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त्वचा बनकर बर्न इंजरी को संक्रमण से बचाएगी पट्टी, अधिक जले मरीजों के लिए होगी रामबाण

आने वाले समय में जलने से घायल होने वाले मरीजों के घाव में संक्रमण नहीं फैलेगा और वह दोगुनी रफ्तार से ठीक भी होगा। एसीटोबैक्टर जाइलम बैक्टीरिया के सेलुलोज से बनी पट्टी जले हुए स्थान पर त्वचा की तरह चिपक जाएगी और संक्रमण नहीं फैलने देगी।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 27 Jul 2021 06:20 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jul 2021 06:20 PM (IST)
त्वचा बनकर बर्न इंजरी को संक्रमण से बचाएगी पट्टी, अधिक जले मरीजों के लिए होगी रामबाण
एसीटोबैक्टर जाइलम बैक्टीरिया के सेलुलोज से बनी पट्टी

 विक्सन सिक्रोडिय़ा, कानपुर। जलने पर मरीज के सामने सबसे बड़ा खतरा संक्रमण का होता है। कई बार संक्रमण इतना बढ़ जाता है कि मरीज की जान पर बन आती है लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। आने वाले समय में जलने से घायल होने वाले मरीजों के घाव में संक्रमण नहीं फैलेगा और वह दोगुनी रफ्तार से ठीक भी होगा। एसीटोबैक्टर जाइलम बैक्टीरिया के सेलुलोज से बनी पट्टी जले हुए स्थान पर त्वचा की तरह चिपक जाएगी और संक्रमण नहीं फैलने देगी। फोरियर ट्रांसफार्म इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (एफटीआइआर उपकरण) के परीक्षण में इस पट्टी के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।

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बैक्टीरिया के सेलुलोज से बनाई गई पट्टी

उत्तर प्रदेश वस्त्र प्रौद्योगिकी संस्थान (यूपीटीटीआइ) से टेक्सटाइल टेक्नोलाजी के पीएचडी छात्र आशुतोष पांडेय ने डीन एकेडमिक प्रो. मुकेश सिंह के निर्देशन में बैक्टीरिया सेलुलोज से ऐसी मेडिकल पट्टी बनाई है जो वर्तमान चिकित्सा पद्धति की तुलना में जलने वाले मरीज के घाव को जल्दी भरने में कारगर है। उन्होंने बताया कि विशेष प्रकार के बैक्टीरिया से निकलने वाले सेलुलोज को पट्टी में जेल की तरह लपेटकर उसे तैयार किया गया है। इस पट्टी को घाव पर बिना किसी दवा के लपेटा जाएगा। एक बार लपेटने के बाद घाव की बार-बार ड्रेसिंग करने की जरूरत भी नहीं होगी। यह मुख्य रूप से घाव को सुरक्षित रखने का काम करेगी।

(डीन एकेडमिक प्रो. मुकेश सिंह की फाइल फोटो)

घाव भरने तक त्वचा का काम करेगी

प्रो. मुकेश सिंह ने बताया कि किसी भी व्यक्ति के जलने पर घाव भरने का समय निश्चित होता है क्योंकि नई त्वचा बनाने का कोई उपचार नहीं होता है। जलने के बाद त्वचा उस स्थान पर दोबारा निकलती है जिससे वह धीरे-धीरे घाव भरती है। सेलुलोज की पट्टी घाव को पूरी तरह ढक देती है। जब तक नई त्वचा नहीं आती और घाव नहीं भरता तब तक यह कृत्रिम त्वचा की तरह काम करती है जिससे संक्रमण नहीं फैलता है। नई त्वचा आने पर यह पट्टी खुद ब खुद निकल जाती है।

(पीएचडी छात्र आशुतोष पांडेय की फाइल फोटो)

आइआइटी ने भी बनाई थी बैंडेज

इससे पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) कानपुर के पीएचडी के पूर्व छात्र डा. तुषार देशपांडे ने माइक्रोपोरस इलस्टोमरिक थिन से बैंडेज तैयार की थी। इसकी खासियत यह है कि इस पर कोई तरल पदार्थ नहीं टिकता है। इसके अलावा इस बैंडेज को ऐसे बनाया गया है जिससे घाव पर वेंटिलेशन होता रहे और जल्दी सूखे। इसमें घाव अन्य पट्टियों की तुलना में जल्दी ठीक होता है।

 उत्तर प्रदेश वस्त्र प्रौद्योगिकी संस्थान (यूपीटीटीआइ)


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