जान देकर रॉकी ने नाकाम की आतंकियों की बड़ी साजिश
जम्मू संभाग में सुरक्षाबलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने की साजिश कश्मीर में आतंकियों के स्लीपर सेल में रची गई थी। अगर कश्मीर के अंवतीपोरा में तैनात 59 बटालियन का राकी त्वरित कार्रवाई करते हुए आतंकी को ढेर नहीं कर देता तो बीएसएफ को अधिक जानी नुकसान होना तय
जम्मू, [विवेक सिंह]। जम्मू संभाग में सुरक्षाबलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने की साजिश कश्मीर में आतंकियों के स्लीपर सेल में रची गई थी। अगर कश्मीर के अंवतीपोरा में तैनात 59 बटालियन का राकी त्वरित कार्रवाई करते हुए आतंकी को ढेर नहीं कर देता तो बीएसएफ को अधिक जानी नुकसान होना तय था।
जम्मू-पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग पर हुए हमलों के विपरीत इस बार आतंकियों ने अलग रणनीति का इस्तेमाल किया था व वारदात अंजाम देने से पहले उन्होंने इलाके में रेकी भी की थी। सिविल ड्रेस में आए आतंकियों ने अपने हथियार बैग में छिपाए थे। ऐसे में आतंकी अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा सुनिश्चित कर रही क्विक रिएक्शन टीमों व रोड ओपनिंग पार्टियों की भी नजर में नही आए।
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तय रणनीति के तहत आतंकियों ने 20 गाडिय़ों के काफिले में से सुरक्षा दस्ते के वाहनों को जाने दिया व मध्य में चल रही बस को हमले के लिए चुना।
सूत्रों के अनुसार, जम्मू से सुबह 4.20 बजे छुट्टी बिता कर कश्मीर लौट रहे जवानों की बस जब नरसू पहुंची तो आतंकियों ने बैग से हथियार निकाल कर फायरिंग शुरू कर दी। इस दौरान बस को सौ के करीब गोली लगी।
गोलीबारी करते हुए आतंकी ने बस का दरवाजा खोलकर अंदर घुसने की कोशिश की लेकिन गजब की फुर्ती दिखाते हुए हरियाणा की बिलासपुर तहसील के रामगढ़ माजरा गांव के रॉकी पुत्र प्रितपाल ने घायल होने के बावजूद अपना हथियार सीधा कर आतंकी को मार गिराया। रॉकी के साथ उसका सहयोगी दूसरी बटालियन का कांस्टेबल शुभेंदु राय निवासी धुपगुड़ी, पश्चिम बंगाल भी शहीद हो गया।
सीमा सुरक्षा बल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने माना कि अगर भारी गोलीबारी के बीच रॉकी त्वरित कार्रवाई न करता तो आतंकी ज्यादा नुकसान कर सकता था। इस बीच रॉकी की त्वरित कार्रवाई के कारण अन्य जवानों को जवाबी कार्रवाई करने का मौका मिल गया व जवानों का पलड़ा भारी होता देख दूसरा आतंकी मौके से भाग निकला।
20 दिन पहले ही गांव आया था जांबाज रॉकी
यमुनानगर, [अमरदीप गुप्ता]। ऊधमपुर में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए बीएसएफ जवान रॉकी में देश के लिए मर-मिटने की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। 20 दिन पहले वह घर आया था तब किसी को भान नहीं था कि यह उसका आखिरी दीदार होगा।
बिलासपुर के रामगढ़ माजरी निवासी रॉकी ने नवंबर 2013 में बीएसएफ ज्वाइन की थी। रॉकी के ताऊ के बेटे साहिल के मुताबिक उसके शहीद होने की जानकारी अभी माता-पिता और बहनों को नहीं है। रॉकी के पिता प्रीतपाल गांव में ही रहते हैं। उसका पूरा परिवार और रिश्तेदारी सेना में है। वह बचपन से ही सेना में नौकरी के ख्वाब देखता था। नॉन मेडिकल से बारहवीं के बाद उसने बीएससी की। बड़ा भाई रोहित गांव में ही काम करता है, जबकि एक बहन नेहा अभी पढ़ाई कर रही है
घटना के कुछ देर बाद बड़े भाई के पास पहुंची सूचना
साहिल के मुताबिक रॉकी के शहीद होने सूचना सबसे पहले उसके बड़े भाई रोहित को ऊधमपुर से फोन पर सीओ ने दी। सीओ ने रोहित को बताया कि जम्मू से बीएसएफ की बस ऊधमपुर आ रही थी। इसी बीच दो आतंकियों ने गाड़ी रुकवाई और बस पर ही विस्फोट की कोशिश की। घायल होते हुए भी इस जांबाज ने आतंकी का मुकाबला किया। इसी का नतीजा था कि दूसरे आतंकी को लोगों ने पकड़ लिया।
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होनहार था रॉकी
साहिल के मुताबिक रॉकी शुरू से ही होनहार था। पढ़ाई में हमेशा आगे रहने वाला रॉकी ने एक बार प्रतियोगिता में सोने की अंगूठी भी जीती थी। फोन पर ही पूछे गए 16 प्रश्नों के जबाव उसने 16 मिनट में ही दे डाले।