इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाईक को बांबे हाईकोर्ट से झटका, राहत देने से इनकार
बांबे हाई कोर्ट ने सांप्रदायिक अशांति फैलाने के आरोपों का सामना कर रहे विवादास्पद इस्लामी उपदेशक जाकिर नाईक को राहत देने से इनकार कर दिया है।
मुंबई [प्रेट्र]। बांबे हाई कोर्ट ने सांप्रदायिक अशांति फैलाने और अवैध गतिविधियां चलाने के आरोपों का सामना कर रहे विवादास्पद इस्लामी उपदेशक जाकिर नाईक को राहत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने बुधवार को कहा कि इस्लामी उपदेशक ने जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करने में कोई दिलचस्पी या इच्छा जाहिर नहीं की है।
जस्टिस आरएम सावंत और जस्टिस रेवती मोहिते डेरे की खंडपीठ नाईक की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी कि जिसमे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को उसके खिलाफ की गई जांच की रिपोर्ट सौंपने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। नाईक ने यह भी अनुरोध किया था कि विदेश मंत्रालय को उसके निरस्त पासपोर्ट को बहाल करने के निर्देश दिए जाएं।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, 'याचिका में मांगी गई अन्य राहतों के संदर्भ में हमें यह नजर नहीं आता कि यह अदालत कैसे इन बिंदुओं पर विचार कर सकती है जब कि याची जांच एजेंसियों के सामने पेश ही नहीं हुआ। याची मलेशिया में बैठा है और वह जांच एजेंसियों को जांच रिपोर्ट जमा करने का निर्देश देने की मांग कर रहा है।'
नाईक के खिलाफ आइपीसी की धारा 153 (ए) (विभिन्न धर्मो के बीच वैमनस्य फैलाना) और अवैध गतिविधि रोकथाम अधिनियम की धाराएं 10, 13 और 18 (जिनका संबंध अवैध संघ से संबंधित होने, गैर कनूनी गतिविधियों को बढ़ावा और आपराधिक साजिश से है) के तहत मामला दर्ज है।
अदालत ने कहा कि आदर्श स्थिति तो यह है कि नाईक को भारत आना चाहिए और जांच एजेंसियों के सामने पेश होना चाहिए। अदालत ने कहा, 'इतनी दूर से बात आगे नहीं बढ़ती। याची की गैरहाजिरी में हम कैसे ऐसी याचिकाओं पर विचार कर सकते हैं।'
नाईक एनआइए और ईडी की जांच का सामना कर रहा है क्योंकि बांग्लादेश ने कहा था कि पीस टीवी पर उसका भाषण ढाका में 2016 के हमले की एक वजह था। इस हमले में 22 लोगों की जान चली गई थी। नाईक के गैर सरकारी संगठन इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन को 2016 में ही अवैध घोषित किया जा चुका है और इस मामले में 18 करोड़ रुपये से अधिक की रकम की मनी लांड्रिंग के आरोपों की प्रवर्तन निदेशालय जांच कर रहा है।