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    Updated: Sat, 16 Mar 2013 03:44 PM (IST)

    मौत के बाद पांच दिन तक मृत शरीर को जिंदा रखने का रहस्य रचने वाले बौद्ध भिक्षु गैंगिन खेंतरूल रिपोंछे को छठे दिन गुरुवार को 17वें करमापा के ग्यूतो मठ में पंचतत्व में विलीन कर दिया गया। हालांकि चिकित्सकों के लिए अभी भी यह रहस्य बना हुआ है कि आखिर सौ घंटे तक उनके शव में कोई परिवर्तन क्यों नहीं आया।

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    धर्मशाला [राकेश पठानिया]। मौत के बाद पांच दिन तक मृत शरीर को जिंदा रखने का रहस्य रचने वाले बौद्ध भिक्षु गैंगिन खेंतरूल रिपोंछे को छठे दिन गुरुवार को 17वें करमापा के ग्यूतो मठ में पंचतत्व में विलीन कर दिया गया। हालांकि चिकित्सकों के लिए अभी भी यह रहस्य बना हुआ है कि आखिर सौ घंटे तक उनके शव में कोई परिवर्तन क्यों नहीं आया।

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    खासा बात यह रही कि इस दौरान वहां का तापमान भी करीब 20 डिग्री के आसपास रहा। कोई वातानुकूलित यंत्र भी नहीं था। बावजूद इसके रिंपोछे पांच दिन तक आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को चुनौती देते रहे। 92 वर्षीय गैंगिन खेंतरूल रिपोंछे को दो माह पूर्व मैक्लोडगंज के डेलेक अस्पताल में खाद्य नलिका के कैंसर के इलाज के लिए भर्ती कराया गया था। नौ मार्च को करीब दस बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। शाम तक चिकित्सकों को उनके शरीर में मौत के बाद होने वाले किसी भी अपघटन का संकेत नहीं मिला। इसके बाद विभिन्न उपकरणों के सहारे उनके शरीर का चिकित्सकीय परीक्षण किया गया, ताकि पता लगाया जा सके कि उनके शरीर में आक्सीजन की मात्रा कितनी है और हृदय की स्थिति क्या है। इन सभी उपकरणों ने अपनी रिपोर्ट में उन्हें मृत साबित किया।

    पांच दिन बाद गुरुवार को उनके शरीर में अपघटन के संकेत मिलने शुरू हुए और उनके नाक व कान से द्रव्य बहने लगा तो उनका अंतिम संस्कार किया गया। गैंगिन खेंतरूल रिपोंछे हिमाचल प्रदेश के स्पीति गांव में स्थित डंखर बौद्ध मठ के प्रमुख थे और उन्हें परमपावन दलाई लामा ने इस मठ का मठाधीश नियुक्त किया था। इसके पहले वे तिब्बती स्कूल में अध्यापक थे। फोरेंसिक लैब के निदेशक डॉ. सुरेंद्र पाल इसे चमत्कार ही मानते हैं, क्योंकि विज्ञान में ऐसा संभव नहीं है। उनके अनुसार, मानव शरीर में 36 से 48 घंटे में अपघटन शुरू हो जाता है। इसमें पेट का फूलना और शरीर से दुर्गध आना शामिल है। निर्वासित सरकार के सांसद कर्मा येशी का कहना है कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में भले ऐसा न हो, लेकिन बौद्ध दर्शन में लंबे समय के योग के बाद आत्मिक शक्ति पैदा होने का जिक्र है। इसी से यह संभव हुआ। डेलेक अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी सेतिन दोरजे के अनुसार, रिंपोछे ने नौ मार्च को शरीर छोड़ दिया था, लेकिन उनके शरीर में मृत व्यक्ति जैसा कोई संकेत नहीं था। मस्तिष्क की इलेक्ट्रोएंसीफोग्राम पर रीडिंग ली, जिसमें कुछ नहीं आया। दिल में धड़कन नहीं थी। फेफड़ों ने भी काम करना बंद कर दिया था। वे वैज्ञानिक रूप से रिंपोछे मृत हो चुके थे।

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