क्या भारत गंगा का कायाकल्प कर सकता है- जानिए, पर्यावरणविदों ने क्या कहा
जल संसाधन के पूर्व विशेष सचिव शशि शेखर ने कहा कि नदी के जल का स्वाभाविक प्रवाह जरूरी है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। पर्यावरणविदों का कहना है कि गंगा नदी का प्रवाह उस पर बने 940 बांधों और बैराजों की वजह से बाधित हो रहा है। इससे गंगा के कायाकल्प को भी खतरा है।
शनिवार को 'क्या भारत गंगा का कायाकल्प कर सकता है' विषय पर आयोजित सेमिनार में पर्यावरणविद और जल प्रबंधन विशेषज्ञ रवि चोपड़ा ने कहा कि सरकार पूरा ध्यान सिर्फ गंगा नदी को साफ करने पर लगा रही है। वह उसके कायाकल्प पर ध्यान नहीं दे रही है। नदी को अगर फिर से उसके पुराने रूप में पहुंचाना है तो सबसे जरूरी है उसका कायाकल्प करना।
पर्यावरणविदों के संयुक्त पत्र में उन्होंने दावा किया कि गंगा नदी पर 940 से अधिक छोटे-बड़े बांध और बैराज बना दिए गए हैं। इनसे नदी के जल का बहाव थम रहा है या बाधित हो रहा है। इससे नदी को पुनर्जीवन देने में बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
एक अन्य पर्यावरणविद मनोज मिश्रा ने कहा कि गंगा में प्रदूषण की मुख्य वजह उसमें गिरने वाला शहरों का ठोस अपशिष्ट है। नगरपालिकाएं और उद्योग जगत का सारा कचरा भी गंगा नदी में ही गिराया जाता है। गंगा में 80 फीसद प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सीवेज है। इसमें से 52 फीसद सीवेज तो अनट्रीटेड रूप में ही गंगा में डाला जाता है।
मिश्रा ने बताया कि नगरपालिका का सबसे अधिक कचरा उत्तर प्रदेश से आता है। उत्तर प्रदेश प्रतिदिन 761 टन सीवेज गंगा में गिराता है। इसके बाद बिहार प्रतिदिन 99.50 टन सीवेज और पश्चिम बंगाल 97 टन प्रतिदिन सीवेज गंगा नदी में गिराता है। नदी की जलधारा के प्रवाह में सुधार के लिए समूची नदी के कायाकल्प की जरूरत है।
जल संसाधन के पूर्व विशेष सचिव शशि शेखर ने कहा कि यह समझ बढ़ाने की जरूरत है कि नदी के जल का स्वाभाविक प्रवाह जरूरी है। और केवल नदी की सफाई से उसका पुराना रूप नहीं मिल सकता। हम केवल नदी में गिरने वाले सीवेज पर ध्यान दे रहे हैं, लेकिन असली समाधान नदी का बहना जारी रखने में है। प्रदूषण का असली समाधान भी इसी में है।