केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से की मध्य प्रदेश निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण का आदेश वापस लेने की मांग
सरकार ने कहा है कि अंतरिम आदेश देकर कोर्ट फिलहाल के लिए चुनाव टाल दे। केंद्र सरकार ने कोर्ट से आग्रह किया है कि मध्य प्रदेश निकाय चुनाव के लंबित मामले में जिसमें कोर्ट ने 17 दिसंबर का आदेश दिया था उसे भी पक्षकार बनाया जाए।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मध्य प्रदेश में निकाय चुनाव में ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव रोक कर उन्हें सामान्य वर्ग के लिए नये सिरे से अधिसूचित करने का 17 दिसंबर का आदेश वापस लेने की मांग की है। केंद्र सरकार ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कोर्ट से आदेश को वापस लेने या संशोधित करने का आग्रह किया है। सरकार ने यह भी कहा है कि कोर्ट फिलहाल चार महीने के लिए मध्य प्रदेश में निकाय चुनाव टाल दे और राज्य सरकार को आदेश दे कि वह तब तक ओबीसी के बारे में आयोग की रिपोर्ट लाए।
सरकार ने मध्य प्रदेश निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू करने की पैरवी करते हुए कहा है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग का उत्थान सरकार की प्राथमिकता है। इसलिए स्थानीय निकाय में पिछड़ा वर्ग का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व होने से ग्रास रूट स्तर पर सत्ता के विकेन्द्रीकरण के उद्देश्य और मंशा को धक्का लगेगा। यह भी कहा है कि पिछड़ा वर्ग का अपर्यप्त प्रतिनिधित्व या प्रतिनिधित्व न होने से दो स्तरों पर प्रतिकूल असर होगा। एक तो पिछड़ा वर्ग निर्वाचित होने के मौके से वंचित होगा दूसरा, पिछड़े वर्ग (ओबीसी) वर्ग का मतदाता अपने वर्ग में से किसी का चुनाव करने से वंचित होगा।
सरकार ने कहा है कि यह संवैधानिक योजना, उद्देश्य और मंशा के खिलाफ है। कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर का आदेश उस वक्त जारी किया जब ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव प्रक्रिया चालू थी। उस स्टेज पर कोर्ट के दखल देने से ओबीसी वर्ग के लोग पांच साल की लंबी अवधि के लिए चुने जाने से वंचित रह जाएंगे। सरकार ने अर्जी में प्रार्थना की है कि चार महीने के लिए चुनाव टाल दिये जाएं और राज्य सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह पिछड़ा वर्ग के बारे में आयोग से रिपोर्ट मंगाए, उसके बाद राज्य चुनाव आयोग उस आधार पर चुनाव कराए।
अंतरिम आदेश देकर कोर्ट फिलहाल के लिए चुनाव टाल दे: सरकार
केंद्र ने कहा है कि तबतक के लिए प्रशासक कामकाज देख सकता है जो कि ओबीसी आरक्षण के प्रावधानों के साथ चुनाव होने के बाद नये चुने व्यक्ति या संस्था को कामकाज सौंप देगा। इससे सुप्रीम कोर्ट के केके कृष्णमूर्ति और विकास कृष्णराव गवली के पूर्व मे दिये गए आदेश का अनुपालन भी सुनिश्चित होगा और पिछड़ा वर्ग के हितों के बीच भी संतुलन कायम होगा। ऐसा करने से निर्वाचित सदस्यों का पूरा हो चुका पांच साल का कार्यकाल भी नहीं बढ़ाना पड़ेगा। सरकार ने कहा है कि अंतरिम आदेश देकर कोर्ट फिलहाल के लिए चुनाव टाल दे। केंद्र सरकार ने कोर्ट से आग्रह किया है कि मध्य प्रदेश निकाय चुनाव के लंबित मामले में जिसमें कोर्ट ने 17 दिसंबर का आदेश दिया था, उसे भी पक्षकार बनाया जाए।
2010 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बनाया था आधार
सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर को संविधान पीठ के 2010 के फैसले को आधार बनाया था जिसमें कहा गया है कि आरक्षण लागू करने से पहले तीन शर्तों का पालन करना जरूरी है। जिसमें राज्य सरकार को ओबीसी आरक्षण लागू करने से पहले आयोग गठित कर राज्य में पिछड़े वर्ग के पिछड़ेपन के बारे में अध्ययन करना होगा। इसके बाद तीन जजों की पीठ ने भी इस फैसले को दोहराया था। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले 15 दिसंबर को महाराष्ट्र के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू करने पर रोक लगाते हुए ओबीसी के लिए आरक्षति 27 फीसद सीटों को नये सिरे से सामान्य वर्ग के लिए अधिसूचित करके चुनाव कराने का आदेश दिया था। इसके बाद 17 दिसंबर को कोर्ट ने ऐसा ही आदेश मध्य प्रदेश के निकाय चुनाव के बारे में भी दिया। सरकार ने कहा है कि कोर्ट को दिये गए भरोसे के मुताबिक केंद्र ने सभी राज्यों को उपरोक्त दोनों बाध्यकारी फैसलों के कड़े अनुपालन की एडवाइजरी जारी की है।