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छलावा है खगोलीय पिंडों पर जमीन खरीदना, 30 साल पहले से जारी है बिक्री

खगोलीय पिंडों पर जमीन खरीदने को लेकर बाह्य अंतरिक्ष संधि से चंद्र संधि तक कई नियम-कानून हैं जिनकी अनदेखी करना संभव नहीं होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 26 Aug 2020 08:58 AM (IST)Updated: Wed, 26 Aug 2020 12:22 PM (IST)
छलावा है खगोलीय पिंडों पर जमीन खरीदना, 30 साल पहले से जारी है बिक्री
छलावा है खगोलीय पिंडों पर जमीन खरीदना, 30 साल पहले से जारी है बिक्री

नई दिल्ली, जेएनएन। दुनिया की कई नामचीन हस्तियों ने खगोलीय पिंडों पर जमीन खरीदी है। हाल ही में बंगाल के श्रीरामपुर के शौनक दास के मंगल पर जमीन खरीदने का मामला सामने आया है। इसके बाद से ही खगोलीय पिंडों पर जमीन खरीदने का मामला सुर्खियों में हैं।

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बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान से लेकर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन सहित दुनिया में कई ऐसी नामचीन हस्तियां हैं, जिन्होंने खगोलीय पिंडों पर जमीन खरीदी है। हालांकि इसे लेकर कई तरह के सवाल भी अक्सर उठते रहे हैं। खगोलीय पिंडों पर जमीन खरीदने को लेकर बाह्य अंतरिक्ष संधि से चंद्र संधि तक कई नियम-कानून हैं, जिनकी अनदेखी करना संभव नहीं होगा। आइए जानते हैं कि क्या है खगोलीय पिंडों पर जमीन खरीदने की सच्चाई और यह कितना वैध है।

कई लोग खरीद चुके जमीन: दुनिया में बहुत से लोग हैं, जो विभिन्न खगोलीय पिंडों पर जमीन खरीद चुके हैं। कई लोग खगोलीय पिंडों पर मालिकाना हक का दावा कर इनके हिस्सों को बेच रहे हैं। ये लोग रकम लेकर ल्युनर डीड्स या फिर मार्टियन डीड्स जैसे प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं।

सभी के लिए है अंतरिक्ष: संयुक्त राष्ट्र द्वारा 10 अक्टूबर 1967 को आउटर स्पेस ट्रीट्री (बाह्य अंतरिक्ष संधि) अस्तित्व में आई। इसके अनुसार, अंतरिक्ष सभी लोगों के लिए है और कोई भी देश इस पर अपनी संप्रभुता कायम नहीं कर सकता है। इस संधि में व्यक्ति या निजी संस्था की जगह देश को पार्टी बनाया गया है। इसे अंतरिक्ष कार्यक्रमों वाले देशों सहित 104 देशों ने मंजूरी दी है।

खरीदने-बेचने की मनाही: अंतरराष्ट्रीय चंद्र संधि संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1984 में प्रभाव में आई। इसके अनुसार दूसरे ग्रहों के हिस्सों को निजी स्तर पर खरीदा और बेचा नहीं जा सकता है। हालांकि इस संधि को कुल 13 देशों ने ही मान्यता दी है, जिनका अंतरिक्ष कार्यक्रम बहुत ही पीछे है। भारत ने भी एक अंतरराष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर किए हैं, यह अंतरिक्ष में जमीन के लिए कानूनी दावा करने को असंभव बनाती है।

30 साल पहले से जारी है बिक्री: खगोलीय पिंडों की खरीद-बिक्री को 30 साल हो चुके हैं। 1980 में कैलिफोर्निया के डेनिस होप ने आठ ग्रहों और उनके उपग्रहों पर अपने दावे को पंजीकृत कराया था। साथ ही इसकी प्रतियां संयुक्त राष्ट्र और रूस को भेजी गई थीं।

सिर्फ सांकेतिक महत्व: मंगल हो, चांद हो या फिर दूसरा कोई खगोलीय पिंड, जमीन लेना तथ्यों और कानूनी पहलुओं पर गौर करने के बाद शेखी बघारने जैसा प्रतीत होता है। खगोलीय पिंडों पर जमीन खरीदने के दस्तावेज केवल सांकेतिक हैं। दुनिया की किसी आधिकारिक संस्था ने अब तक इसे वैधानिक मान्यता नहीं दी है।

खामी का उठा रहे लाभ: 1967 की आउटर स्पेस ट्रीट्री में खगोलीय पिंडों पर निजी कंपनियों और लोगों की जगह देशों को मालिकाना हक से रोका गया था। इसका फायदा उठाकर कई संस्थाएं धड़ल्ले से विभिन्न खगोलीय पिंडों की जमीन बेचकर प्रमाण पत्र जारी कर रही हैं। कई देशों के भू स्वामित्व कानूनों के मुताबिक, नई खरीदी गई जमीन पर केवल दावा करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि इस पर बसना भी होगा। हालांकि यह अभी तक संभव नहीं है। फिलहाल जमीनखरीदने-बेचने वाली कंपनियां आपस में ही उलझी हुई हैं। ये कंपनियां एक दूसरे के दावे को झुठलाते हुए कानूनी लड़ाई में जुटी हुई हैं।


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