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अशरफ गनी ने कहा था तालिबान से मरते दम तक लड़ेंगे, पर वह भाग गए : ब्लिंकन

अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने कहा कि अशरफगनी के भागते ही वह उनके संपर्क में आए और कई हफ्ते व महीने तक उनसे बातचीत करते रहे थे। अशरफगनी को तालिबान से मुकाबला करने के लिए तैयार किया गया था।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Mon, 01 Nov 2021 07:25 PM (IST)Updated: Mon, 01 Nov 2021 07:25 PM (IST)
अशरफ गनी ने कहा था तालिबान से मरते दम तक लड़ेंगे, पर वह भाग गए : ब्लिंकन
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और पूर्व राष्ट्रपति अशरफगनी की फाइल फोटो

नई दिल्ली, आइएएनएस। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफगनी ने कहा था कि वह मरते दम तक लड़ेंगे, लेकिन तालिबान के काबुल में आते ही वह अफगानिस्तान छोड़कर भाग गए। उन्होंने बताया कि इस साल 14 अगस्त की रात को उनकी अशरफगनी से फोन पर बात हुई थी, तब उन पर दबाव डाला गया कि वह नई सरकार को सत्ता सौंप दें। उन्होंने कहा कि इस सरकार को तालिबान को ही चलाना था, लेकिन अफगानी समाज के सभी पहलुओं को शामिल करते हुए।

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अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने कहा कि अशरफगनी के भागते ही वह उनके संपर्क में आए और कई हफ्ते व महीने तक उनसे बातचीत करते रहे थे। अशरफगनी को तालिबान से मुकाबला करने के लिए तैयार किया गया था। उन्होंने कहा भी था कि वह मरते दम तक तालिबान से लड़ेंगे, लेकिन ऐन मौके पर वह देश छोड़कर भाग गए। उल्लेखनीय है कि तालिबान ने विगत 15 अगस्त की सुबह बिना किसी प्रतिरोध का सामना किए काबुल में प्रवेश कर अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया था।

इस बीच, अफगानिस्तान में अमेरिका के पूर्व विशेष प्रतिनिधि जालमेय खलीलजाद ने कहा कि अफगानिस्तान में अभी भी अमेरिका का काम बाकी है। चूंकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने समयबद्ध तरीके से सेना की वापसी का फैसला किया था। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरह शर्तो पर समझौता नहीं किया था।

खलीलजाद ने फाक्स न्यूज को दिए इंटरव्यू में कहा कि अब जरूरत है कि तालिबान पर उन शर्तो को पूरा करने के लिए दबाव डाला जाए। ताकि वह आतंकवाद से निपटने के साथ ही व्यापक स्तर पर अपनी सरकार स्थापित करे। दूसरी ओर, तालिबान ने भी अमेरिका पर समझौते की शर्तो को पूरा नहीं करने का आरोप लगाया है। तालिबान के प्रवक्ता जाबिउल्ला मुजाहिद ने कहा कि दोहा समझौते में अफगानिस्तान की जमीन को अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देने का वादा किया गया था और वह इस वादे को निभा रहे हैं।


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