Book Review : संवेदनशील मुद्दों को छूती कथा, ग्रामीण परिवेश से पाठक का परिचय
पुस्तक एक पिता की विवशता और उसकी जिम्मेदारियों के बीच चलने वाले द्वंद्व को भी उभारती है। गांव में होने वाला पंचायत चुनाव इस कहानी की अहम कड़ी है जो बताती है कि सरपंच के चुनाव में किस तरह एक ही घर में दो पार्टियों के समर्थक उभर आते हैं।
मृत्युंजय तिवारी। लव जिहाद और पंचायत चुनाव इस समय देश के कई ग्रामीण इलाकों में ज्वलंत मुद्दे बने हुए हैं। इन्हीं मुद्दों से जुड़े तथ्य को कथ्य में पिरोकर लेखक सर्वेश तिवारी 'श्रीमुख' ने अपने उपन्यास 'परत' को आकार दिया है। इसमें लव जिहाद और मुखिया के चुनाव के समानांतर कई कहानियां चलती हैं, जो ग्रामीण परिवेश से पाठक का परिचय कराती जाती हैं। लेखक ने ग्रामीण जीवन को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है। उपन्यास का कथानक दो सहेलियों श्रद्धा और शिल्पी की कहानी पर केंद्रित है। दोनों का व्यक्तिगत जीवन सामान्य सा होता है, लेकिन शिल्पी की एक गलती उसके साथ-साथ उसके पूरे परिवार को तहस-नहस कर देती है।
यह पुस्तक एक पिता की विवशता और उसकी जिम्मेदारियों के बीच चलने वाले द्वंद्व को भी उभारती है। गांव में होने वाला पंचायत चुनाव इस कहानी की अहम कड़ी है, जो बताती है कि सरपंच के चुनाव में किस तरह एक ही घर में दो पार्टियों के समर्थक उभर आते हैं। इस प्रकार जाने-अनजाने में घर के बाहर की राजनीति घरेलू रिश्तों के समीकरण बिगाड़ देती है। कहानी बताती है कि किस तरह से चुनाव में आरक्षण लागू होने के बाद भी अरविंद मुखिया जी सामंतवाद को जीवित रखने का हरसंभव प्रयास करते हैंं।
पुस्तक शुरुआत से अंत तक पाठक को बांधे रखती है। हास्य और करुणा दोनों भावों को उत्पन्न करने वाली यह कहानी कई पाठकों को अपने आसपास की ही लग सकती है। कहानी का अंतिम भाग मुख्य रूप से शिल्पी के किरदार के इर्दगिर्द घूमता है, जिसने अपने हाथों ही अपना जीवन बर्बाद कर लिया और इसके लिए स्वयं को जिम्मेदार समझकर खुद को हालात के हाथों में सौंप दिया है। लेखक ने पुस्तक के आखिरी हिस्से को बहुत सहजता से समेटा है। हर किरदार अपना असर छोड़ता हुआ दिखता है।
पुस्तक : परत
लेखक : सर्वेश तिवारी 'श्रीमुख'
प्रकाशक : हर्फ प्रकाशन
मूल्य : 200 रुपये