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यूं ही नहीं बॉलीवुड को लुभा रहे चंदेरी, 'सुई-धागा' से लिख रहे सफलता की कहानी

चंदेरी के प्रति बॉलीवुड का आकर्षण यूं ही नहीं है। बुनकरों का यह कस्बा बॉलीवुड को आखिर क्यों आकर्षित करता है, पढ़ें इसकी पड़ताल करती एक रिपोर्ट।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 15 Feb 2018 10:09 AM (IST)Updated: Thu, 15 Feb 2018 01:06 PM (IST)
यूं ही नहीं बॉलीवुड को लुभा रहे चंदेरी, 'सुई-धागा' से लिख रहे सफलता की कहानी
यूं ही नहीं बॉलीवुड को लुभा रहे चंदेरी, 'सुई-धागा' से लिख रहे सफलता की कहानी

चंदेरी [अच्छेलाल वर्मा]। इन दिनों मप्र के छोटे से कस्बे चंदेरी में बॉलीवुड कलाकार अनुष्का शर्मा और वरुण धवन अभिनीत फिल्म ‘सुई-धागा: मेड इन इंडिया’ की शूटिंग हो रही है। इससे पहले सुपर स्टार आमिर खान और करीना कपूर ने 2009 में यहां एक बुनकर के घर पहुंचकर सबको अचंभित कर दिया था। चंदेरी के प्रति बॉलीवुड का आकर्षण यूं ही नहीं है। बुनकरों का यह कस्बा बॉलीवुड को आखिर क्यों आकर्षित करता है, पढ़ें इसकी पड़ताल करती एक रिपोर्ट।

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अलग पहचान है चंदेरी की साड़ी की

15 हजार बुनकर परिवार यहां परंपरागत हथकरघा उद्योग से जुड़े हुए हैं। घरेलू कुटीर उद्योग के रूप में यहां के बुनकर सैकड़ों साल से उम्मीदों के तमाम ताने-बाने बुनते आए हैं। इनकी मेहनत और लगन ने ही चंदेरी साड़ी को दुनिया में अलग पहचान दिलाई है। अब ये बुनकर हैंडलूम को अपना चुके हैं। हर घर में हैंडलूम लगा हुआ है।

सालाना 65 करोड़ रुपये का उत्पादन

व्यापारी अरुण सोमानी बताते हैं कि उच्च गुणवत्ता का रेश्मी और सूती धागा बाहर से लाया जाता है, जिसे ये बुनकर बुनते हैं। चंदेरी की साड़ियां महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, गुजरात, प. बंगाल और दिल्ली के बाजारों में बहुतायत में जाती हैं। देश के अलावा विदेशों में भी इन्हें पसंद किया जाता है। चंदेरी हथकरघा केंद्र के निरीक्षक रामेश्वरधर द्विवेदी बताते हैं कि सालाना यहां 65 करोड़ रुपये का उत्पादन हो रहा है। शासन द्वारा भी युवाओं को प्रशिक्षण-प्रोत्साहन दिया जाता है।

समाजिक ताना-बाना भी उतना ही सुंदर

चंदेरी की साड़ी में ताने- बानों की जो अनोखी छटा नजर आती है, वह चंदेरी के समाज में भी दिखाई देती है। हिंदू-मुसलमान यहां प्रेम-पूर्वक रहते हैं। एक-दूसरे को बेहतर तरीके से समझते हैं। सादगी, सद्भाव और स्वरोजगार की एक अनूठी मिसाल इस कस्बे में देखने को मिलती है। मुगलकाल से यहां कोली, अहिरवार और अंसारी समाज के लोग बसे हुए हैं। सभी बुनकर हैं। सादगी से रहते हैं। एक-दूसरे की जरूरतों को समझते हैं। एक-दूसरे का सम्मान करते हैं और साथ मिलकर जीविकोपार्जन करते हैं। हर युवा के हाथ में काम है। कोई किसी की नौकरी नहीं करता। सभी स्वरोजगार में रत हैं। यही चंदेरी की खूबी है।

क्योंकि इसमें मानवीय पहलू है...

अभिनेता वरुण धवन और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा पहली बार साथ काम कर रहे हैं। यश राज फिल्म्स की इस फिल्म ‘सुई-धागा: मेड इन इंडिया’ का निर्देशन शरत कटारिया कर रहे हैं जबकि मनीष शर्मा ने इसे प्रोड्यूस किया है। धवन कहते हैं, गांधीजी से लेकर मोदीजी तक हमारे देश के नेता मेड इन इंडिया के मंत्र का समर्थन करते हैं। सुई धागा के साथ हम करोड़ों लोगों तक यह संदेश पहुंचाएंगे। उन्होंने कहा अनुष्का शर्मा इस फिल्म को लेकर काफी उत्साहित हैं क्योंकि इसमें मानवीय पहलू है। फिल्म दो अक्टूबर को गांधी जयंती पर सिनेमाघरों में रिलीज होगी।

राष्ट्रपति कोविंद का भी जुड़ाव

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के बड़े भाई रामस्वरूप भारती गुना में निवास करते हैं। एक दशक पहले चंदेरी गुना जिले की तहसील थी, जो अब अशोकनगर जिले में शामिल है। भारती बताते हैं कि चंदेरी में ज्यादातर बुनकर कोली समाज के हैं। चंदेरी से हमारे सामाजिक व पारिवारिक संबंध हैं। राष्ट्रपति कोविंद के पिता स्व. मैकूलाल उप्र के कानपुर जिले के पराख कस्बे में कपड़े बुनाई का काम करते थे। स्वयं भारती ने भी अपने पिता के काम में हाथ बंटाया और रामनाथ ने भी इस काम से ही प्रेरित होकर राजनीति में सफलता हासिल की।

महाभारत कालीन है इतिहास, पर्यटन का भी है केंद्र

बॉलीवुड को लुभाने के पीछे कुछ कारण और भी हैं। चंदेरी में अनेक ऐतिहासिक धरोहरें मौजूद हैं। इसका इतिहास महाभारत काल तक जाता है। शिशुपाल यहां का राजा था। माना जाता है कि शिशुपाल ने ही यहां वस्त्र बुनाई की परंपरा शुरू की थी। बुंदेल राजपूतों और मालवा के सुल्तानों ने यहां कई इमारतें बनवाईं, जो पर्यटन के केंद्र में हैं। खूनी दरवाजा किले की ऊंचाई 71 मीटर है। कौशक महल, परमेश्वर ताल, बढ़ी चंदेरी जैन मंदिर, शहजादी का रोजा, देवगढ़ किला और बैजू बावरा की समाधि जैसी ऐतिहासिक धरोहरें पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। राजधानी भोपाल से चंदेरी की दूरी 300 किमी है।


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