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ईद-उल-अजहा आज, जानिए- क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी

पूरे देश में आज बकरीद मनाई जा रही है। दिल्ली की जामा मस्जिद में सुबह ईद की नमाज अदा की गई।

By Arti YadavEdited By: Published: Wed, 22 Aug 2018 07:54 AM (IST)Updated: Wed, 22 Aug 2018 10:23 AM (IST)
ईद-उल-अजहा आज, जानिए- क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी
ईद-उल-अजहा आज, जानिए- क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी

नई दिल्ली (जेएनएन)। पूरे देश में आज यानी बुधवार को बकरीद मनाई जा रही है। दिल्ली की जामा मस्जिद में सुबह ईद की नमाज अदा की गई। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देशवासियों को ईद की शुभकामनाएं दी। उन्होंने ट्विटर पर लिखा ईद-उल-जुहा के अवसर पर सभी देशवासियों विशेषकर हमारे मुस्लिम भाइयों और बहनों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। इस विशेष दिन हम त्याग और बलिदान की भावना के प्रति अपना आदर व्यक्त करते हैं। आइए, अपने समावेशी समाज में एकता और भाइचारे के लिए मिलकर काम करें।

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पीएम मोदी ने इद-उल-जुहा पर देशवासियों को शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि आज हमारे समाज में करुणा और भाईचारे की भावना को गहरा कर दें।

बकरीद को अरबी में 'ईद-उल-जुहा' कहते हैं। इस्लामिक मान्यता के अनुसार हजरत इब्राहिम अपने पुत्र इस्माइल को इसी दिन खुदा के लिए कुर्बान करने जा रहे थे, तो अल्लाह ने, उनके पुत्र को जीवनदान दे दिया जिसकी याद में यह पर्व मनाया जाता है। अरबी में 'बक़र' का अर्थ है बड़ा जानवर जो जिबह किया (काटा) जाता है, ईद-ए-कुर्बां का मतलब है 'बलिदान की भावना' और 'क़र्ब' नजदीकी या बहुत पास रहने को कहते हैं मतलब इस मौके पर इंसान भगवान के बहुत करीब हो जाता है। ईद-उल-फितर यानी मीठी ईद के बाद मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार बकरीद आता है। मीठी ईद के ठीक 2 महीने बाद बकरीद आती है। कुर्बानी का पर्व 'बकरीद' कई मायनों में खास है और एक विशेष संदेश लोगों को देता है।

जानवर की कुर्बानी
बकरीद के दिन सबसे पहले सुबह नमाज अदा की जाती है। इसके बाद बकरे या फिर अन्य जानवर की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के बकरे के गोश्त को तीन हिस्सों करने की शरीयत में सलाह है। गोश्त का एक हिस्सा गरीबों में तकसीम किया जाता है, दूसरा दोस्त अहबाब के लिए और वहीं तीसरा हिस्सा घर के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

ईद की पीछे की कहानी

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार हजरत इब्राहिम पैगंबर थे। वह हमेशा बुराई के खिलाफ लड़े, उनके जीने का मकसद ही लोगों की सेवा करना था। 90 साल की उम्र तक उनकी कोई औलाद नहीं हुई तो उन्होने खुदा से इबादत की तब जाकर उन्हें बेटा इस्माईल की प्राप्ति हुई। उन्हें सपने में आदेश आया कि खुदा की राह में कुर्बानी दो। उन्होंने कई जानवरों की कुर्बानी दी, लेकिन सपने उन्हें आने बंद नहीं हुए। उनसे सपने में कहा गया कि तुम अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दो, तब उन्होंने इसे खुदा का आदेश माना और अपने बेटे की कुर्बानी के लिए तैयार हो गए।

ऐसा कहा जाता है कि हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी लेकिन जब उन्होंने पट्टी खोली तो देखा कि मक्का के करीब मिना पर्वत की उस बलि वेदी पर उनका बेटा नहीं, बल्कि दुंबा था और उनका बेटा उनके सामने खड़ा था। विश्वास की इस परीक्षा के सम्मान में दुनियाभर के मुसलमान इस अवसर पर अल्लाह में अपनी आस्था दिखाने के लिए जानवरों की कुर्बानी देते हैं।


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