केंद्रीय मदद के बावजूद नक्सली इलाकों में थाने बदहाल
नई दिल्ली [नीलू रंजन]। नक्सली हिंसा में कमी होते ही राज्य सरकारों ने इस समस्या से निपटने में कोताही दिखानी शुरू कर दी है। हालत यह है कि नक्सली हिंसा से सबसे अधिक पीड़ित छत्तीसगढ़ और झारखंड केंद्रीय सहायता के बावजूद थानों की किलेबंदी का काम शुरू नहीं कर रहे हैं। बुधवार को गृह मंत्रालय में समीक्षा बैठक के दौरान दोनों राज्यों को
नई दिल्ली [नीलू रंजन]। नक्सली हिंसा में कमी होते ही राज्य सरकारों ने इस समस्या से निपटने में कोताही दिखानी शुरू कर दी है। हालत यह है कि नक्सली हिंसा से सबसे अधिक पीड़ित छत्तीसगढ़ और झारखंड केंद्रीय सहायता के बावजूद थानों की किलेबंदी का काम शुरू नहीं कर रहे हैं। बुधवार को गृह मंत्रालय में समीक्षा बैठक के दौरान दोनों राज्यों को इसके लिए तत्काल कदम उठाने के निर्देश दिए गए।
गौरतलब है कि नक्सली इलाकों में थानों पर हमला पर हथियार लूटने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर दो साल पहले केंद्र सरकार ने 400 थानों में इमारत व बाउंड्री वॉल को सुरक्षा के लिहाज से निरापद बनाने के लिए राज्य सरकारों को सहायता देने का फैसला किया था। इसके लिए प्रति थाना दो करोड़ रुपये की राशि दी जा रही है। नक्सली हिंसा में सबसे ऊपर रहने वाले छत्तीसगढ़ और झारखंड में 75-75 थानों की किलेबंदी के लिए केंद्रीय सहायता दी गई थी, लेकिन छत्तीसगढ़ में 49 और झारखंड में 55 थानों की किलेबंदी पर काम दो साल बाद भी शुरू नहीं हो पाया है। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में नक्सली हिंसा प्रभावित 10 थानों की किलेबंदी की जानी थी, लेकिन एक पर भी काम शुरू नहीं हो पाया है।
गृह मंत्रालय की समीक्षा बैठक के दौरान इन राज्यों के अधिकारी थानों की किलेबंदी न किए जाने को लेकर भी नक्सली हिंसा का हवाला दे रहे थे। उनके अनुसार नक्सलियों के डर के कारण इन पर काम शुरू नहीं हो पाया है, लेकिन सुरक्षा एजेंसी से जुड़े अधिकारियों ने उनकी इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया। इन राज्यों को तत्काल इसके लिए उचित कदम उठाने को कहा गया है। सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि थानों की किलेबंदी के बिना कोई भी राज्य सरकार नक्सलियों से मुकाबला करने की कैसे सोच सकती है।
बात सिर्फ थानों की किलेबंदी तक सीमित नहीं है। नक्सली इलाकों में यातायात की सुविधाएं देने के लिए केंद्रीय सहायता से बनने वाली सड़कों के मामले में भी झारखंड और छत्तीसगढ़ का रिकॉर्ड कमजोर है। छत्तीसगढ़ में ऐसी 1200 किलोमीटर सड़क बननी थी, लेकिन अभी तक केवल 600 किलोमीटर सड़क ही बन पाई है। झारखंड के प्रस्तावित ऐसी 800 किलोमीटर की सड़क में केवल 200 किलोमीटर पर ही काम हो पाया है।
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