशों को भेजा जाना चाहिए। पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामले पर दो सप्ताह बाद विचार करने की बात कही।
संविधान पीठ ने ठुकरा दी थी मांग
पिछले वर्ष 26 सिंतबर को सुप्रीम कोर्ट ने जरनैल सिंह के मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 2006 के नागराज केस के फैसले पर पुनर्विचार की मांग ठुकराते हुए एससी एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर के सिद्धांत को सही ठहराया था। हालांकि, कोर्ट ने नागराज फैसले में सिर्फ इतना संशोधन किया था कि एससी- एसटी को आरक्षण देने के लिए उनका पिछड़ापन साबित करने की जरूरत नहीं है। यानी उन्हें आरक्षण देने के लिए पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाने नहीं पड़ेंगे। लेकिन जरनैल सिंह के फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देते समय सरकार अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता को देखेगी।
SC ने कहा, ध्वस्त हो जाएगा बराबरी का सिद्धांत
नागराज मामले के फैसले में शीर्ष अदालत ने ये भी कहा था कि आरक्षण के मामले में 50 फीसद की सीमा, क्रीमी लेयर सिद्धांत, पिछड़ापन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता संवैधानिक जरूरतें हैं और इसके बगैर संविधान के अनुच्छेद 16 में दिया गया बराबरी का सिद्धांत ध्वस्त हो जाएगा। केंद्र सरकार सहित कई राज्य सरकारों और संगठनों ने नागराज के फैसले में दी गई इस व्यवस्था को गलत बताते हुए इस फैसले को सात जजों की पीठ को पुनर्विचार के लिए भेजे जाने की मांग की थी।
मामला दोबारा कोर्ट के सामने इसलिए आया था कि पिछड़ेपन के आंकड़े न जुटाने के कारण कई राज्यों के एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के कानून कोर्ट से रद हो गए थे। सरकार का कहना था कि एससी एसटी पिछड़े ही होते हैं इसलिए उनके लिए अलग से पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाने की शर्त गलत है।