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Book Review: ज्ञान चतुर्वेदी का उपन्यास 'नेपथ्य लीला', समाज व राजनीतिक व्यवस्था पर प्रहार

लेखक ने इसमें खोखले आदर्शों की दुहाई देने वालों की असली मानसिकता को उजागर किया है। वहीं आधुनिक प्रेमियों के प्रेम और रिश्तों की वास्तविकता के साथ प्रोन्नति पाने के लिए अनेक प्रकार के तिकड़म भिड़ाने वालों और सिफारिश करने वालों पर भी जबरदस्त कटाक्ष किया है।

By Manish PandeyEdited By: Published: Sun, 18 Jul 2021 10:16 AM (IST)Updated: Sun, 18 Jul 2021 10:16 AM (IST)
Book Review: ज्ञान चतुर्वेदी का उपन्यास 'नेपथ्य लीला', समाज व राजनीतिक व्यवस्था पर प्रहार
समाज व राजनीतिक व्यवस्था पर प्रहार है नेपथ्य लीला

[कन्हैया झा] पेशे से चिकित्सक ज्ञान चतुर्वेदी का यह छठा उपन्यास है- नेपथ्य लीला। लेखक ने इसमें खोखले आदर्शों की दुहाई देने वालों की असली मानसिकता को उजागर किया है। वहीं आधुनिक प्रेमियों के प्रेम और रिश्तों की वास्तविकता के साथ प्रोन्नति पाने के लिए अनेक प्रकार के तिकड़म भिड़ाने वालों और सिफारिश करने वालों पर भी जबरदस्त कटाक्ष किया है। वर्तमान में प्रेमियों के बीच पनपने वाला प्रेम कितना अल्पकालिक हो गया है, इसे भी उन्होंने रोचक तरीके से दर्शाया है।

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सत्ता के गलियारों में अपनी पैठ बनाए रखने के लिए लालायित भ्रष्ट नेताओं, घूसखोरी में डूबे बेईमानों और इनके सामने लचर होती कानून व्यवस्था पर करारा प्रहार इस पुस्तक की विशेषता है। इसमें 51 छोटे-छोटे अध्याय हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं : मरने में जुगाड़, अपनी मार्केटिंग, अपना आदमी वहां बैठ जाए, बस... इश्क में इंची टेप, साहित्य का अफसर, कमीशन की चमक, गांधीजी की गवाही, कानून का राज, राजा हंस रहा है, काव्य रस के व्यापारी, जानलेवा समृद्धि, जय बोलने से पहले, अजीब शहर है यह, कौन जाति के हो भाई, भूख है कि मिटती ही नहीं और पथरीली आचार संहिता।

साधु क्यों बनना? में वह लिखते हैं, -दुनिया को पता ही नहीं है। कलयुग में साधु होने का सारा सिस्टम बड़ा जटिल हो चुका है। आजकल साधु होना भी एक करियर है। उसे आश्रम के लिए अहम इलाके में जमीन चाहिए। किसी भी तरह से साधु के तौर पर सफल होना ही है। त्याग भी अब एक करियर है और अध्यात्म भी एक उद्योग।- इसी प्रकार -गांधीजी की गवाही- में हवलदार और शरीफ इंसान के बीच का प्रसंग बेहर रोचक है जिसमें पर्स में रखे -गांधी- की गवाही पर आखिरकार हवलदार उसे शरीफ इंसान मानता है। थोड़े शब्दों में गंभीर और बड़ी बात कह जाने में ज्ञान चतुर्वेदी का कौशल अद्भुत है। हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और श्रीलाल शुक्ल के उत्तराधिकारी के तौर पर इन्हेंं शामिल किया जा सकता है।

पुस्तक : नेपथ्य लीला

लेखक : ज्ञान चतुर्वेदी

प्रकाशक : राजपाल एंड संस, दिल्ली

मूल्य : 295 रुपये


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