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जागरण संवाददाता की जुबानी, आसाराम को अंजाम तक पहुंचाने की कहानी

हम बात कर रहे हैं दैनिक जागरण के बहादुर पत्रकार नरेंद्र यादव की। नरेंद्र शाहजहांपुर में तैनात हैं। उन्होंने बिना किसी भय के आसाराम मामले पर निष्पक्ष रिपोर्टिंग की।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Thu, 26 Apr 2018 05:09 PM (IST)Updated: Fri, 27 Apr 2018 06:58 AM (IST)
जागरण संवाददाता की जुबानी, आसाराम को अंजाम तक पहुंचाने की कहानी
जागरण संवाददाता की जुबानी, आसाराम को अंजाम तक पहुंचाने की कहानी

नरेंद्र यादव, शाहजहांपुर । दुष्कर्मी आसाराम को उम्रकैद से जितनी खुशी बहादुर बेटी व उसके परिवार को हुई, उससे कम मुझे भी नहीं हुई। करीब पांच वर्ष पहले मैंने जिस उद्देश्य से बेटी को न्याय दिलाने के लिए कलम उठाई थी, वह पूरा हुआ। 20 अगस्त 2013 की शाम करीब सात बजे की बात है। रिपोर्टर के नाते मैं शाहजहांपुर जागरण कार्यालय में बैठा था। तभी वहां नोएडा स्थित सेंट्रल डेस्क का मेल मिला, जिसमें आसाराम से जुड़े साधक की बेटी से दुष्कर्म की जानकारी देने के साथ डिटेल मांगी गई थी। क्योंकि मैं धर्म कर्म बीट भी देखता था, इसलिए मुझे जिम्मेदारी सौंपी गई।

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पीडि़ता के पिता योग वेदांत सेवा समिति में व आसाराम आश्रम की आध्यात्मिक गतिविधियों के संचालन से जुड़े थे। इसलिए सीधा मैं उनके आवास पर ही पहुंचा। लेकिन वहां ताला पड़ा था। रात के आठ बज चुके थे। वापसी में मैं अन्य साधक ओमपाल सिंह से मिला। उन्होंने पीडि़त परिवार की पुष्टि कर दी। दूसरे दिन भी प्रकरण पर खबर दी गई। इसके बाद बेटी व उसके परिवार के सम्मान को ध्यान में रखकर आसाराम पर लगातार खबरें लिखनी शुरू कर दीं। आज बहुत सुकून मिल रहा है कि बीबीसी समेत तमाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में मेरी कलम की इस लड़ाई को सराहा गया।

इस तरह पीडि़त परिवार में बनाई पैठ, बनाया विश्र्वास

जोधपुर से यहां आने के बाद पीडि़ता के पिता छिंदवाड़ा से अपने बेटे को लेकर आ गए। इसी बीच उनके परम मित्र एक साधक के साथ जाकर वार्ता की। पहले तो उन्होंने मीडिया से दूरी की बात कही, लेकिन जब मैंने उन्हें जागरण की खबरों को दिखाने के साथ ही पूर्व में कवरेज का हवाला दिया, तो फिर वह बातचीत को मान गए। मैंने पीडि़ता के पिता से आसाराम के प्रवक्ता के साथ ही पीए व सेवादारों के नंबर लिए। वार्ता की। इस बीच 31 अगस्त की रात में जब आसाराम को इंदौर आश्रम से गिरफ्तार किया गया तो एक सितंबर को बहादुर बेटी का संक्षिप्त साक्षात्कार लिया और छापा। आसाराम पर लिखी सभी खबरों का एक ही उद्देश्य रहता था-बेटी का आत्मबल बढ़ाना, परिवार समेत टूटने से बचाना।

जोधपुर के घटनाक्रम की भी खबर के लिए पीडि़ता के पिता से नियमित संपर्क का क्रम बना लिया। इतना ही नहीं, प्रकरण में शाहजहांपुर से प्रकाशित खबरों को देखकर मुख्य गवाह व आसाराम के निजी सचिव रहे राहुल सचान, महेंद्र चावला, सुरक्षा गार्ड, दिल्ली के देवेंद्र प्रजापति तथा वैद्य अमृत प्रजापति संपर्क में आ गए। सभी से नई जानकारी के साथ खबरें लिखने का सिलसिला चलता रहा।

जब आश्रम में बंद कर लिया और फूंक मारकर डराया

कुछ दिन तक आसाराम आश्रम के स्थानीय प्रभारी खबरों में वर्जन देते रहे। लेकिन मनमुताबिक खबरें न छपने पर बातचीत बंद कर दी। घटना के तीसरे माह की ही बात है। मैं और छायाकर शिवओम दुबे जब आश्रम गए तो दो भक्तों ने दौड़कर गेट में ताला डालकर हम लोगों को बंद कर दिया। लेकिन हम दोनों लोग निडरता के साथ गेट से कूदकर बाहर आ गए। दूसरे दिन फिर हम लोग गए। इस दिन सात साधक एक साथ माला फेरते हुए फूंक मारकर डराने लगे। मैंने भी गायत्री मंत्र पढ़ना शुरू कर दिया। उन्हें चेताया कि हम लोग डरने वाले नहीं। इस खबर को भी फोटो के साथ छापा गया।

आफिस में भिजवाया सद्बुद्धि का प्रसाद

2014 में गर्मियों के दिन थे। शाम पांच बजे के करीब दफ्तर में दो व्यक्ति आए। उनमें से एक ने नाम राहुल यादव, निवासी बदायूं बताया। बोला- देखो मैं भी यादव हूं, आपके लिए बापू ने सद्बुद्धि का प्रसाद भेजा है। बापू के पक्ष में खबरें छापनी शुरू कर दो, कल्याण हो जाएगा, अन्यथा सर्वनाश होगा। बापू सामान्य नहीं, भगवान हैं। उसने एक किताब खोली, चित्र दिखाकर बोला- मुदरें को भी बापू जिंदा कर देते हैं। इसी बीच मैंने आसाराम के निजी सचिव राहुल सचान को फोन लगाकर उसकी बात कराई। फोन कटने पर कथित राहुल यादव और उसका साथी चला गया।

इसके करीब तीन माह बाद उसने फोन पर बताया कि आसाराम को अब छोड़ दिया है। मुंडन भी करा लिया। अब पीडि़ता के पिता को ही गुरु मानकर प्रायश्चित करना चाहता है। इसलिए एक बार मैं उसे पीडि़ता के पिता से मिलवा दूं। कुछ दिनों के बाद वह अपने साथी के साथ पीडि़ता के घर के पास एक दुकान पर दिखा। उसे पकड़कर सख्ती से पूछताछ की। तब उसने अपना नाम नरायण पांडेय निवासी कानपुर बताया। पीडि़ता के भाई ने मामले की कोतवाली में तहरीर भी दी। लेकिन पुलिस ने दोनों का 151 में चालान करके इतिश्री कर ली।

पांच लाख का ठुकराया ऑफर

एक बार आसाराम आश्रम के स्थानीय प्रभारी के साथ तीन लोग आए। इनमें दो अज्ञात थे। उन्होंने दफ्तर के सामने ही गली में ले जाकर पांच लाख का ऑफर दिया। कहा कि खबरें लिखना बंद कर दो। बापू कल्याण कर देंगे। जब मैंने यह कहा कि तुम्हारे बापू ने एक दो नहीं कई अपराध किए । संत व वृद्ध समाज को कलंकित किया। भक्त के विश्र्वास को तोड़ा। नाबालिग व अपने ही गुरुकुल की छात्रा का जीवन बर्बाद किया। जब तक तुम्हारे बापू को सजा नहीं मिल जाती, हमारी कलम न बिकेगी, न झुकेगी न डिगेगी।


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