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Book Review: भारतीय जीवन दृष्टि, संस्कृति और जीवन दर्शन को लेकर नई दृष्टि

Book Review भारतीय जीवन दृष्टि। भारतीय जीवन को लेकर नई दृष्टि। भारतीय जीवन दृष्टि के शीर्षक से प्रो. बृज किशोर कुठियाला के लेखों का संग्रह इसी जीवन दर्शन को समझने का मौका देता है। संस्कृति स्वयं को भी समझने की दृष्टि देती है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Sun, 11 Jul 2021 11:25 AM (IST)Updated: Sun, 11 Jul 2021 11:25 AM (IST)
Book Review: भारतीय जीवन दृष्टि, संस्कृति और जीवन दर्शन को लेकर नई दृष्टि
Book Review: भारतीय जीवन दृष्टि का रिव्यू।(फोटो: दैनिक जागरण)

अमित तिवारी। भारतीय संस्कृति एवं जीवन दर्शन का विस्तार अनंत है। यह जीवन जीने की कला सिखाता है। 'भारतीय जीवन दृष्टि' के शीर्षक से प्रो. बृज किशोर कुठियाला के लेखों का संग्रह इसी जीवन दर्शन को समझने का मौका देता है। प्रो. कुठियाला ने अलग-अलग समय में इन लेखों को लिखा था। इनमें संवाद की खत्म होती परंपरा, संवाद से समस्याओं के निराकरण और जनजातीय समाज के जीवन से लेकर कन्या पूजन के समाजशास्त्र व श्राद्ध के विज्ञान तक के विषयों को उठाया गया है।

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अलग-अलग समय में लिखे होने के बाद भी इन्हें पढ़ते समय एकरूपता और एक तार से बंधे होने का बोध होता है। यही तार किताब पढ़ते समय पाठक को भी बांधे रखता है। तमोगुण से तपोगुण की यात्रा और धर्म शब्द पर संवाद की सार्थकता जैसे विषयों पर लिखे आलेख मौजूदा परिदृश्य में सामयिक हैं। इसी तरह 'योग से योगा और आगे...आलेख भी कई विचारणीय प्रश्न खड़े करता है।

भारतीय दर्शन 'वादे वादे जायते तत्व बोध' के सिद्धांत पर चलता है। बात चाहे श्रीकृष्ण और अर्जुन की हो या नारद और ब्रह्माजी की, समय-समय पर हुए ऐसे संवाद महज उस क्षण और उस काल के लिए ही नहीं, बल्कि अनंतकाल तक सृष्टि के हित में होते हैं। प्रो. कुठियाला के आलेख ऐसे ही कई पहलुओं पर सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। इनमें भारतीय मनीषा के जागरण के लिए लेखक के मन की व्याकुलता भी परिलक्षित होती है, जो उदीयमान भारत की वैश्विक भूमिका को रेखांकित भी करते हैं और उस दिशा में बढऩे के लिए मार्ग दिखाने का भी प्रयास करते हैं। देवर्षि नारद पर लिखे तीन आलेख कई ऐसी बातों को पाठक के समक्ष रखते हैं, जिन्हें सामान्य तौर पर उस तरह से सोचने का प्रयास नहीं किया जाता है।

पुस्तक संस्कृति ही नहीं, स्वयं को भी समझने की दृष्टि देती है। परंपराओं की सार्थकता सिद्ध करती है। यह पुस्तक संस्कृति एवं मूल्यों को स्वीकारने वाले और उन पर प्रश्न उठाने वाले दोनों ही प्रवृत्ति के लोगों के लिए पठनीय है।

पुस्तक : भारतीय जीवन दृष्टि

लेखक : प्रो. बृज किशोर कुठियाला

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन

मूल्य : 400 रुपये


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