केंद्र सरकार की नहीं जा रही पेट्रोल डीजल से खजाना भरने की आदत
केंद्र व राज्यों ने संयुक्त तौर पर तमाम पेट्रोलियम उत्पादों से 14,67,462 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र में चाहे कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए हो या भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए। आदत एक ही है। हम बात कर रहे हैं पेट्रोल और डीजल पर ज्यादा शुल्क लगा कर खजाना भरने की कहानी की। राज्यों में भी यही स्थिति होती है। वर्ष 2014 चुनाव से पहले पेट्रो उत्पादों पर ज्यादा शुल्क को बड़ा मुद्दा बनाने वाली भाजपा ने सरकार बनाने के बाद पेट्रोल और डीजल पर शुल्क बढ़ाने में कोई नरमी नहीं दिखाई।
चार वर्षो में पेट्रोलियम उत्पादों से केंद्र व राज्यों ने की 14,67,462 करोड़ की कमाई
सिर्फ केंद्र के खजाने में गई 8,06,319 करोड़ रुपये की रकम
मई, 2014 में पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क की दर 9.48 रुपये प्रति लीटर थी जो कई बार बढ़ाने की वजह से आज की तारीख में 19.48 रुपये रुपये प्रति लीटर है। डीजल पर उत्पाद शुल्क की दर 3.56 रुपये प्रति लीटर थी जो आज की तारीख में 15.33 रुपये है। यह स्थिति तब है जब अक्टूबर, 2017 में इन दोनों उत्पादों पर शुल्क में दो-दो रुपये की कटौती की गई है। राज्यों की भी यही स्थिति है।
आज देश के 20 राज्यों में भाजपा शासित सरकार है, लेकिन चार राज्यों को छोड़ दिया जाए तो किसी भी अन्य राज्य ने पिछले चार वर्षो में वैट को घटा कर जनता को महंगे पेट्रोल डीजल से राहत देने की कोशिश नहीं की है। पेट्रोल पर सबसे कम वैट की दर 16.62 फीसद गोवा में है जबकि अधिकतम मुंबई (महाराष्ट्र) में 39.48 फीसद है। कुल 28 राज्यों में यह दर 25 से 35 फीसद के बीच है। डीजल की भी यही स्थिति है।
13 राज्यों में वैट की दर 20 फीसद से ज्यादा है। नतीजा यह है कि अप्रैल, 2014 से लेकर दिसंबर, 2017 के बीच (तीन वित्त वर्ष व नौ महीनों) के दौरान केंद्र व राज्यों ने संयुक्त तौर पर तमाम पेट्रोलियम उत्पादों से 14,67,462 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया है। इसमें केंद्र का हिस्सा 8,06,319 करोड़ रुपये का है। चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में केंद्र ने तमाम पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स लगा कर 1,97,715 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया जबकि राज्यों के लिए यह राशि 1,50,916 करोड़ रुपये की थी।
उल्लेखनीय तथ्य यह है कि केंद्र सरकार जो राजस्व हासिल करती है उसका 42 फीसद भी राज्यों के हिस्से जाता है। इस तरह से एनडीए के पहले तीन वर्ष व नौ महीनों के कार्यकाल में राज्यों ने कुल 6,61,053 करोड़ रुपये की राशि और साथ ही केंद्र की वसूली में भी 42 फीसद हिस्सा मिला है।