सरकार को यातना पर कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते : सुप्रीम कोर्ट
पीठ वरिष्ठ वकील और पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री अश्वनी कुमार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
नई दिल्ली, प्रेट्र : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि हिरासत में अमानवीय व्यवहार और यातनाएं देने पर रोक के लिए वह सरकार को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकता। खास तौर पर तब, जबकि सरकार पूरी गंभीरता से इस मसले पर विचार कर रही है और उसने यातनाओं पर संयुक्त राष्ट्र समझौते को भी स्वीकार करने का फैसला कर लिया है।
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र, जस्टिस एएम खानविल्कर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने इस संदर्भ में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की उस दलील का हवाला दिया जिसमें उन्होंने बताया कि याचिका में किया गया अनुरोध विधि आयोग के समक्ष भी चर्चा का विषय है। पीठ वरिष्ठ वकील और पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री अश्वनी कुमार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में उन्होंने इस मसले पर प्रभावी कानून बनाने के निर्देश देने और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसी एजेंसियों को अपने आदेश और निर्देश लागू कराने की जरूरी क्षमताओं और तंत्र से लैस करने की मांग की है।
लेकिन, अटॉर्नी जनरल की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने अश्वनी कुमार से सवाल किया, 'क्या हम विधायिका को कानून बनाने का निर्देश दे सकते हैं? वे कह रहे हैं कि वे इस पर पूरी गंभीरता से विचार कर रहे हैं। क्या हम सरकार को संयुक्त राष्ट्र के किसी खास समझौते को स्वीकार करने और कानून बनाने के निर्देश दे सकते हैं?' इस पर अश्वनी कुमार ने पीठ से अनुरोध किया कि वह मामले को एक या दो महीनों के लिए लंबित रखें ताकि यह देखा जा सके कि इस पर विधायिका कैसे आगे बढ़ रही है। लेकिन, पीठ उनकी दलील से सहमत नहीं हुई और याचिका का निपटारा कर दिया।
इससे पहले अश्वनी कुमार ने अदालत को बताया कि यातनाओं के खिलाफ 1997 के संयुक्त राष्ट्र समझौते पर हस्ताक्षर करने के बावजूद भारत ने इस समझौते को मंजूरी नहीं दी है। इसे मंजूरी प्रदान करने के लिए यातना की परिभाषा और उसके लिए सजा का उल्लेख करने वाला एक कानून बनाया जाना जरूरी है।
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