कैग ने भी उठाई वीवीआइपी हेलीकॉप्टर सौदे पर अंगुली
वीवीआइपी हेलीकॉप्टर खरीद मामले में सरकार ने साल 2006 के रक्षा मंत्रालय के नियमों की अनदेखी की है। मंगलवार को कैग ने राज्यसभा में हेलीकॉप्टर डील पर सवाल उठाए। कैग की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि सौदे में हेलीकॉप्टरों की कीमतों को बढ़ाकर दिखाया गया जिसकी वजह से देश को आर्थिक घाटा झेलना पड़ा है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) ने वीवीआइपी हेलीकॉप्टर खरीद सौदे में नियमों की व्यापक अनदेखी और गड़बड़ियों को लेकर रक्षा मंत्रालय और वायुसेना को जमकर फटकार लगाई है। कैग ने हेलीकॉप्टरों की कीमत, उनकी संख्या समेत अनेक पैमानों पर मंत्रालय के फैसलों को गलत बताया है, जिनके कारण देश को आर्थिक घाटा झेलना पड़ा।
मामले में सीबीआइ जांच के घेरे में आ चुके पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी के बाद उनके उत्तराधिकारी फली मेजर के हेलीकॉप्टर परीक्षण देश से बाहर कराने के फैसले को भी कैग ने कठघरे में खड़ा किया है।
गौरतलब है कि इस सौदे के मूल्य निर्धारण के दौरान मौजूदा नियंत्रक महालेखा परीक्षक शशिकांत शर्मा रक्षा मंत्रालय में महानिदेशक (खरीद) के पद पर थे। वीवीआइपी सौदे पर रखी गई कैग की रिपोर्ट उनके पूर्ववर्ती विनोद राय के कार्यकाल में तैयार की गई थी।
वायुसेना के लिए 3600 करोड़ रुपये से अधिक के इस सौदे पर मंगलवार को संसद में रखी गई कैग की रिपोर्ट के मुताबिक खरीद के लिए टेंडर की शर्तो में ऐसे बदलाव किए गए, जिनका फायदा अगस्ता-वेस्टलैंड कंपनी को मिला। रिपोर्ट में कहा गया है कि 12 अगस्ता-वेस्टलैंड-101 हेलीकॉप्टरों की लागत शुरुआत में 4877.5 करोड़ रुपये आंकी गई जो कि कंपनी की ओर से दिए गए मूल्य 3966 करोड़ रुपये से काफी ज्यादा थी। कैग ने इस संबंध में मंत्रालय की ओर से मूल्य निर्धारण के फार्मूले और फैसले के बचाव में दी गई दलीलों को खारिज किया है। कैग के अनुसार सौदे की कीमत तय करने के लिए बनी कांट्रेक्ट नेगोशिएशन कमेटी (सीएनसी) ने जो बेंचमार्क कीमत तय की, वह भी काफी अव्यावहारिक थी। कैग ने खरीद सौदे के दौरान प्रभावी रक्षा खरीद नीति-2006 के कई प्रावधानों की अनदेखी को रेखांकित किया है।
महत्वपूर्ण है कि हेलीकॉप्टर आपूर्ति के इस ठेके को पाने के लिए इतालवी कंपनी पर कथित तौर पर भारतीय अधिकारियों को 362 करोड़ रुपये की घूस देने के आरोप लगे हैं, जिनकी भारत और इटली में जांच चल रही है। सौदे के लिए नियमों में बदलाव कर अगस्ता-वेस्टलैंड को फायदा पहुंचाने के आरोप हैं, जिनके घेरे में पूर्व वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल एसपी त्यागी और उनके दो भाइयों समेत कई लोग सीबीआइ जांच के घेरे में हैं।
कैग ने जिन मुद्दों पर सवालिया निशान लगाए हैं, उनमें वीवीआइपी हेलीकॉप्टर की संख्या को आठ से बढ़ाकर 12 किया जाना शामिल है। साथ ही, अक्टूबर 2007 में भारत के लिए खरीदे जा रहे इन हेलीकॉप्टरों के फील्ड परीक्षण देश से बाहर कराए जाने के तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एयरचीफ मार्शल एफएच मेजर के फैसले पर भी सवालिया निशान लगाए हैं। कैग रिपोर्ट के मुताबिक इस फैसले को कतई सही नहीं ठहराया जा सकता। सौदे के लिए अगस्ता-वेस्टलैंड और अमेरिकी कंपनी सिकोर्सिकी के एस-92 हेलीकॉप्टरों का परीक्षण किया गया था।
गौरतलब है कि विदेशों में परीक्षण को लेकर रक्षा मंत्री एके एंटनी की ओर से भी सवाल उठाए गए थे। कैग ने भी रक्षा मंत्री की ओर से उठाए सवालों को सही ठहराया है।
प्रमुख आपत्तियां
-सौदे के लिए 4877.5 करोड़ रुपये का बेंचमार्क मूल्य निर्धारित किया गया जो कंपनी की ओर से दिए गए 3966 करोड़ रुपये के प्रस्तावित मूल्य से 22.8 फीसद अधिक था। हेलीकाप्टर में वीवीआइपी सुरक्षा के लिए अतिरिक्त उपकरणों और संचार जरूरतों के लिए दाम में हुई बढ़ोतरी की दलील खारिज।
-भारत के लिए खरीदे जा रहे हेलीकॉप्टरों के विदेशी धरती पर फील्ड परीक्षण की इजाजत देने का फैसला गलत। पूर्व वायुसेनाध्यक्ष एफएच मेजर ने अक्टूबर 2007 में दी थी इसकी अनुमति।
- उड़ान परीक्षण भी एडब्ल्यू-101 श्रेणी के हेलीकॉप्टर पर नहीं हुए जो भारत खरीद रहा था। जिस वक्त परीक्षण हुए खरीद के लिए चुना गया हेलीकॉप्टर विकसित ही हो रहा था।
- हेलीकॉप्टर की संख्या 8 से बढ़ाकर 12 की गई, जबकि (1999-2010) के बीच वीवीआइपी हेलीकॉप्टर इस्तेमाल का आंकड़ा सिर्फ 29 फीसद रहा। खरीद की इस बढ़ोतरी से सरकारी खजाने को 1240 करोड़ का भार पड़ा, जिससे बचा जा सकता था।
- वीवीआइपी हेलीकॉप्टर खरीद के लिए 1999 से शुरू हुई कवायद 13 साल में भी पूरी नहीं हुई। इस तरह के विलंब को सही नहीं ठहराया जा सकता।
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