नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। बोर्ड परीक्षाओं में भले हर साल लड़कियों के लड़कों से आगे निकलने की खबरें आती हों, साइंस और टेक्नोलॉजी जैसे विषयों में भले लड़कियों का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा हो, लेकिन गणित में लड़कियां लड़कों से पिछड़ रही हैं। ऐसा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) ने अपनी एक नई रिपोर्ट में यह बात कही है। ऐसा नहीं कि लड़कियों में गणित सीखने की योग्यता लड़कों से कम होती है। रिपोर्ट के अनुसार लैंगिक भेदभाव और रूढ़िवादिता के कारण यह अंतर बढ़ रहा है। यह अंतर न सिर्फ लड़कियों का आत्मविश्वास कम करता है, बल्कि उन्हें असफलता की ओर भी धकेलता है। हालांकि ऐसी लड़कियां भी हैं जो मौका मिलने पर टॉपर बन रही हैं।

रिपोर्ट बताती है कि लड़कियों की तुलना में लड़कों में गणित में निपुणता हासिल करने की सम्भावना 1.3 गुना अधिक होती है। कारण है शिक्षकों, अभिभावकों और साथियों का भेदभाव और रूढ़िवादिता। यह समस्या निम्न मध्य आय वाले देशों में अधिक है। ऐसे 34 देशों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि लड़कियां लड़कों से पीछे हैं। इन देशों में चौथी कक्षा के तीन-चौथाई छात्र-छात्राओं के पास बुनियादी संख्या कौशल का अभाव है। 79 मध्य और उच्च आय वाले देशों के आंकड़ों के अनुसार, 15 वर्ष की उम्र के स्कूली बच्चों में से एक तिहाई से अधिक के पास गणित में न्यूनतम निपुणता नहीं है। रिपोर्ट में सचेत किया गया है कि कोविड-19 महामारी के प्रभाव ने बच्चों की गणितीय क्षमता को और बिगाड़ दिया है।

कारण 1 : लड़कियों को समान अवसर नहीं

यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल ने रिपोर्ट में लिखा है कि लड़कियों में लड़कों के समान गणित सीखने की योग्यता होती है, मगर उन्हें समान अवसर नहीं मिलता है। जिन देशों में लड़कों की तुलना में लड़कियों के स्कूल से बाहर होने की सम्भावना अधिक होती है, वहां गणितीय क्षमता में असमानता भी अधिक होती है।

कारण 2 : परिवार की आर्थिक पृष्ठभूमि

रिपोर्ट में एक रोचक बात यह सामने आई है कि संख्या कौशल हासिल करने में परिवार की आर्थिक पृष्ठभूमि भी मायने रखती है। धनी परिवारों के चौथी कक्षा तक के बच्चों में संख्या कौशल हासिल करने की सम्भावना निर्धन घरों के बच्चों की तुलना में 1.8 गुना अधिक होती है। बचपन में शिक्षा और देखभाल कार्यक्रमों में भाग लेने वालों में 15 वर्ष की आयु तक गणित में न्यूनतम दक्षता हासिल करने की सम्भावना उन बच्चों की तुलना में 2.8 गुना अधिक होती है जिनके पास ऐसे अवसरों का अभाव है।

कारण 3 : पितृसत्तामक समाज

लग्जेमबर्ग यूनिवर्सिटी के पीएचडी स्टूडेंट और आईआईएम के शोधकर्ता करण सिंघल ने जेंडर डिफरेंस इन मैथमेटिक्स लर्निंग इन रुरल इंडिया शीर्षक से एक रिपोर्ट तैयार की है। सिंघल अपने रिसर्च का हवाला देकर कहते हैं कि जिन राज्यों में पारिवारिक परिस्थितियां महिलाओं के प्रतिकूल हैं या उन्हें कम स्वायत्तता मिली है, उनका प्रदर्शन ज्यादा खराब है। उदाहरण के लिए जहां घूंघट या पुरुषों के बाद महिलाओं के खाना खाने की प्रथा है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) के आधार पर उन्होंने कहा है कि ऐसे परिवार जहां पति, पत्नी को काम के लिए बाहर जाने से रोकते हैं, अन्य पुरुषों से बात नहीं करने देते या अपनी सखियों से मिलने की अनुमति नहीं देते, वहां संख्या कौशल में लैंगिक अंतर अधिक है।

सिंघल कहते हैं कि कुछ शोध कहते हैं कि टेक्स्ट बुक में गणित में लड़कों के उदाहरण दिए जाते हैं जिससे लड़कियों को प्रोत्साहन नहीं मिलता। ऐसे में हमको सिरे से बदलाव करने की आवश्यकता है।

समय के साथ जारी है यह दिक्कत

करण सिंघल के अनुसार, वर्ष 2010 से 2018 तक के लिए विभिन्न आयु-वर्गों में हमारा कालगत विश्लेषण बताता है कि गणित में लड़कियों और लड़कों, दोनों के प्रदर्शन में गिरावट आई है। महिलाओं के लिए यह प्रतिकूल स्थिति लगातार बनी हुई है (चित्र 1)। समय के साथ इस अंतर के कम होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। हालांकि, हाल के वर्षों (2018) में लड़कियों ने लड़कों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।

गणित सीखने के फायदे

रिपोर्ट के मुताबिक गणित सीखने से बच्चों की स्मृति, समझ और विश्लेषण क्षमता मजबूत होती है और उनकी रचनात्मक योग्यता में निखार आता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जो बच्चे बुनियादी गणित और अन्य मूलभूत विषय ठीक से नहीं समझते, उन्हें किसी समस्या के समाधान और तार्किक क्षमता वाले कार्यों में संघर्ष करना पड़ सकता है। इसलिए उन रूढ़ियों और मान्यताओं को दूर करने की आवश्यकता है जो लड़कियों को पीछे रखती हैं। उन्हें मौलिक कौशल हासिल हो, वे स्कूल और जीवन में सफल हों, इसके लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।

स्टेम में भारतीय लड़कियों का बज रहा डंका

अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस देशों के मुकाबले भारत में साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स (स्टेम) में लड़कियां शानदार प्रदर्शन कर रही हैं। सरकार की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार स्टेम में बीते तीन साल में महिलाओं की तादाद बढ़ी है। इस दौरान पुरुषों की संख्या 12.9 लाख से कम होकर 11.9 लाख हो गई, जबकि महिलाओं की संख्या 10 लाख से बढ़कर 10.6 लाख हो गई। विश्व बैंक के अनुसार भी स्टेम में भारतीय महिलाओं की संख्या 43 फीसद है जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस की लड़कियों की तादाद क्रमश: 34 फीसद, 38 फीसद, 27 फीसद और 32 फीसद रही है।

लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी की एडिशनल डीन और बायोइंजीनियरिंग और बायोसाइंस की प्रोफेसर डॉ. नीता राज शर्मा कहती हैं कि भारत सरकार की कई योजनाएं जैसे किरन (नॉलेज इंवाल्वमेंट रिसर्च एडवांसमेंट थ्रू नरचरिंग) और वुमेन साइंटिस्ट स्कीम लड़कियों को स्टेम के क्षेत्र में बेहतर करने में सहायक साबित हो रही हैं। ऑनलाइन कोर्स भी स्टेम एजुकेशन को बढ़ावा देने में कारगर साबित हो रहे हैं।

करण सिंघल बताते हैं कि स्टेम में लड़कियां बेहतर कर रही है लेकिन अभी स्थितियों में बहुत सुधार होने है। इंजीनियरिंग और गणित में उच्च शिक्षा में अभी बदलाव होने हैं।

ये हैं समाधान

यूनीसेफ ने सभी बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिये सरकारों से संकल्प लेने का आह्वान किया है। संगठन का कहना है कि सभी बच्चों को स्कूल में फिर से पंजीकृत करने और उनकी उपस्थिति बनाए रखने के लिये नए सिरे से प्रयास किए जाने चाहिए। साथ ही, पढ़ाई-लिखाई में आने वाली दिक्कतों को दूर करने के लिये शिक्षकों की भी मदद की जानी चाहिए। यह सुनिश्चित करना होगा कि स्कूलों में बच्चों के लिये एक सुरक्षित व सहायक वातावरण सृजित हो, ताकि उन्हें सीखने के लिये अनुकूल माहौल मिल सके।

करण सिंघल कहते हैं, सबसे प्रमुख जरूरत है कि समस्या के विभिन्न पहलुओं के बारे में जाना जाए, टेक्स्ट बुक में बदलाव किए जाएं, जेंडर न्यूट्रल उदाहरण दिए जाएं। इसके अलावा उन्हें गणित का रोल मॉडल बनाया जाए। किताबों में उनका जिक्र हो, इससे उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा। टीचर्स और पेरेंट्स को भी जागरूक करने की आवश्यकता है। सिंघल कहते हैं, “एनसीएफ की रिपोर्ट में कहा गया था कि जब लड़के गणित में बेहतर करते हैं तो उन्हें इंटेलीजेंट कहा जाता है। लेकिन जब लड़कियां अच्छा करती हैं उन्हें हार्डवर्किंग कहा जाता है। इस सोच को बदलने की जरुरत है।”

शारदा स्कूल ऑफ ह्यूमनिटीज एंड सोशल साइंस की डीन डॉ. अनवति गुप्ता कहती हैं कि लड़कियों और लड़कों में गणित विषय में अंतर कम करने के लिए समाज को अधिक प्रगतिशील होना होगा। साथ ही लड़कियों को प्रोत्साहित करना होगा। माता-पिता को भी अपने बच्चों को लैंगिक समानता के प्रति जागरूक करना होगा। लड़कियों को बतौर साइंटिस्ट सोचने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा और बेहतर माहौल देना पड़ेगा।

डा. गुप्ता कहती हैं कि हम शताब्दियों से लैंगिक असमानता को देखते आ रहे हैं। अभिभावकों को लड़कियों को कुछ बोलते समय इस बारे में भी सोचना होगा। अगर लड़कियों को समान अवसर उपलब्ध कराया जाए और उनका आत्मविश्वास बढ़ाया जाए तो गणित विषय और कुल प्रदर्शन में बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे।