Move to Jagran APP

राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों को दंडित करने में बरतें सावधानी : सुप्रीम कोर्ट

राजनीति के अपराधीकरण मामले में सर्वोच्च अदालत ने की सुनवाई।

By Nitin AroraEdited By: Published: Sat, 01 Feb 2020 09:56 AM (IST)Updated: Sat, 01 Feb 2020 09:56 AM (IST)
राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों को दंडित करने में बरतें सावधानी : सुप्रीम कोर्ट
राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों को दंडित करने में बरतें सावधानी : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों या प्रत्याशियों को पुराने आपराधिक मामलों के लिए सावधानीपूर्वक दंडित किया जाना चाहिए। खासकर जब उन पर देशद्रोह और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के आरोप लगे हों, चूंकि ऐसे आरोप राजनीतिक कारणों से भी लगाए जा सकते हैं।

loksabha election banner

जस्टिस आरएफ नरिमन और एस.रविंद्र भट की खंडपीठ ने शुक्रवार को यह एक अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए कहा। याचिका में राजनीतिक के अपराधीकरण पर सर्वोच्च अदालत के 25 सितंबर, 2018 के फैसले का पालन नहीं करने का दावा किया गया है। लिहाजा, खंडपीठ ने कहा कि हमें ऐसे मामलों में बेहद सावधान रहने की जरूरत है। चूंकि अब आरोप राजनीति से प्रेरित होकर भी लगाए जा रहे हैं। इन मामलों पर आरोप लगाना बेहद आसान है। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की ओर से देशद्रोह और देश-विरोधी होने के आरोप लगाना बेहद आसान है।

चुनाव आयोग ने अदालत को बताया कि सांसदों के खिलाफ लंबित मामलों के आंकड़े बेहद परेशान करने वाले हैं। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार मौजूदा संसद में 43 फीसद सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। चुनाव आयोग की तरफ से पेश वकील विकास सिंह ने बताया कि चुनाव आयोग, भाजपा नेता और याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश वकील गोपाल शंकरनारायणन के इस सुझाव को मानने को तैयार हो गया है कि सभी राजनीतिक दल अनिवार्य रूप से अपने वेबसाइटों पर अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकार्ड को अपलोड कर दें। साथ ही यह भी स्पष्ट करें उन सीटों के लिए बिना आपराधिक रिकार्ड वाले उम्मीदवारों का चयन क्यों नहीं किया जा सका।

इसके बावजूद चुनाव आयोग का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत राजनीतिक दलों या उनके उम्मीदवारों को उनका आपराधिक रिकार्ड न बताने पर दंडित करने का सुझाव मानने योग्य नहीं है। चूंकि उसके पास ऐसा कोई भी कदम उठाने के अधिकार नहीं हैं।

शंकरनारायणन ने खंडपीठ को बताया कि संविधान पीठ के सितंबर, 2018 के फैसले को बिना किसी जुर्माने या प्रतिबंध के लागू किया जाना चाहिए। अन्यथा राजनीतिक दल या उनके उम्मीदवार सर्वोच्च अदालतों की हिदायतों का पालन नहीं कर सकेंगे। इसलिए हमें व्यवहारिकता का ध्यान रखते हुए इस बारे में राजनीतिक दलों को ही फैसला लेने देना चाहिए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.