कैंसर मरीजों का जीवन लंबा करता विटामिन डी, रिसर्च में आया सामने, जानें क्या है रिसर्च
एक शोध में सामने आया है कि यदि कैंसर का मरीज तीन साल तक विटामिन डी सप्लीमेंट लेता है तो उसकी जिंदगी के तीन साल लंबे हो जाते हैं।
नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। यदि आप अपनी जिंदगी के कुछ साल और बढ़ाना चाहते हैं तो आपको विटामिन डी की मात्रा अधिक लेनी होगी, इसको आप सप्लीमेंट के तौर पर भी ले सकते हैं या फिर किसी अन्य माध्यम से भी। वैसे तो अब तक खुश रहने को अधिक जिंदगी जीने का कारण माना जाता था मगर अब एक शोध में सामने आया है कि यदि आप लगातार कुछ साल तक विटामिन डी का सप्लीमेंट लेते रहते हैं तो आपके जिंदगी के कुछ साल और बढ़ जाएंगे। ये आम लोगों के साथ-साथ कैंसर के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है। एक रिसर्च में ये बात सामने आ चुकी है कि यदि कैंसर के मरीज लगातार तीन साल तक विटामिन डी का सेवन करते रहते हैं तो उनकी जिंदगी के कुछ साल और बढ़ जाते हैं।
अमेरिका की मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इसको लेकर एक रिसर्च किया है। शोधकर्ताओं ने लगभग तीन साल तक 79 हजार से अधिक लोगों पर अध्ययन किया। इस अध्ययन के बाद विटामिन डी के उपयोग की तुलना प्लेसबो(बचाव की अन्य दवाओं)से की गई थी। इसी में ये बात सामने आई कि कैंसर के कारण होने वाली मौत के खतरे को कम करने के लिए विटामिन डी सबसे महत्वपूर्ण है। यदि कोई कैंसर की मरीज लगातार तीन साल तक विटामिन डी का उपयोग करता रहता है तो उसकी जिंदगी के साल बढ़ जाते हैं।
एक सर्वे के मुताबिक़ ब्रिटेन में विटामिन सप्लीमेंट लेने वाले एक तिहाई लोग विटामिन डी की गोलियां खाते हैं. पर, लोगों के विटामिन डी की गोलियां खाने पर सवाल भी उठते रहे हैं।
जानिए इन 5 बीमारियों के बारे में, जो विटामिन डी की कमी से होती है -
हड्डी और मांसपेशियां कमजोर - यदि आप हड्डिीयों में दर्द व कमजोरी के साथ ही मांसपेशियों में लगातार दर्द महसूस कर रहे हैं, तो यह विटामिन डी की कमी के कारण हो सकता है। विटामिन डी हड्डिमयों के लिए अति आवश्यक होने के साथ ही दांतों और मांसपेशियों के लिए भी बहुत जरूरी पोषक तत्व है।
उच्च रक्तचाप - अगर आपके शरीर में विटामिन डी की कमी हो रही है, तो इसका असर आपके ब्लडप्रेशर यानि रक्तचाप पर पड़ सकता है। इसकी कमी से अक्सर उच्च रक्तचाप कर समस्या पैदा होती है।
तनाव एवं उदासी - खास तौर से महिलाओं में विटामिन डी की कमी से तनाव की समस्या पैदा हो जाती है और इसके कारण वे लगातार उदासी महसूस करती हैं। महिलाओं में विटामिन डी की आवश्यकता अधिक होती है।
मूड पर असर - शरीर में विटामिन डी की कमी का सीधा असर आपके मूड पर पड़ता है। इसकी कमी से शरीर में सेरोटोनिन हार्मोन के निर्माण पर असर पड़ता है जो आपके बदलते मूड के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
आलस और थकान - अगर आप अपने अंदर ऊर्जा की महसूस करते हैं और लगातार थकान व आलस से भरा महसूस करते हैं, तो शरीर में विटामिन डी के स्तर की जांच करवाइए। विटामिन डी की कमी के कारण भी हो सकता है।
विटामिन डी को चमत्कारी विटामिन कहा जाता है। माना जाता है कि ये विटामिन हमें रोगों से बचाता है। थकान, मांसपेशियों की कमज़ोरी, हड्डियों में होने वाली तकलीफ़ और डिप्रेशन से बचाने में भी विटामिन डी मददगार बताया जाता है।
विटामिन डी की गोलियां खाने की सलाह
इसमें कोई दो राय नहीं कि विटामिन डी हमारी हड्डियों की सेहत के लिए बहुत अहम है। ये हड्डियों में कैल्शियम और फॉस्फेट की तादाद को नियमित करता है। यही वजह है कि जिन लोगों के शरीर में विटामिन डी की कमी होती है, उन्हें विटामिन डी की गोलियां खाने की सलाह अक्सर दी जाती है।
ब्रिटेन की बात करें तो यहां की कुल आबादी के 20 प्रतिशत लोगों मे विटामिन डी की भारी कमी पायी जाती है। लेकिन, कुछ जानकार कहते हैं कि अगर लोग सेहतमंद हैं, तो उन्हें विटामिन डी की गोलियां खाने की ज़रूरत नहीं यानी आबादी के एक बड़े हिस्से को इन गोलियों की ज़रूरत नहीं। इन जानकारों का ये कहना है कि ये ग़लतफ़हमी है कि विटामिन डी की गोलियां लेने से बीमारियों से लड़ने की ताक़त मिलती है।
विटामिन डी की हकीकत
इसका नाम भले ही विटामिन डी हो, असल में ये विटामिन नहीं है, ये एक हारमोन है, जो हमारे शरीर को कैल्शियम पचाने में मदद करता है। दिक़्क़त ये है कि बहुत ज़्यादा तेल वाली मछली को छोड़ दें, तो हमारे पास खान-पान के ज़रिए विटामिन डी हासिल करने का कोई और तरीक़ा नहीं। सूरज की अल्ट्रावायोलेट बी किरणें जब हमारे शरीर पर पड़ती हैं, तो हमारा शरीर अंदर मौजूद कोलेस्ट्रॉल से विटामिन डी बना लेता है। विटामिन डी की दूसरी क़िस्म है डी2 जो पौधों से मिलने वाले खान-पान जैसे मशरूम में पाया जाता है।
कितनी विटामिन डी जरूरी
ब्रिटेन में हर इंसान को रोज़ाना 10 माइक्रोग्राम विटामिन डी सप्लीमेंट की ज़रूरत बताई गई है। इसे सूरज की रोशनी से भी हासिल किया जा सकता है. लेकिन, किसी के शरीर में अगर विटामिन डी की भारी कमी है, तो वो सप्लीमेंट भी ले सकता है। कनाडा और अमरीका में 15 माइक्रोग्राम विटामिन डी की ज़रूरत बताई गई है। अमरीका के ज़्यादातर दूध, ब्रेकफ़ास्ट, अनाजों, मार्जरीन, दही और संतरे के जूस में विटामिन डी मिलाकर बेचा जाता है। विटामिन डी की कमी से बोन डेन्सिटी कम होती है, इससे रिकेट्स नाम की बीमारी हो जाती है, इसके शिकार नवजात और बच्चे ज़्यादा होते हैं।
विटामिन डी की कमी से शरीर पर क्या असर होगा?
शरीर में विटामिन डी कम होने पर मांसपेशियां कमज़ोर होती हैं और लोग थकान के ज़्यादा शिकार होते हैं वो हरदम थकान महसूस करते हैं। ऐसे लोग अगर पांच हफ़्ते तक विटामिन डी सप्लीमेंट लेते हैं, तो उन्हें राहत मिल जाती है। विटामिन डी कम होने से हमारा शरीर पूरी ताक़त से काम नहीं कर पाता है। विटामिन डी होने से हमारा शरीर कीटाणुओं के हमले से बच पाता है। विटामिन डी के सप्लीमेंट की ज़रूरत हड्डियों के बढ़ने और रख-रखाव के लिए होती है। जिस रिसर्च के आधार पर विटामिन डी की रोज़ाना की ज़रूरत तय की गई है, वो बुज़ुर्गों पर किया गया था. ये लोग सूरज की रोशनी नहीं ले पाते इनकी हड्डियां टूटने का डर ज़्यादा होता है, बुज़ुर्गों में ओस्टियोपोरोसिस की बीमारी भी ज़्यादा होती है।
सूरज की रोशनी कारगर
अगर आप खुले हाथ बाहर वक़्त बिताते हैं, तो उन पर पड़ने वाली सूरज की रोशनी आपकी विटामिन डी की ज़रूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त है, ख़ास तौर से मार्च से अक्तूबर के बीच, जो लोग ऐसे माहौल को हासिल कर सकते हैं, सारा लेलैंड के मुताबिक़ उन्हें विटामिन डी सप्लीमेंट लेने की ज़रूरत नहीं. लेकिन, जिन्हें इतनी भी सूरज की रोशनी नहीं मिलती, उन्हें विटामिन डी सप्लीमेंट लेना चाहिए।
विटामिन डी के फ़ायदे
यूं तो इसे चमत्कारिक विटामिन कहा जाता है, मगर विटामिन डी का दूसरी बीमारियों से ताल्लुक़ पूरी तरह से साबित नहीं हो सका है। सबसे बड़ा दावा ये किया जाता है कि विटामिन डी से हमारी रोगों से लड़ने की ताक़त बढ़ती है, बेहतर होती है। लंदन में हुए एक रिसर्च ये पता चला है कि विटामिन डी से हमारी सांस की नली में होने वाले इन्फेक़्शन से बचाव होता है। उम्र बढ़ने के साथ दस बीमारियां लग जाती हैं. माना जाता है कि विटामिन डी इस दौरान हमारे लिए मददगार होता है। विटामिन डी3 हमारे शरीर की कोशिकाओं में प्रोटीन की मात्रा को नियमित करता है, जो शरीर की बनावट के लिए ज़रूरी होती हैं। इससे उम्रदराज़ होने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। वैसे, जानकार कहते हैं कि विटामिन डी के इस असर को साबित करने के लिए अभी और रिसर्च की ज़रूरत है. इसी तरह दिल की बीमारियों की रोकथाम में विटामिन डी के रोल को समझने के लिए भी रिसर्च की ज़रूरत बताई गई है।
डिप्रेशन पर विटामिन डी का असर
सूरज की रोशनी से बार-बार वाबस्ता होने से हमारा मूड बेहतर होता है इसका ये निष्कर्ष निकाला जाता है कि विटामिन डी हमें डिप्रेशन से लड़ने में मदद करता है। लेकिन डिप्रेशन का विटामिन डी से सीधा संबंध है ये बात भी रिसर्च से पक्के तौर पर साबित नहीं हो सकी है। असल में सेरोटिनिन नाम का पिगमेंट होता है, जिसका संबंध हमारे मूड से होता है, जो हमें सूरज की रोशनी से मिलता है। इसी तरह नींद को नियमित करने वाला पिगमेंट मेलाटोनिन भी हमें विटामिन डी के ज़रिए हासिल होता है। इन में से किसी की भी कमी हमारे अंदर डिप्रेशन वाले लक्षण पैदा करती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारी दिमाग़ी सेहत में विटामिन डी अहम रोल निभाता है। लेकिन, डिप्रेशन से इसका सीधा ताल्लुक़ अब तक साबित नहीं हुआ है।
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