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आर्थिक वृद्धि को गति देने की रणनीति, बैंकिंग सुधार की राह पर बढ़ते कदम

पिछले वर्ष भारतीय स्टेट बैंक में सहयोगी बैंकों के विलय के बाद अब केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के तीन और बैंकों के आपस में विलय का फैसला किया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 20 Sep 2018 11:11 AM (IST)Updated: Thu, 20 Sep 2018 11:12 AM (IST)
आर्थिक वृद्धि को गति देने की रणनीति, बैंकिंग सुधार की राह पर बढ़ते कदम
आर्थिक वृद्धि को गति देने की रणनीति, बैंकिंग सुधार की राह पर बढ़ते कदम

[डॉ. जयंतीलाल भंडारी]। पिछले साल भारतीय स्टेट बैंक में सहयोगी बैंकों के विलय के बाद अब केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के तीन और बैंकों (बैंक ऑफ बड़ौदा, देना बैंक और विजया बैंक) के आपसी विलय का फैसला किया है। साफ है कि अब सरकार बैंकिंग सुदृढ़ता की राह पर तेजी से आगे बढ़ रही है। यह निर्णय बैंकों की कर्ज देने की क्षमता बढ़ाने, बैंकिंग प्रणाली को दुरुस्त करने तथा आर्थिक वृद्धि को गति देने की सरकारी रणनीति का एक हिस्सा है। करीब एकडेढ़ माह पहले वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत में छोटे-छोटे बैंकों के एकीकरण से बड़े और मजबूत बैंक बनाना देश के बैंकिंग परिदृश्य की जरूरत है।

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इसके अलावा सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) में जो अतिरिक्त पूंजी डाली जा रही है, उससे बैंकों की कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी तथा एनपीए की समस्या से निपटने भी मदद मिलेगी। रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 2019 के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बहुत ज्यादा बाहरी पूंजी की जरूरत नहीं होगी। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने भी कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का बुरा समय समाप्त होने जा रहा है। भारत में बैंकों की जनहितैषी योजनाओं के संचालन संबंधी भूमिका के कारण सरकारी बैंकों के निजीकरण के बजाय उनमें नई जान फूंकने के और अधिक प्रयास जरूरी हैं।

वस्तुत: छोटे-छोटे सरकारी बैंकों का एकीकरण तथा सरकारी बैंकों में पुनर्पूंजीकरण का कदम एक बड़ा बैंकिंग सुधार है। इससे सरकारी बैंकों को दोबारा सही तरीके से काम करने का अच्छा मौका मिल रहा है। पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने भी कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और इसमें नई जान फूंकने के लिए बैंकिंग क्षेत्र की हालत को पर्याप्त पुनर्पूंजीकरण से बेहतर करना पहली जरूरत है और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एकीकरण दूसरी। आइएमएफ का कहना था कि भारत को इसके लिए गैरनिष्पादित आस्तियों के समाधान को बढ़ाना होगा तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ऋण वसूली प्रणाली को बेहतर बनाना होगा।

गौरतलब है कि विगत 17 जुलाई को सरकार द्वारा पांच सरकारी बैंकों पंजाब नेशनल बैंक, कॉरपोरेशन बैंक, इंडियन ओरवसीज बैंक, आंध्रा बैंक तथा इलाहाबाद बैंक के पूंजीकरण के तहत 11337 करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज घोषित किया गया। इसके पहले 24 अक्टूबर, 2017 को फंसे कर्ज की समस्या से जूझ रहे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अगले दो साल में 2.11 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज दिया जाना सुनिश्चित किया गया था। यद्यपि बैंक पूंजी बाजार भी जा सकते हैं, लेकिन फिलहाल सरकारी बैंकों के शेयर मूल्य इतने कम हैं कि वे वहां से भी अपेक्षित पूंजी नहीं जुटा पाएंगे।

सरकार इन बैंकों का निजीकरण कर उन्हें निजी हाथों में बेच भी सकती है, लेकिन फिलहाल देश में सरकारी बैंकों को खरीदने की संभावना रखने वाले भरोसेमंद व्यक्ति या संगठन भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। इस तरह ऐसा कोई उपाय नहीं है जो एक झटके में बैंकों की हालत सुधार दे। चूंकि सरकार किसी सरकारी बैंक को विफल नहीं होने देना चाहती, अत: वह इन्हें जरूरी पूंजी मुहैया कराने और एकीकरण के जरिये मजबूती देने की दिशा में आगे बढ़ रही है। इससे पूंजी की किल्लत से परेशान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को जल्द राहत मिलेगी। कर्ज देने की रफ्तार बढ़ने की स्थिति में निजी निवेश में तेजी आएगी।

यहां पर यह भी गौरतलब है कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का संचालन सरकारी बैंकों के जरिये होता है। कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन के वितरण की जिम्मेदारी सरकारी बैंकों को सौंप दी गई है। सरकारी बैंकों के द्वारा एक ओर मुद्रा लोन, एजुकेशन लोन और किसान क्रेडिट कार्ड के जरिये बड़े पैमाने पर कर्ज बांटा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर बैंकरों को लगातार पुराने लोन की रिकवरी भी करनी पड़ रही है। नतीजतन बैंक अफसर अपने मूल काम यानी कोर बैंकिंग के लिए बहुत कम समय दे पा रहे हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च, 2018 तक जन-धन योजना के तहत 31.44 करोड़ खाते खुल चुके थे। 2014 से 2017 के बीच दुनिया में 51 करोड़ खाते खुले, जिसमें से 26 करोड़ खाते केवल भारत में जन-धन योजना के अंतर्गत खोले गए। भारत में इस अवधि में 26 हजार नई बैंक शाखाएं भी खुली हैं। जाहिर है, बैंकिंग सेक्टर के विस्तार के साथ इसकी चुनौतियां व जिम्मेदारियां भी बढ़ गई हैं। ऐसे में सरकारी बैंकिंग सेक्टर को सुदृढ़ करना बहुत जरूरी है।

इसी के मद्देनजर पिछले वर्ष 23 अगस्त को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सार्वजनिक बैंकों के एकीकरण में तेजी लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। इसी तारतम्य में विगत 24 जुलाई को केंद्र सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक से उन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बारे में राय मांगी, जिनका विलय किया जा सकता है। बैंकिंग सेक्टर में दो तिहाई से ज्यादा हिस्सेदारी सरकारी बैंकों की है। सरकार की रणनीति अगले 3 वर्षों में वर्तमान 21 सरकारी बैंकों की संख्या घटाकर 10-12 करने की है।

उल्लेखनीय है कि छोटे बैंकों को बड़े बैंक में मिलाने का फॉर्मूला केंद्र सरकार पहले भी अपना चुकी है। पिछले साल एक अप्रैल को एसबीआइ में इसके पांच सहायक बैंकों और भारतीय महिला बैंक (बीएमबी) का विलय किया गया था। नि:संदेह सार्वजनिक क्षेत्र के छोटे और कमजोर बैंकों का एकीकरण देश के नए बैंकिंग दौर की जरूरत है। वहीं यह भी जरूरी है कि सरकार बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के कार्य पर उपयुक्त निगरानी व नियंत्रण रखे। बैंकों को

दी जा रही भारीभरकम नई पूंजी के आवंटन की उपयोगिता और प्रासंगिकता इस बात पर निर्भर करेगी कि बैंक इसका इस्तेमाल कितने प्रभावी ढंग से करते हैं और फंसे कर्ज यानी एनपीए की समस्या से कैसे निपटते हैं। साथ ही बैंकों के पुनर्पूंजीकरण से देश की दोहरी बैलेंस शीट की समस्या कितनी हल होगी।

बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के साथ-साथ बड़े और मजबूत सरकारी बैंकों को आकार देने की नीति भी लाभप्रद होगी। ऐसा होने पर ही बैंकों में नए निवेश से सभी प्रकार के छोटे बड़े उद्योग-कारोबारों के साथ-साथ आम आदमी भी लाभान्वित होंगे। साथ ही हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक मजबूत बनकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए अर्थव्यवस्था को गतिशील कर सकेंगे। हम आशा करें कि बैंक ऑफ बड़ौदा में देना बैंक और विजया बैंक के विलय से बड़े आकार का मजबूत बैंक आकार लेगा। इससे बैंक की कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी, ग्राहक सेवा बेहतर होगी और डूबत ऋण नहीं बढ़ेंगे। हम आशा करें कि सरकार बैंकिंग सुधार को गति देते हुए कमजोर और मजबूत सार्वजनिक बैंकों के एकीकरण की प्रक्रिया को आगे भी जारी रखेगी ताकि हमारा बैंकिंग सेक्टर मजबूत हो।

पिछले वर्ष भारतीय स्टेट बैंक में सहयोगी बैंकों के विलय के बाद अब केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के तीन और बैंकों (बैंक ऑफ बड़ौदा, देना बैंक तथा विजया बैंक) के आपस में विलय का फैसला किया है। स्पष्ट है कि अब सरकार बैंकिंग सुदृढ़ता की राह पर तेजी से आगे बढ़ रही है। यह फैसला बैंकों की कर्ज देने की क्षमता बढ़ाने, बैंकिंग प्रणाली को दुरुस्त करने और आर्थिक वृद्धि को गति देने की सरकारी रणनीति का एक हिस्सा है।

[अर्थशास्त्री] 


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